ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सियासी टकराव तेज,ममता बनर्जी 25 नवंबर को बनगांव में करेंगी एसआईआर विरोध रैली

कोलकाता,22 नवंबर (युआईटीवी)- पश्चिम बंगाल में भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सियासत लगातार तेज होती जा रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) इस प्रक्रिया का पुरजोर विरोध कर रही है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 25 नवंबर को उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव में दूसरी बड़ी एसआईआर विरोधी रैली को संबोधित करेंगी,जिसके बाद वह एक विरोध मार्च का भी नेतृत्व करेंगी। इससे पहले,4 नवंबर को कोलकाता में हुई पहली विशाल रैली में भी उन्होंने एसआईआर को “साजिश” करार देते हुए कड़ा विरोध जताया था।

पार्टी सूत्रों के अनुसार,बनगांव को रैली के लिए चुने जाने के पीछे एक विशेष कारण है। यह क्षेत्र मतुआ समुदाय का गढ़ माना जाता है,जहाँ उनकी बड़ी आबादी निवास करती है। टीएमसी लगातार यह प्रचार कर रही है कि निर्वाचन आयोग की इस प्रक्रिया के चलते मतुआ समुदाय के हजारों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने का खतरा है। मतुआ समुदाय मूलतः बांग्लादेश से शरणार्थी के रूप में आए हिंदू पिछड़े वर्ग की आबादी है,जो राज्य के कई जिलों—विशेषकर नादिया और उत्तर 24 परगना में दशकों से रह रही है। चूँकि,ये जिले भारत-बांग्लादेश सीमा के करीब हैं,इसलिए कम्युनिटी की उपस्थिति यहाँ बड़ी संख्या में है।

टीएमसी का आरोप है कि विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया के नाम पर उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है,जिनका नाम वर्षों से मतदाता सूची में दर्ज है। पार्टी का कहना है कि प्रशासनिक स्तर पर ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं,जिससे मतुआ समुदाय सहित कई अन्य निवासियों को सूची से हटाया जा सके। पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर राज्य भर में अभियान चलाया है और बनगांव की रैली इसी रणनीति का हिस्सा है।

हालाँकि,भाजपा ने टीएमसी के इन आरोपों को पूरी तरह निराधार बताया है। राज्य भाजपा नेतृत्व का कहना है कि एसआईआर का उद्देश्य केवल अवैध रूप से मतदाता सूची में शामिल बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या लोगों की पहचान कर उन्हें सूची से हटाना है। भाजपा नेताओं का कहना है कि मतुआ समुदाय के असली नागरिकों को किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है,क्योंकि वे दशकों से भारत में रह रहे हैं और कानूनन मतदाता हैं। भाजपा ने टीएमसी पर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने और समुदाय के वोट बैंक को साधने का आरोप लगाया है।

गुरुवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार को एक विस्तृत पत्र लिखकर एसआईआर प्रक्रिया को तुरंत रोकने का अनुरोध किया। अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि यह प्रक्रिया “अनियोजित,अराजक और खतरनाक” तरीके से लागू की जा रही है,जो न केवल नागरिकों,बल्कि चुनाव अधिकारियों पर अनावश्यक दबाव डाल रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था सहित कई प्रशासनिक चुनौतियाँ पहले से मौजूद हैं,ऐसे में अचानक इतने बड़े पैमाने पर पुनरीक्षण कराना “लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए जोखिम भरा” कदम है।

उसी दिन विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखा,लेकिन उनके पत्र की दिशा ममता बनर्जी के पत्र के बिल्कुल विपरीत थी। शुभेंदु ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री का पत्र एसआईआर प्रक्रिया को बाधित करने और “मतदाता सूची शुद्धिकरण अभियान को पटरी से उतारने” का एक हताश प्रयास है। उन्होंने कहा कि टीएमसी जानती है कि पुराने शासनकाल में मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी हुई थी और एसआईआर से वे सभी अनियमितताएँ सामने आ सकती हैं। शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया कि मुख्यमंत्री द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ “राजनीति से प्रेरित और तथ्यहीन” हैं।

विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि टीएमसी अवैध घुसपैठियों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती आई है और अब एसआईआर की प्रक्रिया से उनके “मतदाता आधार” में कमी आने का डर सता रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि पुनरीक्षण का उद्देश्य केवल मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी,शुद्ध और विश्वसनीय बनाना है।

ममता बनर्जी की आगामी बनगांव रैली को लेकर सुरक्षा और राजनीतिक माहौल दोनों को लेकर राज्य में हलचल बढ़ गई है। इस क्षेत्र में मतुआ समुदाय का प्रभाव काफी अधिक है और यह समुदाय पश्चिम बंगाल की कई सीटों पर चुनावी रूप से निर्णायक भूमिका निभाता है। यही कारण है कि टीएमसी और भाजपा दोनों ही लगातार इस समुदाय तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों में मतुआ समुदाय भाजपा के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है,खासकर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के लागू होने के वादों के कारण। हालाँकि,टीएमसी का दावा है कि भाजपा ने सीएए लागू करने का वादा केवल चुनावी लाभ के लिए किया था और वास्तविकता में उसे लागू करने की कोई ठोस इच्छा नहीं है। इस मुद्दे ने भी दोनों पार्टियों के बीच खाई को और गहरा किया है और अब एसआईआर का विवाद उसी राजनीतिक तनाव का एक नया अध्याय बनकर उभरा है।

25 नवंबर की बनगांव रैली न केवल राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण मानी जा रही है,बल्कि यह भी देखा जा रहा है कि मुख्यमंत्री इस रैली में निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार के खिलाफ किस तरह का रुख अपनाती हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि आने वाले महीनों में यह मुद्दा राज्य की राजनीति को और अधिक गर्मा सकता है,खासकर 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले।