दिल्ली एमसीडी उपचुनाव में भाजपा 7 पर जीती,आप की 3 और कांग्रेस की एक सीट बढ़ी (तस्वीर क्रेडिट@savedemocracyI)

दिल्ली एमसीडी उपचुनाव के नतीजों में भाजपा को झटका,आम आदमी पार्टी ने पकड़ी लय और कांग्रेस ने वर्षों बाद फिर खोला खाता

नई दिल्ली,3 दिसंबर (युआईटीवी)- दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) उपचुनाव के नतीजे मंगलवार को पूरी तरह स्पष्ट हो गए और इन नतीजों ने राजधानी की स्थानीय राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दे दिया। 12 सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों ने जहाँ भारतीय जनता पार्टी को मिश्रित संदेश दिया,वहीं आम आदमी पार्टी ने अपनी स्थिति को सँभालते हुए तीन सीटें बरकरार रखीं। वर्षों बाद कांग्रेस ने भी एक सीट जीतकर राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया,जबकि मटिया महल में शोएब इकबाल की बगावत का असर साफ दिखाई दिया। इन चुनावी परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली की राजनीति में जमीन पर पकड़ रखने वाले स्थानीय नेता अभी भी बड़ी भूमिका निभाते हैं और पार्टियों की रणनीतियों में बदलाव की आवश्यकता है।

दिल्ली नगर निगम के इन उपचुनावों में कुल 12 सीटें दांव पर थीं। भाजपा ने सात सीटें जीतकर भले ही सबसे ज्यादा जीतें हासिल कीं,लेकिन उसके लिए यह परिणाम किसी झटके से कम नहीं हैं। वजह यह कि भाजपा के पास पहले इन वार्डों में कुल नौ सीटें थीं,लेकिन उपचुनाव में वह केवल सात ही बचा पाई। यह दर्शाता है कि भाजपा अपनी पारंपरिक मजबूती बनाए नहीं रख सकी और दो वार्डों में उसे स्पष्ट नुकसान उठाना पड़ा। वहीं आम आदमी पार्टी के लिए राहत की बात यह रही कि वह अपनी तीन सीटें बरकरार रखने में सफल रही। हालाँकि,ध्यान देने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी की सीटें वही नहीं हैं,जो पहले थीं। उसके कुछ वार्ड गंवाए भी,लेकिन कुछ नए वार्ड जीतकर उसने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली।

नतीजों में सबसे अधिक चर्चा का केंद्र रही मटिया महल वार्ड की सीट। यहाँ से आम आदमी पार्टी को झटका देते हुए शोएब इकबाल की नवगठित पार्टी ने जीत दर्ज की। इमरान मोहम्मद ने आप उम्मीदवार मुदस्सिर उस्मान को बड़े अंतर से हराकर यह स्पष्ट कर दिया कि मटिया महल की राजनीति में शोएब इकबाल की पकड़ अब भी बरकरार है। उनकी यह बगावत आम आदमी पार्टी के लिए सिरदर्द साबित हुई,क्योंकि शोएब इकबाल लंबे समय तक पार्टी का अभिन्न हिस्सा माने जाते थे।

भाजपा की जीत वाले वार्डों पर नजर डालें तो शालीमार बाग,चांदनी चौक,द्वारका,विनोद नगर,अशोक विहार,ग्रेटर कैलाश और ढिचाऊ कला में पार्टी ने मजबूती दिखाई। शालीमार बाग में अनीता जैन ने आम आदमी पार्टी की बबीता राणा को बड़े अंतर से हराया। चांदनी चौक में भाजपा की सुमन कुमार गुप्ता ने आप के हर्ष शर्मा को हराकर आम आदमी पार्टी से यह सीट छीन ली। यह सीट पहले आम आदमी पार्टी के पास थी और भाजपा ने यहाँ जीत दर्ज कर स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया। द्वारका में भाजपा ने भारी अंतर से जीत दर्ज की। मनीषा देवी ने आप की राजबाला को हराकर भाजपा की पकड़ मजबूत की। इसी प्रकार ग्रेटर कैलाश और ढिचाऊ कला वार्डों में भाजपा के प्रदर्शन ने दिखाया कि दक्षिणी और पश्चिमी दिल्ली के कई हिस्सों में उसकी पकड़ अभी भी मजबूत है।

उधर,आम आदमी पार्टी ने नारायण,मुंडका और दक्षिणपुरी वार्डों में जीत हासिल की। नारायण सीट पर बेहद काँटे की टक्कर देखने को मिली,जहाँ आप की राजन अरोड़ा ने भाजपा उम्मीदवार चंद्रकांता को केवल 148 वोटों से हराया। यह जीत आम आदमी पार्टी के लिए विशेष महत्व रखती है,क्योंकि यह सीट पहले भाजपा के पास थी। मुंडका में आम आदमी पार्टी के अनिल ने भाजपा के जयपाल को हराकर यह सीट अपने नाम की। मुंडका पहले निर्दलीय सदस्य के पास थी,जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। इस तरह आप ने यह सीट भाजपा से छीन ली। दक्षिणपुरी में भी आम आदमी पार्टी ने अच्छी जीत हासिल की और रामस्वरूप कनौजिया ने भाजपा की रोहिणी को हराया। दक्षिणपुरी पहले से ही आम आदमी पार्टी की मजबूत सीट थी और पार्टी इसे बचाने में सफल रही।

