प्रधानमंत्री मोदी बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए (तस्वीर क्रेडिट@MahendraForBJP)

महापरिनिर्वाण दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मुर्मू ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की

नई दिल्ली,6 दिसंबर (युआईटीवी)- आज पूरे देश में संविधान निर्माता,सामाजिक न्याय के पुरोधा और वंचित वर्गों की आवाज बने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाई जा रही है। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन पहुँचकर भारतीय लोकतंत्र की इस महान विभूति को श्रद्धांजलि दी। दोनों नेताओं ने अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए उनके योगदान को नमन किया और भारतीय समाज, संविधान और लोकतंत्र को मजबूत करने में उनकी भूमिका को याद किया। देशभर में भी आज विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम,सभाएँ और श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए जा रहे हैं, जहाँ लोगों ने बाबा साहब के जीवन,विचारों और संघर्षों को स्मरण किया।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी बाबा साहब को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा कि डॉ. अंबेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया। उन्होंने कहा कि संविधान,लोकतंत्र और विकास के संकल्प को सुदृढ़ बनाने के लिए बाबा साहब द्वारा किए गए प्रयास हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। मध्यप्रदेश इसलिए भी विशेष रूप से इस महान आत्मा से जुड़ा है क्योंकि डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को इसी प्रदेश के महू में हुआ था। उनका बचपन संघर्षों में बीता,लेकिन उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा को अपना हथियार बनाया और आगे चलकर विश्व के शीर्ष शिक्षाविदों और चिंतकों में शामिल हो गए।

बाबा साहब ने जीवनभर सामाजिक अन्याय,छुआछूत,भेदभाव और असमानता के खिलाफ संघर्ष किया। वे मानते थे कि कोई समाज तभी आगे बढ़ सकता है,जब उसके कमजोर वर्गों को समान अवसर और सम्मान मिले। इसी सोच के साथ उन्होंने शिक्षा के विस्तार और दलित समाज के उत्थान को अपनी प्राथमिकता बनाया। उनका मानना था कि शिक्षा ही वह साधन है जो किसी भी शोषित व्यक्ति को आत्मनिर्भर और सशक्त बना सकता है। उन्होंने समाज में बराबरी की स्थापना के लिए अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया और व्यापक सामाजिक सुधारों को दिशा दी।

भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी भूमिका ऐतिहासिक और अपूर्व थी। संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. अंबेडकर ने भारत को एक ऐसा संविधान दिया जिसमें हर नागरिक को समानता,स्वतंत्रता,न्याय और गरिमा का अधिकार सुनिश्चित किया गया। उन्होंने मौलिक अधिकारों की नींव इस प्रकार रखी कि भारतीय लोकतंत्र का हर स्तंभ सामाजिक न्याय की भावना से ओतप्रोत हो। उनका जोर हमेशा इस बात पर रहा कि संविधान केवल शासन की किताब न बने,बल्कि यह समाजिक परिवर्तन का मार्गदर्शक दस्तावेज भी बने। उनकी दूरदर्शिता का परिणाम है कि भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा और सशक्त लोकतंत्र है।

डॉ. अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था। उनकी पुण्यतिथि को बौद्ध परंपरा के अनुरूप ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ कहा जाता है। जीवन के अंतिम चरण में उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और उसके सिद्धांतों को सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में देखा। बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण उस अंतिम अवस्था को कहा जाता है,जब व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करता है। बाबा साहब के लिए बौद्ध धर्म केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं था,बल्कि वह समानता, करुणा और वैज्ञानिक दृष्टि पर आधारित एक सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया और इसे मानव गरिमा और सामाजिक न्याय का माध्यम बताया।

आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर देशभर में उनके विचारों और सिद्धांतों को याद किया जा रहा है। बौद्ध विहारों,सामाजिक स्थलों और अंबेडकर स्मारकों पर श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित की जा रही हैं। लोग उनके बताए मार्ग—समानता,बंधुत्व,वैज्ञानिक सोच और शिक्षा को आत्मसात करने का संकल्प दोहरा रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र का इतिहास बाबा साहब की बौद्धिक विरासत के बिना अधूरा है। उनका जीवन आज भी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बना हुआ है,जो सामाजिक न्याय,समान अवसर और मानव अधिकारों की लड़ाई में विश्वास रखते हैं।

महापरिनिर्वाण दिवस सिर्फ स्मरण का अवसर नहीं,बल्कि उस संकल्प को दोहराने का भी दिन है,जिससे बाबा साहब का जीवन ओतप्रोत रहा—एक ऐसा समाज बनाने का संकल्प,जहाँ किसी भी व्यक्ति के साथ उसके जन्म,जाति,भाषा या पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव न हो,बल्कि सबको सम्मान और अवसर मिले। बाबा साहब का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है,जितना उनके समय में था। उनके सपनों का भारत तभी साकार होगा,जब हम उनके संविधान में निहित मूल्यों को जीवन में उतारेंगे और सामाजिक सद्भाव व न्याय की दिशा में आगे बढ़ते रहेंगे।