नई दिल्ली,19 नवंबर (युआईटीवी)- सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) करीब सात साल बाद अपने बहुप्रतीक्षित अमेरिकी दौरे पर पहुँचे,जहाँ उन्होंने व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। यह दौरा न केवल कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहा,बल्कि इसने दोनों देशों के बीच संबंधों को एक नई दिशा देने वाले कई ऐतिहासिक समझौतों की नींव भी रखी। एक समय जमाल खशोगी की हत्या के बाद तनावपूर्ण हुई अमेरिका-सऊदी रिश्तों की तस्वीर अब पूरी तरह बदलती दिख रही है। दोनों देशों ने रक्षा,ऊर्जा,तकनीक से लेकर खनिज ढाँचे तक कई अहम क्षेत्रों में बड़े समझौते किए,जिनमें कुछ पहली बार किसी अरब देश के साथ किए गए हैं।
व्हाइट हाउस में आयोजित इस मुलाकात के दौरान अमेरिका और सऊदी अरब ने ऐतिहासिक असैन्य परमाणु ऊर्जा समझौते पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों ने सिविल न्यूक्लियर एनर्जी पर संयुक्त घोषणा को मंजूरी दी,जो आने वाले वर्षों में सऊदी अरब की परमाणु क्षमता को नए स्तर पर ले जाएगी। यह समझौता मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन और ऊर्जा सुरक्षा पर भी गहरा प्रभाव डालने वाला माना जा रहा है। इसके अलावा रणनीतिक रक्षा समझौता (एसडीए) भी इस दौरे का प्रमुख केंद्र रहा,जिसके तहत दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को व्यापक रूप से मजबूत करने पर सहमति बनी।
रक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ी घोषणा वह रही जिसने वैश्विक राजनीति में हलचल पैदा कर दी। अमेरिका ने सऊदी अरब को 48 एफ-35एस फाइटर जेट बेचने की मंजूरी दी है। अब तक यह अत्याधुनिक फाइटर जेट केवल इजरायल को ही दिया जाता था,लेकिन इस कदम से मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन की तस्वीर बदलना तय माना जा रहा है। हालाँकि,राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट किया कि इजरायल को इस डील की पहले से जानकारी थी और अमेरिका के लिए सऊदी अरब और इजरायल दोनों ही विश्वसनीय साझेदार हैं। इसके साथ ही करीब 300 अमेरिकी टैंकों की डिलीवरी पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं,जिससे सऊदी की सैन्य क्षमता बेहद मजबूत होगी।
टेक्नोलॉजी और रणनीतिक खनिज ढाँचे को लेकर भी इस दौरे में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। दोनों देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए,जिसके तहत ऊर्जा,सुरक्षा और उद्योगों में एआई के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके अलावा महत्वपूर्ण खनिज ढाँचे पर समझौता सऊदी अरब को वैश्विक सप्लाई चेन में बड़ी भूमिका प्रदान करेगा,खासकर उन तत्वों के लिए जो भविष्य की टेक्नोलॉजी के लिए बेहद जरूरी माने जाते हैं।
क्राउन प्रिंस एमबीएस ने अमेरिकी दौरे के दौरान आर्थिक निवेश पर भी बड़ा ऐलान किया। उन्होंने बताया कि सऊदी का अमेरिका में निवेश 600 बिलियन डॉलर से बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर होने जा रहा है। यह निवेश ऊर्जा,टेक्नोलॉजी,इंफ्रास्ट्रक्चर और डिफेंस सेक्टर को नई गति देगा। ट्रंप प्रशासन इस निवेश को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा अवसर मान रहा है,खासकर उस दौर में जब वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा तेज होती जा रही है।
व्हाइट हाउस में आयोजित भव्य डिनर में राष्ट्रपति ट्रंप ने सऊदी अरब को “मेजर नॉन-नाटो एलाय” (महत्वपूर्ण गैर-नाटो सहयोगी) का दर्जा देने की घोषणा करके इस रिश्ते को एक नई ऊँचाई पर पहुँचा दिया। अब तक यह दर्जा केवल 19 देशों को मिला है और सऊदी का इस सूची में शामिल होना दोनों देशों के बीच बढ़ते विश्वास और रणनीतिक सहयोग को दर्शाता है। यह दर्जा मिलने से सऊदी अरब को अमेरिकी रक्षा तकनीकों और सैन्य सहयोग में कई विशेष सुविधाएँ मिलेंगी।
गौरतलब है कि 2018 में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद अमेरिका और सऊदी अरब के संबंधों में काफी तनाव पैदा हो गया था। मानवाधिकार मुद्दों को लेकर अमेरिकी राजनीति में भी सऊदी की आलोचना होती रही है,लेकिन ट्रंप प्रशासन के प्रयासों और मध्य पूर्व में बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच अब दोनों देशों ने अपने रिश्तों को फिर से मजबूत करने का निर्णय लिया है। इस दौरे के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि अमेरिका-सऊदी साझेदारी एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है,जहाँ आर्थिक,रक्षा और कूटनीतिक सहयोग पहले से कहीं अधिक व्यापक और महत्वूर्ण होगा।
क्राउन प्रिंस एमबीएस का यह अमेरिकी दौरा सिर्फ औपचारिक मुलाकात नहीं,बल्कि भविष्य की रणनीति का वह आधार है जिस पर आने वाले वर्षों में मध्य पूर्व की राजनीति और वैश्विक शक्ति संतुलन मोटे तौर पर निर्भर करेगा।

