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आरबीआई ने बढ़ाई बाजार में लिक्विडिटी: 50,000 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदकर अर्थव्यवस्था में डाला नया बल

मुंबई,12 दिसंबर (युआईटीवी)- भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने देश के बैंकिंग सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिए एक बड़ा कदम उठाते हुए बुधवार को 50,000 करोड़ रुपए के सरकारी बॉन्ड खरीदे। केंद्रीय बैंक का यह फैसला अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बनाए रखने और वित्तीय प्रणाली में सुचारू नकदी प्रवाह सुनिश्चित करने की रणनीति का हिस्सा है। यह कार्रवाई आरबीआई द्वारा हाल ही में घोषित मौद्रिक नीति उपायों के अनुरूप की गई है,जिनके तहत दिसंबर महीने में कुल 1 लाख करोड़ रुपए मूल्य के बॉन्ड बाजार से खरीदे जाएँगे। इसके अलावा,विदेशी मुद्रा अदला-बदली (फॉरेक्स स्वैप) सुविधा के जरिए करीब 5 अरब डॉलर के बराबर की राशि भी बैंकिंग सिस्टम में डाली जाएगी।

पिछले कुछ महीनों में भारतीय वित्तीय बाजारों पर वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और विदेशी मुद्रा की माँग में वृद्धि का प्रभाव देखने को मिला है। रुपया डॉलर के मुकाबले दबाव में रहा है और उसकी कमजोरी को रोकने के लिए आरबीआई लगातार विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है। अमेरिकी डॉलर बेचने की इस प्रक्रिया के चलते बैंकिंग सिस्टम से काफी नकदी बाहर निकल गई,जिसके कारण अल्पकालिक ब्याज दरों में वृद्धि का जोखिम बढ़ गया। ऐसे में आरबीआई ने यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया है कि बैंकों के पास पर्याप्त भंडार रहे और वे सुचारू रूप से ऋण देने,निवेश करने और लेन-देन को निर्बाध रूप से जारी रख सकें।

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की हालिया बैठक के दौरान आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इस बात पर जोर दिया था कि केंद्रीय बैंक स्पष्ट रूप से किसी निश्चित स्तर की अधिशेष लिक्विडिटी को लक्षित नहीं करेगा,बल्कि वह ‘पर्याप्त तरलता’ बनाए रखने पर ध्यान देगा। उन्होंने कहा था कि मौद्रिक संचरण—यानी रेपो रेट में बदलाव का बाज़ार दरों और बैंकिंग प्रणाली पर प्रभाव उचित रूप से हो रहा है और इसे सुचारू रखने के लिए बैंकों के पास पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराना आवश्यक है। उन्होंने समझाया था कि सिस्टम की लिक्विडिटी कभी-कभी शुद्ध माँग और समय देनदारियों (एनडीटीएल) के 1 प्रतिशत से ऊपर पहुँचती है,जबकि सामान्यतः यह 0.6 से 1 प्रतिशत के बीच रहती है। उनके अनुसार,यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि बैंकिंग प्रणाली को आवश्यकता के अनुरूप भंडार मिले,न कि किसी विशेष संख्या को लक्षित किया जाए।

तरलता बढ़ाने के लिए आरबीआई द्वारा अपनाई गई दो प्रमुख रणनीतियों में ओपन मार्केट ऑपरेशंस (ओएमओ) और फॉरेक्स बाय-सेल स्वैप शामिल हैं। ओएमओ के तहत केंद्रीय बैंक प्राथमिक बाजार से सरकारी बॉन्ड खरीदकर बैंकों को नकदी उपलब्ध कराता है। इस महीने 1 लाख करोड़ रुपए की खरीद को दो चरणों में पूरा किया जाना है—पहली किस्त 50,000 करोड़ रुपए की 11 दिसंबर को और दूसरी किस्त 50,000 करोड़ रुपए की 18 दिसंबर तक की जाएगी। यह राशि सीधे तौर पर बाजार में नकदी बढ़ाने में मदद करेगी,जिससे ब्याज दरों पर दबाव कम हो सकता है और ऋण प्रवाह बेहतर हो सकता है।

इसी तरह विदेशी मुद्रा अदला-बदली सुविधा—यानी यूएसडी/आईएनआर बाय-सेल स्वैप के माध्यम से 16 दिसंबर को तीन साल की अवधि के लिए 5 अरब डॉलर के बराबर की अतिरिक्त लिक्विडिटी डाली जाएगी। इस प्रक्रिया में आरबीआई बाजार को डॉलर उपलब्ध कराता है,जबकि समानांतर रूप से रुपये की आपूर्ति बढ़ाता है। इससे विदेशी मुद्रा बाजार स्थिर रहता है और बैंकिंग व्यवस्था में भी नकदी समाहित होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई का यह कदम मौजूदा परिदृश्य में बेहद महत्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की मौद्रिक नीतियों में सख्ती के संकेतों ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ाया है। भारत में भी बांड यील्ड्स में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है,जबकि बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी कई बार संकट के नजदीक पहुँच जाती है। ऐसे में केंद्रीय बैंक का यह हस्तक्षेप न सिर्फ अल्पकालिक ब्याज दरों को स्थिर रखने के लिए जरूरी है,बल्कि इससे बैंकिंग प्रणाली में विश्वास भी बढ़ता है।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस तरह की लिक्विडिटी सपोर्ट से कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी,सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में निवेश को मजबूती मिलेगी और आर्थिक विकास को गति मिल सकती है। खासतौर पर त्योहारों के बाद के व्यावसायिक महीनों में नकदी की माँग बढ़ जाती है,जिसे पूरा करने के लिए यह कदम समयोचित माना जा रहा है।

आरबीआई ने साफ किया है कि वह स्थिति पर करीबी नजर बनाए रखेगा और आवश्यकतानुसार आगे भी कदम उठाने से नहीं हिचकेगा। वर्तमान परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करना कि वित्तीय प्रणाली तनावमुक्त रहे,खुदरा और औद्योगिक क्षेत्रों में ऋण उपलब्धता बनी रहे और रुपये की स्थिरता कायम रहे—केंद्रीय बैंक की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है। अतः मौद्रिक नीति के हालिया निर्णय और लिक्विडिटी समर्थन कार्यक्रम भारत की आर्थिक गति को संतुलित और मजबूत बनाए रखने की दिशा में एक दृढ़ कदम के तौर पर देखा जा रहा है।