वाशिंगटन,9 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कृषि क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से जूझ रहे अमेरिकी किसानों को राहत देने के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। व्हाइट हाउस में आयोजित बैठक में किसानों,उद्योग प्रतिनिधियों और अधिकारियों के साथ चर्चा के बाद ट्रंप ने बताया कि अमेरिकी सरकार किसानों को लगभग 12 अरब डॉलर की सहायता प्रदान करेगी। यह राशि ट्रेडिंग पार्टनर्स से मिलने वाले टैरिफ रेवेन्यू से जुटाई जाएगी। ट्रंप के इस फैसले ने न केवल अमेरिकी किसानों में उम्मीद जगाई है,बल्कि वैश्विक कृषि बाजार में नई हलचल भी पैदा कर दी है,खासतौर पर भारत जैसे देशों के लिए,जिनका अमेरिकी बाजार में कृषि उत्पादों का निर्यात लगातार बढ़ रहा है।
बैठक के दौरान ट्रंप ने एशियाई देशों,विशेष रूप से भारत,चीन और थाईलैंड से आने वाले कृषि उत्पादों पर अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि इन देशों से आयातित चावल और अन्य कृषि उत्पाद अत्यधिक सस्ते होते हैं,जिससे अमेरिकी किसानों की आय पर दबाव बढ़ रहा है। ट्रंप ने यह भी साफ किया कि अमेरिकी किसानों के हितों की रक्षा के लिए शुल्क (टैरिफ) एक शक्तिशाली हथियार है,जिसका उपयोग वे बेझिझक करेंगे। उन्होंने अमेरिकी किसानों को देश की रीढ़ बताते हुए कहा कि शुल्क बढ़ाने का यह कदम कृषि क्षेत्र को मजबूत करने की उनकी दीर्घकालिक योजना का अहम हिस्सा है।
बैठक में भारत का उल्लेख उस समय विशेष रूप से हुआ,जब लुइज़ियाना की एक प्रमुख चावल उत्पादक कंपनी की सीईओ मेरिल कैनेडी ने शिकायत की कि भारत,थाईलैंड और चीन जैसे देश बड़े पैमाने पर सस्ता चावल भेज रहे हैं,जिससे अमेरिकी बाजार में मूल्य संतुलन बिगड़ रहा है। उन्होंने ट्रंप से अनुरोध किया कि भारत के खिलाफ अधिक कड़े कदम उठाए जाएँ और टैरिफ बढ़ाया जाए। कैनेडी ने डब्ल्यूटीओ में भारत के खिलाफ दायर केस का भी जिक्र किया और कहा कि सब्सिडी प्राप्त चावल वैश्विक बाजार में अमेरिकी उत्पादों की हिस्सेदारी को नुकसान पहुँचा रहा है।
जब बैठक में एक अधिकारी ने बताया कि अमेरिका में बिकने वाले दो प्रमुख चावल ब्रांड भारतीय कंपनियों के स्वामित्व में हैं,तो ट्रंप ने तुरंत नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि वे इस मामले पर त्वरित कार्रवाई करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि “टैरिफ लगाने से इस समस्या का समाधान कुछ ही मिनटों में हो सकता है”। ट्रंप का यह बयान संकेत देता है कि आने वाले महीनों में भारत से कृषि आयात को लेकर अमेरिकी नीतियां काफी सख्त हो सकती हैं।
बैठक में सोयाबीन और अन्य फसलों पर भी गहन चर्चा हुई। अमेरिकी किसानों की चिंताओं को देखते हुए ट्रंप ने कहा कि उन्होंने हाल ही में चीन के राष्ट्रपति से बातचीत की है,जिसके बाद चीन ने भारी मात्रा में अमेरिकी सोयाबीन खरीदना शुरू कर दिया है। अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की कि चीन आने वाले महीनों में बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदने का वादा कर चुका है। इस बयान ने सोयाबीन उत्पादक किसानों में कुछ हद तक राहत पहुँचाई है,क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव के चलते इस फसल पर काफी असर पड़ा था।
कई किसानों और विशेषज्ञों ने बैठक में यह भी कहा कि भारत से जुड़े व्यापार मुद्दे सिर्फ मूल्य प्रतिस्पर्धा तक सीमित नहीं हैं,बल्कि यह अमेरिकी कमोडिटी बाजारों के भविष्य से भी संबंधित हैं। उनका कहना था कि सब्सिडी प्राप्त विदेशी उत्पादों की बढ़ती मौजूदगी अमेरिकी किसानों के लिए दीर्घकालिक खतरा बन सकती है। मेरिल कैनेडी ने चावल को “राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा” बताते हुए चेतावनी दी कि यदि यह स्थिति जारी रही,तो अमेरिकी चावल उद्योग वैश्विक बाजार से बाहर भी हो सकता है।
हालाँकि,कुछ अधिकारियों ने चर्चा के दौरान यह भी आरोप लगाया कि बाइडेन प्रशासन के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर हुई और किसानों को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया। उनका दावा था कि ट्रंप का नया शुल्क-आधारित दृष्टिकोण कृषि समुदाय के भीतर विश्वास और स्थिरता को वापस ला सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार पिछले एक दशक में लगातार बढ़ा है। भारत अमेरिका को बासमती चावल,मसाले,चाय, समुद्री उत्पाद और तिलहन का निर्यात करता है। वहीं अमेरिका से बादाम,कपास,दालें और फल भारत भेजे जाते हैं,लेकिन चावल और चीनी पर सब्सिडी जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच समय-समय पर विवाद उठते रहे हैं। भारत का तर्क रहा है कि उसके किसान वैश्विक मूल्य असमानताओं से जूझते हैं और सब्सिडी उनके लिए आवश्यक है,जबकि अमेरिका का कहना है कि इन सब्सिडियों का असर उनके घरेलू उद्योग पर पड़ता है।
ट्रंप के नए बयानों से संकेत स्पष्ट है कि वे कृषि क्षेत्र में शुल्कों को एक महत्वपूर्ण हथियार के रूप में देखने लगे हैं। उनके इस रुख से एशियाई देशों,खासकर भारत के लिए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण हो सकता है। यदि अमेरिका ने भारतीय कृषि उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए,तो इसका असर भारत के निर्यात,किसानों की आमदनी और दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों पर पड़ सकता है। वहीं अमेरिकी किसान उम्मीद कर रहे हैं कि इन कदमों से उनका बाजार मजबूत होगा और उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में थोड़ी राहत मिलेगी।
आने वाले महीनों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में एक नया तनाव देखने को मिल सकता है। अब निगाहें इस बात पर होंगी कि क्या अमेरिकी प्रशासन वाकई भारतीय चावल और अन्य कृषि उत्पादों पर नए शुल्क लगाएगा और भारत इस पर क्या प्रतिक्रिया देगा।
