ईरान के ‘शैडो फ्लीट’ पर ट्रंप प्रशासन की बड़ी कार्रवाई (तस्वीर क्रेडिट@MilitaryObs2222)

ईरान के ‘शैडो फ्लीट’ पर ट्रंप प्रशासन की बड़ी कार्रवाई,भारत से जुड़ी कंपनियों समेत 29 जहाजों पर अमेरिकी प्रतिबंध

वॉशिंगटन,19 दिसंबर (युआईटीवी)- ट्रंप प्रशासन ने गुरुवार को ईरान के कथित गुप्त पेट्रोलियम शिपिंग नेटवर्क के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए 29 जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिए। इस कार्रवाई में भारत से जुड़ी कई शिपिंग कंपनियाँ और परिचालन इकाइयाँ भी शामिल हैं,जिन पर सैकड़ों मिलियन डॉलर मूल्य के ईरानी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की ढुलाई में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। अमेरिकी वित्त विभाग यानी ट्रेजरी ने साफ किया है कि यह कदम ईरानी शासन की उन आय धाराओं को रोकने के लिए उठाया गया है,जिनका इस्तेमाल आतंकवाद,सैन्य गतिविधियों और अन्य अवैध कार्यों के लिए किए जाने का आरोप है।

अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि ईरान लंबे समय से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने के लिए एक तथाकथित “शैडो फ्लीट” का इस्तेमाल करता रहा है। इस नेटवर्क के जरिए ईरानी कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों को गुप्त और धोखाधड़ीपूर्ण तरीकों से वैश्विक बाजारों तक पहुँचाया जाता है। ट्रेजरी के अनुसार,जिन 29 जहाजों को प्रतिबंधित किया गया है,वे इसी नेटवर्क का हिस्सा हैं और इनका संचालन अलग-अलग देशों में पंजीकृत कंपनियों के जरिए किया जा रहा था,ताकि वास्तविक लाभकारी स्वामित्व को छिपाया जा सके।

इस कार्रवाई को लेकर अमेरिकी विदेश विभाग के प्रिंसिपल डिप्टी स्पोक्सपर्सन टॉमी पिगॉट ने कहा कि अमेरिका ईरानी शासन की उस आय के प्रवाह को रोकने के लिए लगातार कदम उठा रहा है,जिसका इस्तेमाल आतंकवाद और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए किया जाता है। उनके मुताबिक,यह प्रतिबंध ईरान की उस क्षमता को और सीमित करेंगे,जिसके जरिए वह गुप्त और धोखाधड़ीपूर्ण शिपिंग तरीकों से पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करता रहा है।

ट्रेजरी विभाग की ओर से जारी बयान में बताया गया कि प्रतिबंधित नेटवर्क में मिस्र के व्यवसायी हातेम एलसैद फरीद इब्राहिम सक्र से जुड़ी कंपनियाँ और जहाज भी शामिल हैं। सक्र द्वारा संचालित यह नेटवर्क संयुक्त अरब अमीरात,भारत,मार्शल आइलैंड्स और पनामा जैसे देशों में फैला हुआ बताया गया है। ट्रेजरी के मुताबिक,29 में से कम-से-कम सात जहाज सीधे तौर पर सक्र से जुड़ी कंपनियों के स्वामित्व या प्रबंधन में पाए गए हैं। इन कंपनियों पर आरोप है कि वे ईरानी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की ढुलाई में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं।

भारत से जुड़े जिन जहाजों के नाम अमेरिकी प्रतिबंध सूची में सामने आए हैं,उनमें बारबाडोस ध्वज वाला जहाज ‘फ्लोरा डोल्से’ प्रमुख है। इस जहाज का स्वामित्व और प्रबंधन भारत स्थित रुकबाट मरीन सर्विसेज कंपनी के पास बताया गया है। अमेरिकी आरोपों के अनुसार,फ्लोरा डोल्से ने अप्रैल 2025 से अब तक ईरानी फ्यूल ऑयल के लाखों बैरल की ढुलाई की है। ट्रेजरी का कहना है कि इस दौरान जहाज ने अपनी गतिविधियों को छिपाने के लिए भ्रामक तरीकों का इस्तेमाल किया,जो शैडो फ्लीट की सामान्य कार्यप्रणाली मानी जाती है।

इसी तरह पनामा ध्वज वाला जहाज ‘ऑरोरा’, जिसे भारत स्थित गोल्डन गेट शिप मैनेजमेंट संचालित करता है,पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अमेरिकी वित्त विभाग के अनुसार,इस जहाज ने ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों,जिनमें नैफ्था और कंडेन्सेट शामिल हैं,के लाखों बैरल का परिवहन किया। ट्रेजरी का दावा है कि इस शिपमेंट के जरिए ईरान को भारी मात्रा में राजस्व प्राप्त हुआ,जिसे बाद में शासन की सैन्य और अन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया गया।

