नई दिल्ली,5 दिसंबर (युआईटीवी)- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को लोकसभा में एक अहम विधेयक पेश किया,जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत करना और डीमेरिट प्रोडक्ट्स पर नियंत्रण स्थापित करना है। ‘स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक 2025’ के नाम से पेश किए गए इस बिल के जरिए पान मसाला जैसे उत्पादों पर नया उपकर लगाया जाएगा। सरकार का दावा है कि यह उपकर जीएसटी के अतिरिक्त लगाया जाएगा और इसका उद्देश्य ऐसी चीजों के उपभोग को कम करना है,जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनती हैं।
लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि सरकार का इरादा किसी प्रकार की आवश्यक वस्तु पर कर लगाने का नहीं है। उन्होंने कहा कि यह उपकर केवल ‘डीमेरिट गुड्स’ यानी ऐसी चीजों पर लगाया जा रहा है जिनका स्वास्थ्य पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पान मसाला,विभिन्न तंबाकू उत्पाद और इससे जुड़े पदार्थ उन वस्तुओं की श्रेणी में आते हैं,जिन्हें लेकर लंबे समय से स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंता जताते रहे हैं। इसलिए सरकार इसे एक ऐसे वित्तीय उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है,जो लोगों को इन चीजों के उपयोग से हतोत्साहित करे।
वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में बताया कि पान मसाले पर पहले से ही जीएसटी के तहत 40 प्रतिशत टैक्स लगाया जा रहा है,लेकिन यह टैक्स उसके उपयोग को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा रहा था। इसी कारण उत्पादन-आधारित उपकर का प्रस्ताव लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह उपकर इस तरह डिजाइन किया गया है कि इससे उत्पादकों की उत्पादन क्षमता के आधार पर कर निर्धारित होगा। मतलब यह कि किसी फैक्ट्री में मशीनों की क्षमता जितनी अधिक होगी,उसकी उपकर देनदारी उतनी ही अधिक होगी। इससे सरकार ऐसे उत्पादों के उत्पादन को कम करने की दिशा में भी एक कदम बढ़ा रही है।
सीतारमण ने यह भी स्पष्ट किया कि यह उपकर जीएसटी से अलग होगा और इससे प्राप्त राजस्व को स्वास्थ्य योजनाओं में उपयोग किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह आय राज्यों के साथ भी साझा की जाएगी,ताकि वे इसे स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों और अन्य संबंधित योजनाओं पर खर्च कर सकें। इस मॉडल को ‘कलेक्टिव रेस्पॉन्स फंडिंग’ के रूप में देखा जा रहा है,जिसमें केंद्र और राज्य मिलकर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार के लिए काम करेंगे।
वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि पान मसाला पर उत्पाद शुल्क नहीं लगाया जा सकता। यही वजह है कि सरकार इसके लिए एक अलग उपकर व्यवस्था लेकर आई है। दिलचस्प बात यह है कि इससे एक दिन पहले ही लोकसभा ने सेंट्रल एक्साइज एक्ट 1944 में संशोधन करते हुए एक बिल पारित किया था,जो तंबाकू उत्पादों पर 40 प्रतिशत जीएसटी के साथ-साथ अलग से उत्पाद शुल्क लगाने की अनुमति देता है। इस बदलाव का उद्देश्य भी स्वास्थ्य-हानिकारक वस्तुओं पर नियंत्रण पाना है।
वर्तमान कर संरचना की बात करें तो अभी पान मसाला,तंबाकू और इससे जुड़े कई उत्पादों पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है। इसके साथ ही इन पर ‘क्षतिपूर्ति उपकर’ भी लगता है,लेकिन जल्द ही क्षतिपूर्ति उपकर समाप्त होने वाला है,जिसके बाद इन वस्तुओं पर जीएसटी दर बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाएगी। इस बढ़ी हुई दर के साथ नया उपकर एक अतिरिक्त बोझ होगा,जो वस्तुओं की कीमत बढ़ाकर उन्हें लोगों की पहुँच से कुछ हद तक बाहर करने की दिशा में काम करेगा।
सरकार का तर्क है कि कीमत बढ़ने से उपभोग पर प्राकृतिक रूप से रोक लगेगी। स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से सुझाव देते आए हैं कि तंबाकू और पान मसाला जैसे उत्पादों के इस्तेमाल को कम करने के लिए कीमत बढ़ाना काफी प्रभावी उपाय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी इस सिद्धांत का समर्थन करता है कि स्वास्थ्य-हानिकारक उत्पादों पर ऊँचा कर लगाना उनके उपयोग को कम करता है और लंबी अवधि में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालता है।
हालाँकि,विपक्ष इस विधेयक की आलोचना करते हुए इसे राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल करार दे सकता है,लेकिन वित्त मंत्री ने साफ किया कि उपकर से मिलने वाली कमाई का एक हिस्सा राज्यों को मिलेगा और वे इसे अपनी स्वास्थ्य योजनाओं में उपयोग कर सकेंगे। इससे केंद्र और राज्य दोनों के बीच एक समन्वित प्रयास हो सकेगा,जो स्वास्थ्य सुरक्षा के बड़े उद्देश्य को साधने में मदद करेगा।
यह विधेयक ऐसे समय में आया है,जब देश में मुख कैंसर और तंबाकू से जुड़ी बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कई स्वास्थ्य रिपोर्टें बताती हैं कि पान मसाला और तंबाकू का सेवन युवाओं में तेजी से बढ़ा है,जिससे आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र पर बोझ बढ़ने की आशंका है। ऐसे में सरकार के इस कदम को कई विशेषज्ञ एक दूरगामी और प्रभावी पहल बताते हैं।
‘स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक 2025’ को सरकार स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़े सुधार के रूप में देख रही है। अगर यह कानून रूप लेता है,तो पान मसाला उद्योग पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा और उपभोक्ता स्तर पर भी बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह कानून स्वास्थ्य और वित्त दोनों मोर्चों पर कितना कारगर साबित होता है।

