अमेरिकी सीनेटरों ने पेश किया ‘डीआरओपी एक्ट’ (तस्वीर क्रेडिट@SenJonHusted)

रूस से तेल खरीदने वालों पर शिकंजा कसने की तैयारी: अमेरिकी सीनेटरों ने पेश किया ‘डीआरओपी एक्ट’,यूक्रेन युद्ध की फंडिंग रोकने की कोशिश

वॉशिंगटन,17 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका ने रूस–यूक्रेन युद्ध को लेकर अपने रुख को और सख्त करते हुए रूस से तेल खरीदने वाले देशों और कंपनियों पर दबाव बढ़ाने की तैयारी कर ली है। इसी कड़ी में अमेरिकी सीनेट में एक नया द्विदलीय विधेयक पेश किया गया है,जिसका मकसद उन विदेशी कंपनियों और संस्थाओं पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना है,जो रूस से पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद जारी रखती हैं। अमेरिका का कहना है कि रूस को तेल व्यापार से जो पैसा मिल रहा है,उसका इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ चल रही उसकी सैन्य कार्रवाई को मजबूत करने में किया जा रहा। उस कमाई के बड़े स्रोत को बंद करने के लिए इस प्रस्ताव को लाया जा रहा है।

ओहायो से रिपब्लिकन सीनेटर जॉन हस्टेड ने पेन्सिलवेनिया के सीनेटर डेव मैककॉर्मिक,मैसाचुसेट्स की डेमोक्रेट सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन और डेलावेयर के सीनेटर क्रिस्टोफर कून्स के साथ मिलकर ‘2025 का घटता हुआ रूसी तेल मुनाफा’, यानी ‘डिक्रीसिंग रूसी ऑयल प्रॉफिट (डीआरओपी) एक्ट’ पेश किया है। इस बिल के तहत अमेरिकी सरकार को यह अधिकार मिलेगा कि वह उन विदेशी व्यक्तियों,कंपनियों या संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए,जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूसी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद,बिक्री या परिवहन में शामिल पाई जाती हैं।

सीनेटर जॉन हस्टेड ने इस प्रस्ताव को दुनिया के लिए एक स्पष्ट चेतावनी बताया। उन्होंने कहा कि यह बिल साफ संदेश देता है कि जो देश या कंपनियाँ रूसी तेल खरीदना जारी रखेंगी,उन्हें इसके नतीजे भुगतने होंगे। उनके अनुसार,अब ऐसे देशों के दोहरे रवैये को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा,जो एक ओर सार्वजनिक मंचों पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नीतियों की आलोचना करते हैं और दूसरी ओर तेल खरीदकर उनकी ‘वॉर मशीन’ को फंड करते हैं। हस्टेड ने जोर देकर कहा कि रूस के खिलाफ केवल बयानबाजी काफी नहीं है,बल्कि ठोस आर्थिक कदम उठाने की जरूरत है।

इस प्रस्ताव के तहत कुछ परिस्थितियों में देशों को सीमित छूट देने का भी प्रावधान रखा गया है। अगर कोई देश यूक्रेन को पर्याप्त सैन्य या आर्थिक मदद देता है,तो उसे कुछ हद तक प्रतिबंधों से राहत मिल सकती है। इसका उद्देश्य उन अमेरिकी सहयोगियों और व्यापारिक साझेदारों को प्रेरित करना है,जो अभी भी किसी न किसी रूप में रूसी ऊर्जा आपूर्ति पर निर्भर हैं,ताकि वे धीरे-धीरे इस निर्भरता को कम करें और वैकल्पिक स्रोतों की ओर बढ़ें।

हस्टेड ने इस संदर्भ में अमेरिकी ऊर्जा उद्योग की भूमिका की भी बात की। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी सहयोगी देशों को तेल की जरूरत है,तो वे अमेरिका से तेल खरीद सकते हैं। उनका कहना था कि जो देश रूसी तेल खरीदने पर अड़े रहते हैं,यह बिल उन्हें आगे आकर यूक्रेन के समर्थन में ठोस कदम उठाने के लिए मजबूर करेगा। इस तरह अमेरिका न केवल रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाना चाहता है,बल्कि अपने ऊर्जा निर्यात को भी बढ़ावा देना चाहता है।