एक अन्य जहाज ‘राम्या’,जिसे भारत की दर्या शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित और प्रबंधित किया जाता है,पर सितंबर 2025 से अब तक एक लाख बैरल से अधिक ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन का आरोप लगाया गया है। अमेरिकी ट्रेजरी के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय के अनुसार,ये सभी जहाज ईरान के शैडो फ्लीट का हिस्सा हैं और इन्होंने प्रतिबंधों से बचने के लिए बार-बार जहाज के झंडे बदलने,ट्रांसपोंडर बंद रखने और जहाज-से-जहाज तेल हस्तांतरण जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया।

ट्रेजरी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस नेटवर्क में अक्सर केवल एक-एक जहाज के स्वामित्व और प्रबंधन के लिए अलग-अलग कंपनियां बनाई जाती हैं। इसका उद्देश्य वास्तविक लाभकारी मालिकों को छिपाना और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों की निगरानी से बचना होता है। कई जहाज वर्षों से ईरानी पेट्रोलियम की ढुलाई से जुड़े रहे हैं और 2025 में इनकी गतिविधियों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। ट्रेजरी के मुताबिक, प्रतिबंधित जहाज ईरानी कच्चे तेल के अलावा फ्यूल ऑयल,बिटुमेन,नैफ्था और कंडेन्सेट जैसे उत्पादों के परिवहन में भी शामिल रहे हैं।

अलग बयान में आतंकवाद और वित्तीय खुफिया मामलों के लिए ट्रेजरी के अंडर सेक्रेटरी जॉन के. हर्ली ने इस कार्रवाई के व्यापक रणनीतिक उद्देश्य को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अमेरिका ईरान को कभी भी परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं देगा। हर्ली के अनुसार,ट्रेजरी विभाग ईरानी शासन को उस पेट्रोलियम राजस्व से वंचित करता रहेगा,जिसका इस्तेमाल वह अपनी सैन्य योजनाओं,हथियार कार्यक्रमों और क्षेत्रीय अस्थिरता फैलाने के लिए करता है।

ट्रेजरी ने बताया कि ये नए प्रतिबंध कार्यकारी आदेश 13902 के तहत लगाए गए हैं,जो ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों को निशाना बनाता है। राष्ट्रपति ट्रंप के दोबारा पद सँभालने के बाद से अब तक 180 से अधिक जहाजों पर प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं। अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि इन कदमों से ईरानी तेल निर्यातकों की लागत में काफी बढ़ोतरी हुई है और उन्हें प्रति बैरल मिलने वाली आय में भी गिरावट आई है।

अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषकों के मुताबिक,इस तरह की कार्रवाइयों का असर सिर्फ ईरान पर ही नहीं,बल्कि उन देशों और कंपनियों पर भी पड़ता है,जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस शिपिंग नेटवर्क से जुड़ी होती हैं। भारत से जुड़ी कंपनियों के नाम सामने आने के बाद यह मामला नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच कूटनीतिक स्तर पर भी चर्चा का विषय बन सकता है। हालाँकि,अभी तक भारत सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ट्रंप प्रशासन ईरान पर “अधिकतम दबाव” की नीति को एक बार फिर आक्रामक रूप से लागू कर रहा है। इसका मकसद ईरान की आर्थिक क्षमता को कमजोर करना और उसे अपने परमाणु और क्षेत्रीय कार्यक्रमों पर पुनर्विचार के लिए मजबूर करना है। तेल निर्यात ईरान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है और इसी क्षेत्र को निशाना बनाकर अमेरिका उसे रणनीतिक रूप से कमजोर करना चाहता है।

दूसरी ओर,ईरान लंबे समय से इन आरोपों को खारिज करता रहा है और अमेरिकी प्रतिबंधों को अवैध तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ बताता आया है। ईरानी अधिकारियों का कहना है कि वे अपने संसाधनों का वैध व्यापार कर रहे हैं और अमेरिका राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस तरह के कदम उठा रहा है।

29 जहाजों पर लगाए गए ताजा प्रतिबंध न केवल ईरान के शैडो फ्लीट के खिलाफ अब तक की सबसे व्यापक कार्रवाइयों में से एक माने जा रहे हैं,बल्कि इससे वैश्विक शिपिंग उद्योग और ऊर्जा बाजारों पर भी असर पड़ सकता है। भारत से जुड़ी कंपनियों के नाम सामने आने से यह मामला और भी संवेदनशील हो गया है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि इस कार्रवाई का कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है और संबंधित कंपनियाँ तथा सरकारें इस पर किस तरह प्रतिक्रिया देती हैं।