रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन

अमेरिका के 28 सूत्रीय शांति प्रस्ताव पर पुतिन की प्रतिक्रिया: रूस-यूक्रेन युद्ध में ‘टर्निंग पॉइंट’ की आहट?

मॉस्को,22 नवंबर (युआईटीवी)- रूस और यूक्रेन के बीच जारी विनाशकारी युद्ध को समाप्त करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रशासन ने हाल ही में 28 सूत्रीय शांति योजना पेश की है। इस प्लान के सामने आने के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में हलचल तेज हो गई है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहली बार इस प्रस्ताव पर खुलकर प्रतिक्रिया दी है। पुतिन ने संकेत दिया है कि मॉस्को अमेरिकी प्रशासन के इस 28-पॉइंट पीस प्लान के सभी पहलुओं पर विस्तृत और ठोस चर्चा के लिए तैयार है। उनका यह बयान उस वक्त आया है,जब युद्ध को लगभग तीन साल से अधिक हो चुके हैं और दोनों देशों में भारी तबाही,जनहानि और आर्थिक संकट गहराता जा रहा है।

पुतिन ने कहा कि यह प्रस्ताव उन्हें अमेरिकी सरकार के साथ मौजूद कम्युनिकेशन चैनलों के जरिये प्राप्त हुआ है और इसे एक संभावित अंतिम शांति समझौते का आधार बनाया जा सकता है। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के अनुसार,पुतिन ने कहा कि रूस शांति वार्ता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का हमेशा से समर्थक रहा है। यदि अमेरिका का यह प्लान दोनों पक्षों को एक व्यवहारिक ढाँचे पर बातचीत के लिए प्रेरित करता है,तो मॉस्को इसमें शामिल होने के लिए पूरी तरह तैयार है।

इस साल अगस्त में अलास्का में पुतिन और ट्रंप के बीच हुई मुलाकात में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी,लेकिन तब वार्ता किसी ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सकी। अब जब ट्रंप प्रशासन की ओर से यह 28 सूत्रीय प्रस्ताव सामने आया है,तो यह सवाल उठ रहा है कि क्या युद्ध की दिशा अब बदल सकती है?

इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने भी इस प्रस्ताव को लेकर अपने लोगों को आगाह किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा तैयार किए गए इस शांति प्रस्ताव पर सहमत होने के लिए यूक्रेन पर अत्यधिक दबाव बनाया जा रहा है। जेलेंस्की के शब्दों में—यह देश के इतिहास के सबसे कठिन निर्णयों में से एक है। उनके अनुसार,यूक्रेन को अब अपनी “इज्जत बचाने” या एक “महत्वपूर्ण साझेदार खोने” के बीच फैसला करना पड़ रहा है। जेलेंस्की का सीधा संकेत वॉशिंगटन की ओर था,जो यूक्रेन का सबसे बड़ा सैन्य और आर्थिक समर्थनकर्ता रहा है।

ट्रंप प्रशासन का यह 28 पॉइंट वाला प्लान लीक होने के बाद वैश्विक सुर्खियों में आ गया। इस प्लान में कई ऐसे बिंदु शामिल हैं,जिनका यूक्रेन लंबे समय से विरोध करता रहा है। प्रस्तावित योजना की सबसे विवादित बात यह है कि यूक्रेन पूर्वी इलाकों—डोनेट्स्क और लुहांस्क के उन बड़े हिस्सों को छोड़ देगा,जिन पर अभी भी कीव का नियंत्रण है। इसके साथ ही यूक्रेन को अपनी सैन्य क्षमता को काफी हद तक घटाने की भी बात कही गई है,जिसे कीव के लिए स्वीकार करना बेहद कठिन माना जा रहा है।

प्लान का सबसे संवेदनशील और राजनीतिक रूप से विस्फोटक हिस्सा वह शर्त है,जिसके तहत यूक्रेन को नाटो में शामिल न होने का वादा करना होगा। नाटो में शामिल होना यूक्रेन की पुरानी रणनीतिक प्राथमिकता रही है और जेलेंस्की स्पष्ट कर चुके हैं कि वह यह कदम पीछे नहीं लेना चाहते। इसी वजह से इस शर्त के कारण यूक्रेन सरकार और जनता के बीच असहमति और असंतोष बढ़ना तय है।

इसके अलावा,प्रस्ताव में यह भी शामिल है कि क्रीमिया,लुहांस्क और डोनेट्स्क को “असली तौर पर” रूस का हिस्सा माना जाएगा। यह रेखा यूक्रेन के लिए बिल्कुल ‘लाल रेखा’ है,क्योंकि इन इलाकों पर रूस का दावा यूक्रेन और अधिकांश पश्चिमी देशों ने कभी स्वीकार नहीं किया। ऐसे में इस शर्त का मानना कीव के लिए राजनीतिक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।

शांति योजना में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि यूक्रेन को अपनी सैन्य संख्या कम करनी होगी और समय के साथ रूस पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाने की प्रक्रिया शुरू होगी। यह प्रस्ताव निश्चित रूप से रूस के हितों को साधता दिख रहा है,क्योंकि मॉस्को वर्षों से इन प्रतिबंधों को हटाने की माँग कर रहा है।

योजना के अनुसार यूक्रेन को 100 दिनों के भीतर राष्ट्रीय चुनाव कराने होंगे और नाटो मेंबरशिप की सारी उम्मीदें छोड़नी होंगी। बदले में अमेरिका यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देगा,लेकिन इसके लिए वॉशिंगटन को बड़े आर्थिक निवेश करने होंगे। प्लान में यह भी कहा गया है कि अमेरिका यूक्रेन के पुनर्निर्माण में निवेश करेगा और वहाँ होने वाले मुनाफे का 50 प्रतिशत हिस्सा उसे मिलेगा। इसके अतिरिक्त,अमेरिका और रूस के बीच आर्थिक साझेदारी को भी फिर से बहाल करने की बात कही गई है,जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।

अब सवाल यह है कि यूक्रेन इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगा या नहीं। यूक्रेन की जनता,उसकी सेना और ज़ेलेंस्की सरकार पहले भी यह साफ़ कह चुकी हैं कि वे किसी भी ऐसी शांति योजना को स्वीकार नहीं करेंगे,जो उनकी संप्रभुता,सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर करती हो। वहीं अमेरिका भी इस युद्ध से जल्द निकलने का विकल्प तलाश रहा है,क्योंकि लंबे समय से जारी यह संघर्ष अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों पर दबाव डाल रहा है।

रूस के सकारात्मक संकेत देने के बाद भी यह समझौता तुरंत होने की संभावना कम ही दिखती है। हालाँकि,पुतिन के बदलते स्वर और ट्रंप प्रशासन की नई सक्रियता इस बात का संकेत देते हैं कि युद्ध की लंबी और खूनी राह अब किसी निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ सकती है। दुनियाभर की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह 28 सूत्रीय प्लान रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने का आधार बन पाएगा या फिर यह भी पिछले प्रयासों की तरह असफल साबित होगा।