कैनबरा,9 दिसंबर (युआईटीवी)- ऑस्ट्रेलिया ने बुधवार से दुनिया का पहला ऐसा कानून लागू कर दिया है,जिसके तहत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अकाउंट बनाने से रोका जाएगा। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया,जो बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ बचपन प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा सुधार है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ कानून का बदलाव नहीं है,बल्कि एक सांस्कृतिक बदलाव है जिसकी देश को लंबे समय से जरूरत थी।
अल्बनीज ने सोशल मीडिया बैन को लेकर देश के राज्यों और स्थानीय प्रशासन से मिले समर्थन के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि यह निर्णय माता-पिता को ज्यादा मानसिक शांति देगा। उन्होंने यह भी माना कि इस बदलाव के शुरुआती दौर में कुछ एडजस्टमेंट की चुनौतियाँ जरूर होंगी,लेकिन यह बदलाव देश के भविष्य—यानि बच्चों के हित में आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया अब यह सुनिश्चित करना चाहता है कि डिजिटल दुनिया के उलझे हुए माहौल में बच्चों की मासूमियत और सुरक्षा के साथ कोई समझौता न हो।
यह प्रतिबंध नवंबर 2024 में फेडरल पार्लियामेंट से पास किए गए उन कानूनों पर आधारित है,जिनके अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए “उचित कदम” उठाने होंगे कि 16 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा उनके प्लेटफॉर्म पर अपना अकाउंट न बना सके। सरकार का मानना है कि यह कदम सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव को कम करेगा। खासतौर पर युवा उपयोगकर्ताओं पर बढ़ते स्क्रीन टाइम और हानिकारक कंटेंट के प्रभाव को रोकने में यह कानून निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
सरकार द्वारा 2025 की शुरुआत में कराए गए एक राष्ट्रीय अध्ययन ने इस दिशा में चिंताजनक आँकड़े सामने रखे थे। अध्ययन में पाया गया कि 10 से 15 वर्ष के लगभग 96 प्रतिशत बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग करते थे। इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि इन बच्चों में से हर 10 में से 7 किसी न किसी हानिकारक कंटेंट के संपर्क में आ चुके थे। इन कंटेंट में महिलाओं के प्रति नफरत फैलाने वाली पोस्ट,हिंसक सामग्री,खानपान से जुड़ी खतरनाक सलाहें और आत्महत्या को बढ़ावा देने वाले वीडियो व संदेश शामिल थे। यह परिणाम सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी थे कि डिजिटल स्पेस में बच्चों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाना अब अत्यावश्यक हो चुका है।
नए प्रतिबंध के तहत 10 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों—फेसबुक,इंस्टाग्राम,स्नैपचैट,थ्रेड्स,टिकटॉक,ट्विच,एक्स (पूर्व में ट्विटर),यूट्यूब,किक और रेडिट—को 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सभी अपेक्षित अकाउंट्स की पहचान करके उन्हें प्रतिबंधित करना होगा। भविष्य में जरूरत पड़ने पर इस सूची को बढ़ाया भी जा सकता है। सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया कंपनियों को बच्चों की उम्र की पुष्टि करने के लिए विश्वसनीय तकनीक का उपयोग करना होगा,हालाँकि इसके पूरी तरह प्रभावी होने में कुछ समय लग सकता है।
प्रधानमंत्री अल्बनीज ने पूरे देश के स्कूलों में छात्रों को दिखाए जाने वाले एक वीडियो संदेश में कहा कि यह बदलाव उन बच्चों का समर्थन करने के लिए है,जिन्होंने एल्गोरिदम के दबाव और सोशल मीडिया फीड के प्रभाव के बीच बड़े होने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि लगातार तुलना,लाइक्स की चाहत और अवास्तविक मानकों वाले कंटेंट ने बच्चों की मानसिक सेहत पर गहरा असर डाला है। ऐसे माहौल से बच्चों को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के तहत यदि कोई बच्चा या उसके माता-पिता नियमों का उल्लंघन करते पाए जाते हैं,तो उन पर कोई दंड नहीं लगाया जाएगा। पूरी जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों पर होगी। यदि कोई प्लेटफॉर्म गंभीर या बार-बार नियमों का उल्लंघन करता है,तो उस पर 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 32.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक का भारी-भरकम जुर्माना लगाया जा सकता है। सरकार का कहना है कि दंड का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियाँ बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें और उम्र की पुष्टि की तकनीक को जल्द से जल्द प्रभावी ढंग से लागू करें।
ऑस्ट्रेलिया का यह फैसला उन देशों के लिए भी एक संकेत है जो सोशल मीडिया के बढ़ते दुष्प्रभावों से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मॉडल आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बनेगा। कई देशों में पहले ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों पर सवाल उठाए जा रहे हैं और ऑस्ट्रेलिया का यह कदम एक मिसाल के रूप में देखा जा सकता है।
आने वाले महीनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह प्रतिबंध कितनी प्रभावशीलता के साथ लागू होता है और सोशल मीडिया कंपनियां इसकी जिम्मेदारी को किस तरह से निभाती हैं,लेकिन एक बात साफ है कि ऑस्ट्रेलिया ने अपने बच्चों के लिए डिजिटल दुनिया को सुरक्षित बनाने की दिशा में साहसिक कदम उठाया है। प्रधानमंत्री अल्बनीज के शब्दों में—“बच्चों को उनका बचपन लौटाना ही इस कानून का सबसे बड़ा उद्देश्य है और हम इसे किसी भी कीमत पर सुनिश्चित करेंगे।”