इन सभी नतीजों के बीच सबसे चौंकाने वाली जीत कांग्रेस की रही,जिसने संगम विहार सीट पर भाजपा को हराया। कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश चौधरी ने भाजपा के शुभ रंजीत गौतम को बड़े अंतर से मात देते हुए यह सीट जीत ली। यह कांग्रेस के लिए बड़ा मनोवैज्ञानिक बढ़ावा माना जा रहा है,क्योंकि दिल्ली में पार्टी का ग्राफ पिछले कई वर्षों से लगातार गिरता जा रहा था। एमसीडी में यह जीत कांग्रेस को ऊर्जा देने का काम करेगी और पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए नए सिरे से रणनीति बना सकती है।

इन उपचुनावों ने यह भी दिखाया कि दिल्ली के स्थानीय चुनावों में पारंपरिक ध्रुवीकरण से हटकर स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशियों की छवि बड़ी भूमिका निभाती है। भाजपा के लिए यह परिणाम मिश्रित संकेत हैं। सात सीटें जीतकर वह अभी भी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है,लेकिन दो सीटों का नुकसान इस बात की ओर इशारा करता है कि कुछ इलाकों में उसकी पकड़ कमजोर हुई है। खासकर पुरानी दिल्ली के मटिया महल जैसे क्षेत्रों में भाजपा की स्थिति मजबूत नहीं दिख रही,जहाँ धार्मिक, सामाजिक और स्थानीय नेतृत्व सबसे बड़ा फैक्टर बन जाता है। वहीं आम आदमी पार्टी को अपनी तीन सीटें बचाने से राहत जरूर मिली है,लेकिन शोएब इकबाल जैसी बगावतों से पार्टी को आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

इस चुनाव में कई सीटों पर हुए मुकाबलों ने यह भी दिखाया कि मतदाताओं ने स्थानीय काम,वार्ड स्तर की समस्याओं और उम्मीदवारों की उपलब्धियों को प्राथमिकता दी। उदाहरण के तौर पर अशोक विहार वार्ड में भाजपा की बीना असीजा और आप की सीमा गोयल के बीच बेहद रोमांचक मुकाबला देखने को मिला। कुछ समय के लिए सीमा गोयल आगे थीं,लेकिन अंतिम चरणों में बीना असीजा ने बाजी मार ली और यह सीट सिर्फ 405 वोटों से भाजपा के खाते में गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि मतदाताओं ने उम्मीदवारों के काम और स्थानीय उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए मतदान किया।

इन चुनावी नतीजों का एक बड़ा राजनीतिक संदेश यह भी है कि दिल्ली का मतदाता अभी भी 2015 और 2020 जैसे भारी बहुमतों वाले रुझान से दूर होकर संतुलित राजनीतिक निर्णय ले रहा है। न भाजपा को पूरी तरह दबदबा मिला,न आम आदमी पार्टी को कोई बड़ा नुकसान हुआ और न ही कांग्रेस की वापसी को पूरी तरह नकारा जा सकता है। इसके साथ ही शोएब इकबाल जैसे क्षेत्रीय नेताओं की सफलता यह बताती है कि दिल्ली की राजनीति में जमीन से जुड़े नेताओं की भूमिका आज भी महत्वपूर्ण है।

कुल मिलाकर, दिल्ली एमसीडी उपचुनाव के नतीजे तीन प्रमुख संदेश देते हैं—भाजपा अभी भी स्थानीय स्तर पर सबसे बड़ी ताकत है,लेकिन उसे अपनी सीटों की रक्षा के लिए और मेहनत करनी होगी। आम आदमी पार्टी को बगावतों और बदलते स्थानीय समीकरणों से सावधान रहने की जरूरत है। वहीं कांग्रेस ने दिखा दिया कि वह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है और सही रणनीति से वह कुछ क्षेत्रों में वापसी कर सकती है।

इन नतीजों ने राजधानी की राजनीति में एक बार फिर यह साबित किया है कि दिल्ली का मतदाता बेहद जागरूक है और उसके फैसले हमेशा बदलते राजनीतिक परिदृश्यों को नई दिशा देते हैं। आने वाले विधानसभा चुनावों पर इन उपचुनावों का असर जरूर पड़ेगा और राजनीतिक दलों को इससे अपने रणनीतिक पाठ सीखने होंगे।