मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम (तस्वीर क्रेडिट@mdunis59)

मेक्सिको ने एशियाई देशों पर लगाया 50% टैरिफ: भारत और चीन पर सबसे बड़ा असर,वैश्विक व्यापार में मच सकती है उथल-पुथल

नई दिल्ली,12 दिसंबर (युआईटीवी)- वैश्विक व्यापार परिदृश्य में बड़ा बदलाव लाते हुए मेक्सिको ने भारत,चीन और कई एशियाई देशों से आने वाले उत्पादों पर 50 फीसदी तक टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इस प्रस्ताव को मेक्सिको की सीनेट ने मंजूरी दे दी है और इसे 2026 से लागू किया जाएगा। अमेरिका द्वारा लगाए गए कड़े टैरिफ के बाद मेक्सिको का यह कदम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में नई प्रतिस्पर्धा और तनाव को जन्म दे सकता है। इस निर्णय का सीधा प्रभाव उन देशों पर पड़ेगा,जिनके साथ मेक्सिको का कोई व्यापार समझौता नहीं है। इनमें भारत,चीन,पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया,थाईलैंड और इंडोनेशिया प्रमुख हैं।

सीनेट में पेश प्रस्ताव को 76 वोटों के साथ मंजूरी मिली,जबकि विरोध में केवल 5 वोट पड़े। 35 सदस्य अनुपस्थित रहे,लेकिन बहुमत के आधार पर इसे पारित कर दिया गया। नए टैरिफ संरचना के तहत कई प्रकार के सामानों पर 50 प्रतिशत शुल्क लागू किया जाएगा,जबकि कुछ उत्पादों पर शुल्क बढ़ाकर 35 फीसदी तक किया जा रहा है। इस फैसले का लक्ष्य घरेलू उद्योगों को मजबूत करना बताया जा रहा है,लेकिन व्यापार समूहों का मानना है कि यह कदम विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकता है और सप्लाई चेन में अतिरिक्त लागत जोड़ देगा।

मेक्सिको सरकार ने जिन उत्पादों पर भारी शुल्क लगाने की योजना बनाई है,उनमें ऑटोमोबाइल,ऑटो पार्ट्स,टेक्सटाइल,कपड़े,प्लास्टिक प्रोडक्ट्स और स्टील जैसे मुख्य उद्योग शामिल हैं। ये वही उत्पाद हैं,जिनका भारत और अन्य एशियाई देश बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं। मेक्सिको का कहना है कि घरेलू निर्माताओं को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना उसकी प्राथमिकता है,लेकिन व्यापार जगत को डर है कि इससे मेक्सिको के उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा।

भारत के लिए इस फैसले का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि भारत मेक्सिको को व्यापक श्रेणी के सामान निर्यात करता है। इसमें गाड़ियाँ,मोटरसाइकिल,ऑटोमोबाइल के पुर्जे,इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ,मशीनें,ऑर्गेनिक केमिकल,एल्युमिनियम उत्पाद,दवाइयाँ,कपड़ा और रत्न-आभूषण प्रमुख हैं। मेक्सिको भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार तक पहुँच का एक महत्वपूर्ण मार्ग भी है,क्योंकि कई भारतीय कंपनियाँ मेक्सिको के जरिए उत्तरी अमेरिकी देशों को प्रोडक्ट्स सप्लाई करती हैं।

अब 50 फीसदी टैरिफ लगाए जाने के बाद भारत से मेक्सिको भेजे जाने वाले इन प्रोडक्ट्स की लागत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होना तय है। इसका सीधा असर न केवल मेक्सिको के बाजार पर पड़ेगा,बल्कि अमेरिकी बाजार तक पहुँचने वाले भारतीय उत्पादों की कीमतों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। इससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा क्षमता प्रभावित हो सकती है।

वहीं,आयात की बात करें तो भारत मेक्सिको से मुख्यत: कच्चा तेल,पेट्रोलियम उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण,मशीनरी,ऑटो पार्ट्स और रसायन आयात करता है। हालाँकि,मेक्सिको से आयात भारत के मुकाबले कम है,लेकिन नए टैरिफ नियम दोनों देशों के बीच मौजूदा व्यापार ढाँचे को बदल सकते हैं। 2024 में मेक्सिको से भारत का आयात 2.74 अरब डॉलर था,जबकि निर्यात 8.98 अरब डॉलर तक पहुँच गया था। कुल मिलाकर 2024 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 11.7 बिलियन डॉलर का रहा था। यह आँकड़ा कोविड के बाद की तेजी से उभरती आर्थिक साझेदारी को दर्शाता है,लेकिन नए टैरिफ नियम इसे झटका दे सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि मेक्सिको का यह कदम घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के उद्देश्य से तो लिया गया है,लेकिन इसके दूरगामी परिणाम काफी जटिल हो सकते हैं। एक ओर जहाँ यह विदेशी कंपनियों के लिए लागत बढ़ाएगा,वहीं दूसरी ओर मेक्सिको के भीतर उत्पादन लागत और उपभोक्ता कीमतों में भी वृद्धि होगी। इससे स्थानीय बाजार पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है।

दूसरी तरफ भारत और मेक्सिको के बीच पिछले वर्षों में तेजी से बढ़ा व्यापारिक सहयोग अब चुनौती के दौर में प्रवेश कर सकता है। भारतीय निर्यातकों को अब नए आयात शुल्क ढाँचे के अनुकूल अपनी रणनीतियों में बदलाव करना होगा। कई उद्योगों में उत्पादों की कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह कदम अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों की तर्ज पर उठाया गया लगता है। अमेरिका जहाँ चीन और अन्य देशों पर बड़े पैमाने पर आयात शुल्क लगा चुका है,वहीं मेक्सिको अब उसी राह पर चलता दिख रहा है। इससे वैश्विक व्यापार में तनाव और बढ़ने की संभावना है।

आने वाले वर्षों में यह फैसला एशियाई देशों और मेक्सिको के बीच व्यापारिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। भारत के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है,क्योंकि उसे अपने निर्यात ढाँचे,मूल्य निर्धारण और बाजार रणनीति में व्यापक बदलाव लाने पड़ सकते हैं। हालाँकि,यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत और अन्य प्रभावित देश इस नए टैरिफ ढाँचे के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और क्या इस मुद्दे पर कूटनीतिक स्तर पर कोई समाधान निकाले जाने की कोशिश होती है।