व्हाइट हाउस

अमेरिका में गैसोलीन के दाम साढ़े चार साल के निचले स्तर पर,व्हाइट हाउस ने नीतियों को बताया असरदार,ऊर्जा बाजार में बदलाव पर बढ़ी राजनीतिक तकरार

वाशिंगटन,9 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका में गैसोलीन की कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है और यह साढ़े चार साल के सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुकी हैं। गैसबडी के ताजा सर्वे के अनुसार,देश में रेगुलर गैस की औसत कीमत 1,681 दिनों के न्यूनतम स्तर पर है। इस गिरावट को व्हाइट हाउस अपनी ‘अमेरिकी एनर्जी डोमिनेंस’ नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम बता रहा है। देश के बड़े हिस्सों में उपभोक्ताओं को पेट्रोल की कीमतों में महत्वपूर्ण राहत मिल रही है,वहीं इसके पीछे की राजनीति भी तेजी से गर्माती दिख रही है।

नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक,अमेरिका के 37 राज्यों में गैसोलीन की औसत कीमत 3 डॉलर प्रति गैलन से नीचे आ चुकी है। इनमें से 22 राज्यों में दाम 2.75 डॉलर प्रति गैलन से भी कम हैं,जबकि 5 राज्यों में कीमत 2.50 डॉलर से नीचे दर्ज की गई है। कुछ राज्यों में स्थिति और भी बेहतर रही,जहाँ उपभोक्ताओं को पेट्रोल 2 डॉलर प्रति गैलन से भी कम दाम पर मिला। कोलोराडो में तो कीमत 1.69 डॉलर प्रति गैलन तक पहुँच गई,जो हाल के वर्षों में दुर्लभ स्तर माना जा रहा है।

व्हाइट हाउस का कहना है कि इन गिरते दामों का सबसे बड़ा कारण ऊर्जा उत्पादन और घरेलू सप्लाई चेन को मजबूत करने वाली नीतियाँ हैं। सरकार का तर्क है कि पिछले कुछ महीनों में लिए गए फैसलों से स्थानीय उत्पादन में वृद्धि हुई है और बाजार में स्थिरता आई है। बाइडेन प्रशासन के अनुसार,वैश्विक परिस्थितियों के बीच भी घरेलू स्तर पर कीमतों को गिराने में वे सफल हुए हैं।

हालाँकि,बयान में यह स्वीकार किया गया कि बाइडेन कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में गैसोलीन कीमतों में तेज उछाल आया था। महामारी के बाद वैश्विक माँग बढ़ने,रूस-यूक्रेन युद्ध,सप्लाई बाधाओं और अन्य भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया में ऊर्जा कीमतों को प्रभावित किया। व्हाइट हाउस ने पिछले वर्षों में गैसोलीन के रिकॉर्ड दामों को स्वीकार करते हुए कहा कि उस समय उन्हें रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व का उपयोग करना पड़ा था,फिर भी कीमतें ऊँची बनी रहीं।

दूसरी ओर,राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पुन: चुनाव अभियान ने इस स्थिति को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश तेज कर दी है। ट्रंप कैंप का दावा है कि उनके दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी नागरिकों ने पिछले 20 वर्षों में अपनी आय का सबसे कम हिस्सा गैसोलीन पर खर्च किया। उनके अनुसार,बाइडेन सरकार के चार वर्षों में बढ़ते सरकारी खर्च,खुली सीमाओं और ऊर्जा विरोधी नीतियों के कारण आम परिवारों पर महँगाई का अतिरिक्त बोझ पड़ा। ट्रंप प्रशासन का यह भी कहना है कि वे सत्ता में लौटने पर ऊर्जा क्षेत्र में सुधार और घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए “आक्रामक कदम” उठाएँगे,जिससे उपभोक्ताओं को अधिक राहत मिलेगी।

गैसोलीन की गिरती कीमतों के बीच अमेरिका के आर्थिक संकेतक भी सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं। हाल के सप्ताहों में उपभोक्ता विश्वास में सुधार देखा गया है,बेरोजगारी दर स्थिर बनी हुई है और महँगाई दर में मामूली कमी आई है। व्हाइट हाउस का कहना है कि यह सब मिलकर इस बात का संकेत देता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था सही दिशा में बढ़ रही है और आने वाले महीनों में और सुधार देखने को मिल सकता है। उनकी दलील है कि ऊर्जा कीमतों में स्थिरता से न केवल उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ कम होगा,बल्कि व्यापक अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।

हालाँकि,विशेषज्ञ इस गिरावट को केवल सरकारी नीतियों का परिणाम मानने को लेकर सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि गर्मियों के बाद अक्सर पेट्रोल की माँग घटती है,जिससे कीमतों पर स्वाभाविक रूप से दबाव कम होता है। इसके अलावा वैश्विक तेल बाजार में पिछले कुछ महीनों से स्थिरता बनी हुई है और कच्चे तेल की कीमतें अपेक्षाकृत सीमित दायरे में रह गई हैं। विश्लेषकों का यह भी कहना है कि तेल उत्पादक देशों द्वारा अत्यधिक कटौती न करने से भी कीमतों में राहत मिली है।

फिलहाल,सर्दियों के आगमन से पहले ऊर्जा कीमतों में गिरावट आम अमेरिकी परिवारों के लिए राहतभरी मानी जा रही है,क्योंकि ठंड के मौसम में हीटिंग के खर्च बढ़ जाते हैं। ऊर्जा कीमतों में होने वाला उतार-चढ़ाव सीधे उपभोक्ता विश्वास और सरकार के आर्थिक प्रदर्शन की छवि पर असर डालता है। यही वजह है कि इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है।

आने वाले समय में कीमतें किस दिशा में जाएँगी,यह काफी हद तक मौसम,वैश्विक कच्चे तेल के उत्पादन,ओपेक देशों के निर्णय और घरेलू माँग पर निर्भर करेगा। फिलहाल,गिरते दामों ने अमेरिकी जनता को थोड़ी राहत और सर्दियों से पहले कुछ हद तक सुरक्षा की भावना जरूर दी है।