नई दिल्ली,23 दिसंबर (युआईटीवी)- अरावली पर्वतमाला को लेकर चल रही बहस और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच केंद्र सरकार ने एक बार फिर अपना रुख साफ कर दिया है। केंद्रीय पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली क्षेत्र में अवैध खनन की जड़ें कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में गहराई तक फैली थीं। उन्होंने दावा किया कि उस दौर में बड़े पैमाने पर गैरकानूनी खनन हो रहा था,जिसकी वजह से कई सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों को मजबूरन अदालत का रुख करना पड़ा। आज अरावली को लेकर जो याचिकाएँ और कानूनी लड़ाइयाँ चल रही हैं,वे उसी समय की देन हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मौजूदा स्थिति पूरी तरह अलग है और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बाद अरावली क्षेत्र में खनन को लेकर सरकार का रुख बिल्कुल साफ और सख्त है। उन्होंने दो टूक कहा कि अब अरावली में किसी भी तरह का खनन केवल सतत,वैज्ञानिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से ही किया जाएगा। सरकार का प्राथमिक उद्देश्य अरावली पर्वतमाला का संरक्षण करना है,न कि उसे नुकसान पहुँचाना।
अरावली को लेकर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही तुलना पर प्रतिक्रिया देते हुए भूपेंद्र यादव ने इसे पूरी तरह भ्रामक बताया। उन्होंने कहा कि अरावली की स्थिति की तुलना नर्मदा परियोजना से करना तथ्यहीन और राजनीति से प्रेरित है। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक,गुजरात में नर्मदा परियोजना को लेकर जिस तरह के आरोप कभी लगाए गए थे,वैसी ही कहानी अब अरावली के मामले में गढ़ने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने इसे कांग्रेस के राजनीतिक माहौल में फैलाया गया एक और झूठ करार दिया और कहा कि जनता अब इस तरह के भ्रम को समझ चुकी है।
भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि अरावली के मुद्दे पर जानबूझकर डर और गलतफहमी फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं,लेकिन ये प्रयास अब सफल नहीं हो पा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक दल और हित समूह इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं,जबकि सच्चाई यह है कि मौजूदा सरकार पारदर्शिता और वैज्ञानिक सोच के साथ अरावली के संरक्षण के लिए काम कर रही है।
केंद्रीय मंत्री ने कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के समय उठे विवादों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह उस दौरान विदेशी एजेंसियों और कुछ एनजीओ की भूमिका को लेकर सवाल उठे थे,उसी तरह अब अरावली के मामले में भी भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। उनका दावा है कि अरावली को लेकर कुछ राजनीतिक विरोधी जानबूझकर गलत जानकारी फैला रहे हैं,ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके। हालाँकि,सरकार के कदमों और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के चलते ऐसे प्रयास पूरी तरह नाकाम हो चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लेकर फैली भ्रांतियों पर भी भूपेंद्र यादव ने स्थिति पूरी तरह स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने अरावली क्षेत्र में किसी तरह की छूट नहीं दी है,जैसा कि कुछ लोग दावा कर रहे हैं। इसके उलट,सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की ‘ग्रीन अरावली परियोजना’ को मान्यता दी है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक अरावली के लिए एक विस्तृत और वैज्ञानिक योजना तैयार नहीं हो जाती,तब तक किसी भी नए खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
केंद्रीय मंत्री के अनुसार,सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरआई) को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह अरावली पर्वतमाला और उससे जुड़े पूरे क्षेत्र का वैज्ञानिक अध्ययन करे। इस अध्ययन के तहत अरावली की भौगोलिक पहचान,उसकी इको-सेंसिटिविटी और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाएगा। इसके बाद ही यह तय किया जाएगा कि किन क्षेत्रों में क्या गतिविधियां संभव हैं और कहाँ पूरी तरह रोक लगाई जानी चाहिए।
भूपेंद्र यादव ने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य अरावली में अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगाना है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में अगर कहीं खनन की अनुमति दी भी जाती है,तो वह केवल सतत खनन के सिद्धांतों के तहत होगी,ताकि पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुँचे। सरकार का फोकस इस बात पर है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाया जाए।
अरावली पर्वतमाला को उत्तर भारत की ‘ग्रीन वॉल’ माना जाता है,जो दिल्ली-एनसीआर सहित आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यह पर्वतमाला न सिर्फ जैव विविधता का घर है,बल्कि भूजल संरक्षण और जलवायु संतुलन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में अरावली का संरक्षण सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है।
केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार अरावली को लेकर किसी भी तरह की राजनीति से ऊपर उठकर काम कर रही है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सभी फैसले वैज्ञानिक तथ्यों,विशेषज्ञों की सलाह और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप ही लिए जाएँगे। अरावली को बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं और आने वाले समय में इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएँगे।
केंद्र सरकार का संदेश साफ है कि अरावली को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम और आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है। सरकार का दावा है कि अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं और अवैध खनन का वह दौर पीछे छूट चुका है। भविष्य में अरावली का संरक्षण ही सर्वोच्च प्राथमिकता होगी और उसी दिशा में सभी नीतिगत फैसले लिए जाएँगे।
