नई दिल्ली,26 दिसंबर (युआईटीवी)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संथाली भाषा में भारत के संविधान के प्रकाशन की पहल की सराहना करते हुए इसे एक ऐतिहासिक और प्रेरक कदम बताया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर राष्ट्रपति की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री ने लिखा कि यह प्रयास न केवल सराहनीय है,बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करने वाला है। उन्होंने कहा कि स्वदेशी भाषाओं में संविधान की उपलब्धता से आदिवासी समुदायों के बीच संवैधानिक जागरूकता और लोकतांत्रिक भागीदारी का विस्तार होगा। प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में भारतीय परंपराओं,संस्कृतियों और भाषाई विविधता के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि देश अपनी सांस्कृतिक विरासत और उससे मिली लोकतांत्रिक चेतना पर गर्व करता है।
यह टिप्पणी उस कार्यक्रम के संदर्भ में आई,जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह के दौरान ओल चिकी लिपि में लिखे संथाली संस्करण में भारत के संविधान का विमोचन किया। यह अवसर इसलिए भी विशेष था क्योंकि इस वर्ष ओल चिकी लिपि की शताब्दी मनाई जा रही है। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि संथाली भाषा में संविधान का प्रकाशित होना संथाल समुदाय के लिए गर्व और खुशी का क्षण है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह पहल संथाली भाषी नागरिकों को अपने संविधान को अपनी ही भाषा में पढ़ने,समझने और उससे गहरा जुड़ाव महसूस करने का अवसर देगी।
राष्ट्रपति ने विधि एवं न्याय मंत्रालय और उसकी टीम के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि शताब्दी वर्ष में इस प्रकाशन का महत्व और भी बढ़ जाता है। उनके अनुसार,संविधान केवल कानूनों का दस्तावेज नहीं,बल्कि देश के नागरिकों के अधिकारों,कर्तव्यों और मूल्यों का जीवंत मार्गदर्शक है। ऐसे में इसे मातृभाषा में उपलब्ध कराना लोकतंत्र की पहुँच को व्यापक बनाता है और नागरिकों को यह एहसास दिलाता है कि संविधान वास्तव में उनका अपना है। उन्होंने विश्वास जताया कि संथाली भाषा में संविधान उपलब्ध होने से आदिवासी समुदाय अधिक सशक्त होंगे और प्रशासनिक व संवैधानिक प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी में वृद्धि होगी।
संथाली भाषा को वर्ष 2003 में 92वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। इसे भारत की प्राचीन जीवित भाषाओं में माना जाता है और यह मुख्यतः झारखंड,ओडिशा,पश्चिम बंगाल और बिहार के आदिवासी समुदायों द्वारा बोली जाती है। ओल चिकी लिपि के आविष्कार ने संथाली साहित्य,शिक्षा और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को नई पहचान दी। अब उसी लिपि में संविधान का प्रकाशन उस सांस्कृतिक यात्रा को आगे बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे न केवल भाषा संरक्षण को बल मिलेगा,बल्कि युवा पीढ़ी में अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व और जड़ता का भाव भी मजबूत होगा।
समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू ने क्षेत्रीय भाषा में संबोधन करते हुए कहा कि उन्हें संथाली भाषा में संविधान जारी करने पर गहरी खुशी हो रही है। उन्होंने इसे पूरे संथाली समाज के लिए “खुशी का बड़ा स्रोत” बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्वदेशी भाषाओं में संविधान उपलब्ध कराने से नागरिकों और लोकतांत्रिक ढाँचे के बीच की दूरी कम होती है। कई बार भाषा की बाधा के कारण लोग कानून और संविधान को जटिल समझते हैं,लेकिन जब वही सामग्री अपनी भाषा में सामने आती है,तो उसे समझना सरल हो जाता है और लोकतंत्र के प्रति सहभागिता की भावना प्रबल होती है।
प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया भी इसी विचारधारा को आगे बढ़ाती दिखाई दी। उन्होंने उल्लेख किया कि जब संवैधानिक दस्तावेज़ समाज के अंतिम छोर तक अपनी ही भाषा और सांस्कृतिक संदर्भों में पहुँचते हैं,तो लोकतंत्र की बुनियाद और मजबूत होती है। उन्होंने कहा कि भारत की विविध भाषाएँ और संस्कृतियाँ न केवल हमारी पहचान हैं,बल्कि राष्ट्र की एकता और शक्ति का आधार भी हैं। इस पहल को उन्होंने “तारीफ के काबिल काम” बताते हुए इसे जनभागीदारी और समावेशन की दृष्टि से महत्वपूर्ण करार दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल केवल प्रतीकात्मक नहीं,बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी दूरगामी प्रभाव डाल सकती है। आदिवासी क्षेत्रों में अक्सर कानूनी जागरूकता की कमी और भाषा अवरोध के कारण सरकारी योजनाओं और अधिकारों का लाभ पूरी तरह नहीं पहुँच पाता। संथाली भाषा में संविधान उपलब्ध होने से स्कूलों,कॉलेजों और सामुदायिक संस्थानों में संवैधानिक अध्ययन को बढ़ावा मिलेगा। इससे नागरिक अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों और संवैधानिक मूल्यों को बेहतर ढंग से आत्मसात कर पाएंगे।
इसके साथ ही,यह कदम भारत की बहुभाषी नीति और “एक भारत,श्रेष्ठ भारत” की भावना के अनुरूप भी दिखाई देता है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार और संवैधानिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं में आधिकारिक दस्तावेज़ उपलब्ध कराने के प्रयास तेज हुए हैं। संथाली संस्करण उसी क्रम का हिस्सा है,जिसका व्यापक उद्देश्य भाषा-आधारित असमानताओं को कम करना और लोकतंत्र को अधिक समावेशी बनाना है।
कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र तभी मजबूत होता है,जब हर नागरिक खुद को उससे जुड़ा महसूस करे। संविधान को मातृभाषा में उपलब्ध कराना उसी जुड़ाव का सेतु है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में अन्य स्वदेशी भाषाओं में भी इसी प्रकार के प्रकाशन होंगे,ताकि भारत की भाषाई विविधता लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हर स्तर पर प्रतिबिंबित हो सके। प्रधानमंत्री की सराहना और राष्ट्रपति की पहल ने मिलकर इस संदेश को और सुदृढ़ कर दिया कि भारत का लोकतंत्र तभी पूर्ण है,जब उसकी आवाज़ हर भाषा और हर समुदाय में समान रूप से सुनी जाए।
