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अमेरिका–भारत रणनीतिक साझेदारी पर निर्णायक चर्चा: 10 दिसंबर को अमेरिकी कांग्रेस में होगी महत्वपूर्ण सुनवाई

वाशिंगटन, 5 दिसंबर (युआईटीवी)- भारत–अमेरिका संबंधों की दिशा और गति आने वाले वर्षों में हिंद–प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीतिक संरचना को गहराई से प्रभावित करने वाली है। इसी पृष्ठभूमि में अमेरिकी कांग्रेस की हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी की साउथ और सेंट्रल एशिया सब-कमेटी आगामी 10 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक बैठक आयोजित करने जा रही है। इस बैठक का मुख्य विषय रखा गया है— “अमेरिका-भारत स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप: एक स्वतंत्र और खुले हिंद–प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा”। यह सुनवाई न केवल द्विपक्षीय समीकरणों की समीक्षा करेगी,बल्कि उन रणनीतिक पहलुओं पर भी प्रकाश डालेगी,जो आने वाले समय में वैश्विक शक्ति-संतुलन को पुनर्परिभाषित कर सकते हैं।

इस सुनवाई की अध्यक्षता मिशिगन से रिपब्लिकन सांसद बिल ह्यूजेंगा करेंगे। आधिकारिक नोटिस के अनुसार,कमेटी उन विश्लेषकों और विशेषज्ञों की राय सुनेगी जो लंबे समय से अमेरिका–भारत संबंधों,हिंद–प्रशांत की सामरिक चुनौतियों और एशियाई भू-राजनीति पर शोध कर रहे हैं। इनमें हेरिटेज फाउंडेशन के एशियन स्टडीज सेंटर के डायरेक्टर जेफ स्मिथ,ओआरएफ अमेरिका के कार्यकारी निदेशक ध्रुव जयशंकर और जर्मन मार्शल फंड के इंडो-पैसिफिक प्रोग्राम में सीनियर फेलो समीर लालवानी शामिल हैं। ये तीनों विशेषज्ञ भारतीय मूल के हैं और वॉशिंगटन में दक्षिण एशिया पर नीति-निर्माण व विश्लेषण के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

इस सुनवाई में भारत के रक्षा आधुनिकीकरण और अमेरिका के साथ बढ़ती सैन्य साझेदारी पर विशेष फोकस रहेगा। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच रक्षा तकनीकों,सैन्य अभ्यासों और इंटरऑपरेबिलिटी से जुड़ी परियोजनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अमेरिका के लिए भारत अब केवल एक क्षेत्रीय सहयोगी भर नहीं,बल्कि एक दीर्घकालिक साझेदार के रूप में उभर रहा है,जो चीन द्वारा उत्पन्न रणनीतिक चुनौतियों का मुकाबला करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में भारत–अमेरिका सहयोग के विस्तार पर भी चर्चा होने की उम्मीद है। विशेष रूप से ‘इंडिया–यूएस इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी’ (आईसीईटी) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग,सेमीकंडक्टर निर्माण और रक्षा नवाचार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। आईसीईटी के माध्यम से दोनों देश उभरती तकनीकों में वैश्विक मानक स्थापित करने और आपूर्ति श्रृंखलाओं में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं। यह पहल न केवल तकनीकी साझेदारी को मजबूत बनाती है,बल्कि आर्थिक और सुरक्षा ढांचों में व्यापक तालमेल का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका तेजी से बढ़ रही है और इसी वजह से वाशिंगटन के लिए नई दिल्ली का महत्व कई गुना बढ़ गया है। अमेरिका इस क्षेत्र को ‘फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक’ के रूप में देखता है,जहाँ नियम-आधारित व्यवस्था,समुद्री स्वतंत्रता और क्षेत्रीय स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। चीन की आक्रामक नीतियों और दक्षिण चीन सागर में उसके विस्तार को देखते हुए अमेरिका के लिए भारत एक स्वाभाविक सहयोगी बन गया है। यही कारण है कि क्वाड जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी दोनों देशों की साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है।

इस सुनवाई का समय भी काफी महत्वपूर्ण है। यह बैठक ऐसे वक्त में होने जा रही है जब भारत और अमेरिका आर्थिक,रणनीतिक और तकनीकी मोर्चों पर अभूतपूर्व सहयोग को आगे बढ़ा रहे हैं। साथ ही,रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी दो दिवसीय शिखर बैठक के लिए दिल्ली पहुँचे हुए हैं। इस समानांतर कूटनीतिक गतिविधि से यह संदेश मिलता है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में संतुलन साधने का प्रयास कर रहा है। यह बात अमेरिकी सांसदों के लिए भी विश्लेषण का विषय होगी कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को किस प्रकार अमेरिका के साथ गहरे सहयोग के साथ संतुलित कर रहा है।

अमेरिकी कांग्रेस में भारत को लेकर समर्थन लगातार बढ़ता रहा है। सांसदों का एक मजबूत वर्ग नई दिल्ली को इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी रणनीति का ‘कोर पार्टनर’ मानता है। कांग्रेस में होने वाली ऐसी सुनवाई न केवल नीति-निर्माण की प्रक्रिया को मजबूत करती हैं,बल्कि सांसदों को सुरक्षा चुनौतियों,आर्थिक अवसरों और कूटनीतिक प्राथमिकताओं को समझने और भविष्य की रणनीतियों को आकार देने का अवसर भी देती हैं। इससे यह साफ होता है कि वाशिंगटन भारत के साथ दीर्घकालिक एवं व्यापक साझेदारी को मजबूती देने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत–अमेरिका संबंधों की यह सुनवाई आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच सहयोग की नई दिशाओं का संकेत दे सकती है। चाहे वह रक्षा आधुनिकीकरण हो,समुद्री सुरक्षा,सप्लाई चेन स्थिरता या उभरती तकनीकों में नेतृत्व—दोनों देश इन सभी मोर्चों पर एक-दूसरे के स्वाभाविक और विश्वसनीय साझेदार बनते जा रहे हैं। ऐसे में 10 दिसंबर की यह बैठक द्विपक्षीय संबंधों की भविष्य की राह पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हो सकती है।