बिल के समर्थकों का कहना है कि रूस पर पहले से लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद वैश्विक बाजार में रूसी तेल की माँग पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। चीन,भारत,तुर्किए और ईरान जैसे देश आज भी रूसी तेल के बड़े खरीदारों में गिने जाते हैं। एक प्रेस रिलीज में यह भी कहा गया कि हालाँकि लगभग सभी यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को किसी न किसी रूप में सहायता दी है,लेकिन इसके बावजूद कुछ यूरोपीय देश अभी भी रूस से तेल और गैस खरीद रहे हैं। इससे क्रेमलिन को राजस्व मिलता है,जो युद्ध को लंबा खींचने में मददगार साबित हो रहा है।

सीनेटर डेव मैककॉर्मिक ने कहा कि रूसी तेल की निरंतर खरीद शांति प्रयासों को सीधे तौर पर कमजोर करती है। उनके अनुसार,कोई भी देश या संस्था जो रूसी तेल खरीदती है,वह अनजाने में ही सही,लेकिन यूक्रेन में रूस के हमले को फंड कर रही है। मैककॉर्मिक ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति पुतिन ने यह साफ कर दिया है कि वह युद्ध खत्म करने को लेकर गंभीर नहीं हैं और इसलिए उनकी युद्ध मशीन को ईंधन देने वालों को इसकी कीमत चुकानी चाहिए।

डेमोक्रेट सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन ने इस बिल को अमेरिकी वित्तीय प्रणाली की ताकत से जोड़ते हुए देखा। उन्होंने कहा कि क्रेमलिन चाहे अपने निर्यात नेटवर्क में कितना भी फेरबदल क्यों न करे,जो भी रूसी तेल के आयातकों की मदद करेगा,उसे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली तक पहुँच खोने का खतरा रहेगा। वॉरेन ने कहा कि अमेरिका को यह दिखाना होगा कि वह रूस के लिए युद्ध की लागत लगातार बढ़ा सकता है,क्योंकि पुतिन अपनी पसंद का क्रूर युद्ध जारी रखे हुए हैं।

सीनेटर क्रिस्टोफर कून्स ने इस कानून को नैतिक और रणनीतिक,दोनों दृष्टि से जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि पुतिन तभी रुकेंगे जब उन्हें मजबूती से रोका जाएगा। कून्स ने रूस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह एक ऐसा युद्ध है,जिसमें आम नागरिकों को यातनाएँ दी गईं,लोगों की हत्या की गई,बच्चों का अपहरण किया गया और लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाला गया। उनके अनुसार,यह द्विदलीय बिल रूसी तेल के असली खरीदारों को निशाना बनाकर पुतिन की आर्थिक लाइफलाइन काटने का काम करेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह विधेयक कानून बनता है,तो इसका वैश्विक ऊर्जा बाजार पर भी असर पड़ सकता है। कई देश,खासकर विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ,सस्ते रूसी तेल पर निर्भर हैं। ऐसे में उन्हें या तो वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी होगी या अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ अपने रिश्तों को संतुलित करना होगा। भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति कूटनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकती है,क्योंकि भारत ने अब तक ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए रूस से तेल खरीद जारी रखी है,साथ ही यूक्रेन में युद्ध को लेकर बातचीत और कूटनीति पर जोर दिया है।

‘डीआरओपी एक्ट’ अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा है,जिसके जरिए वह रूस पर दबाव बढ़ाकर उसे युद्ध समाप्त करने की दिशा में मजबूर करना चाहता है। यह देखना अहम होगा कि यह प्रस्ताव कानून का रूप लेता है या नहीं और अगर लेता है,तो वैश्विक राजनीति और ऊर्जा व्यापार में इसका असर कितना व्यापक होता है।