अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

क्रिसमस पर ट्रंप का बड़ा ऐलान: उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया में आईएसआईएस के खिलाफ अमेरिकी हवाई हमला,सहयोग और सियासत दोनों पर उठे सवाल

वाशिंगटन,26 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबले के मुद्दे पर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। ट्रंप ने क्रिसमस के दिन अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया में आईएसआईएल (आईएसआईएस) से जुड़े आतंकवादियों के खिलाफ एक “शक्तिशाली और घातक” हवाई हमला किया है। यह घोषणा अपने समय और शब्दों के कारण न केवल सुरक्षा विश्लेषकों बल्कि राजनीतिक पर्यवेक्षकों के लिए भी चर्चा का विषय बन गई है। ट्रंप ने लिखा कि कमांडर इन चीफ के तौर पर उनके निर्देश पर यह अभियान चलाया गया और इसे उन समूहों के खिलाफ कार्रवाई बताया जो “निर्दोष ईसाइयों को बेरहमी से निशाना बना रहे थे।”

अपने संदेश में ट्रंप ने दावा किया कि आईएस आतंकियों ने लंबे समय से ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसक हमले किए,जिनकी तुलना उन्होंने “सदियों में न देखी गई” क्रूरता से की। उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले ही इन समूहों को चेतावनी दी थी कि यदि हत्याएँ और उत्पीड़न नहीं रुका,तो उन्हें इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा और “आज रात वही हुआ।” इस बयान ने संकेत दिया कि यह हमला केवल सामरिक प्रतिक्रिया नहीं,बल्कि पहले से सोच-समझकर दी गई चेतावनियों का परिणाम था।

अमेरिकी सेना की अफ्रीका कमांड (एएफआरआईसीओएम) ने भी इस कार्रवाई की पुष्टि की और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा जानकारी में बताया कि यह ऑपरेशन नाइजीरियाई अधिकारियों के औपचारिक अनुरोध पर संचालित किया गया। कमांड के अनुसार,हवाई हमले में “कई आतंकवादी” मारे गए और अभियान को स्थानीय सुरक्षा बलों के साथ समन्वय में अंजाम दिया गया।एएफआरआईसीओएम ने उस क्षेत्र की पहचान “सोबोटो राज्य” के रूप में की,जो नाइजीरिया के सोकोटो राज्य का हिस्सा है और हाल के वर्षों में उग्रवादी गतिविधियों के चलते संवेदनशील माना जाता रहा है।

अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने भी इस अभियान का समर्थन करते हुए कहा कि वे नाइजीरियाई सरकार के सहयोग के लिए आभारी हैं। उन्होंने यह संकेत भी दिया कि “और भी बहुत कुछ होने वाला है,” जिससे यह आभास मिलता है कि यह कार्रवाई किसी बड़े और दीर्घकालिक सुरक्षा ढाँचे का हिस्सा हो सकती है। उनके बयान को उन लोगों ने भी गौर से पढ़ा जो अफ्रीका में अमेरिकी हस्तक्षेप की प्रकृति और दायरे को लेकर पहले से चिंतित हैं।

यह सैन्य कदम उस बयान के कुछ ही हफ्तों बाद आया,जिसमें ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने पेंटागन को नाइजीरिया में संभावित सैन्य कार्रवाई की योजना तैयार करने का आदेश दिया है। उस समय ट्रंप ने तर्क दिया था कि देश में ईसाई समुदाय को संगठित और लगातार हिंसा का सामना करना पड़ रहा है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। उनके इस रुख ने धार्मिक उत्पीड़न बनाम व्यापक सुरक्षा संकट की व्याख्या को लेकर नई बहस छेड़ दी थी।

हालाँकि,नाइजीरिया की सरकार ने उस वक्त ट्रंप के दावों को सिरे से खारिज कर दिया था। अब भी उनका रुख यही है कि देश में सक्रिय सशस्त्र समूह केवल एक समुदाय को नहीं,बल्कि मुस्लिम और ईसाई दोनों को निशाना बनाते हैं। सरकारी प्रवक्ताओं का तर्क रहा है कि सुरक्षा चुनौतियों को “एकतरफा धार्मिक उत्पीड़न” के रूप में पेश करना वास्तविक स्थितियों को सरल बना देता है और उन प्रयासों की अनदेखी करता है जो नाइजीरियाई एजेंसियाँ कानून व्यवस्था बहाल करने में लगातार कर रही हैं।

अमेरिकी हमले की घोषणा के बाद नाइजीरिया के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार सुबह एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि सरकार आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के खतरे से निपटने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अपने अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ संरचित सुरक्षा सहयोग में जुड़ी हुई है। हालाँकि,बयान में यह भी स्पष्ट किया गया कि ऐसी किसी भी कार्रवाई को नाइजीरिया की संप्रभुता और कानूनी प्रक्रियाओं के अनुरूप होना चाहिए। इस संतुलित प्रतिक्रिया को विशेषज्ञ एक तरह की “कूटनीतिक सावधानी” बताते हैं,जिसमें सहयोग का संदेश भी है और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा पर जोर भी।

अफ्रीका में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और उसका दायरा लंबे समय से विवादित मुद्दा रहा है। समर्थकों का तर्क है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बिना सीमा-पार आतंकवाद और आईएस जैसे नेटवर्क से मुकाबला करना मुश्किल है। इसके विपरीत आलोचक चेतावनी देते हैं कि बाहरी सैन्य कार्रवाइयां स्थानीय तनावों को बढ़ा सकती हैं,क्षेत्रीय राजनीति को जटिल बना सकती हैं और कभी-कभी स्थायी समाधान की बजाय अल्पकालिक दबाव ही पैदा करती हैं। नाइजीरिया के मामले में भी यह बहस तेज हो गई है कि क्या इस तरह के हवाई हमले हिंसा की जड़ों को खत्म करेंगे या नए असंतोष और अविश्वास को जन्म देंगे।

स्थानीय स्तर पर, सोकोटो और इससे सटे इलाकों में हाल के वर्षों में उग्रवादी हिंसा,अपहरण और ग्रामीण समुदायों पर हमलों की घटनाएँ बढ़ती रही हैं। सामाजिक-सांप्रदायिक तनाव,बेरोज़गारी और कमजोर प्रशासनिक पकड़ ने कई जगहों पर सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौतियाँ बढ़ाई हैं। ऐसे परिदृश्य में अमेरिकी मदद को कुछ लोग क्षमता-वृद्धि के रूप में देखते हैं,जबकि अन्य इसे घरेलू नीतियों में बाहरी हस्तक्षेप के रूप में आंकते हैं।

क्रिसमस के दिन ट्रंप द्वारा इस अभियान की घोषणा ने राजनीतिक प्रतीकवाद को और गहरा कर दिया। समर्थक इसे “ईसाइयों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता” के रूप में पेश कर रहे हैं,तो आलोचक इसे धार्मिक भावनाओं को संबोधित करने वाली राजनीतिक रणनीति कह रहे हैं। इस पूरी बहस के बीच यह सवाल भी उभर रहा है कि क्या आने वाले समय में अमेरिका और नाइजीरिया के बीच सुरक्षा सहयोग और अधिक आक्रामक रूप लेगा या फिर इसे संस्थागत ढाँचे के भीतर नियंत्रित और संतुलित रखा जाएगा।

फिलहाल,एएफआरआईसीओएम और नाइजीरियाई प्रशासन दोनों ने यह स्पष्ट किया है कि ऑपरेशन की जाँच और उसके प्रभाव का आकलन जारी है। यह भी कहा गया है कि हवाई हमले में नागरिकों के हताहत होने की कोई तत्काल रिपोर्ट नहीं है, हालाँकि,स्वतंत्र पुष्टि अभी बाकी है। वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार समूह इस तरह की कार्रवाइयों के दौरान पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देते रहे हैं और इस मामले में भी वे करीबी निगरानी रखे हुए हैं।

अंततः,उत्तर-पश्चिम नाइजीरिया में हुआ यह ऑपरेशन केवल एक सैन्य कार्रवाई भर नहीं,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति,धार्मिक पहचान,आतंकवाद-रोधी रणनीति और संप्रभुता के जटिल समीकरणों का हिस्सा बन गया है। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि क्या यह हमला आईएसआईएस से जुड़े नेटवर्क के लिए निर्णायक झटका साबित होता है या फिर यह व्यापक सुरक्षा बहस में एक और विवादास्पद अध्याय जोड़ देगा।