एच-1बी वीज़ा

एच-1बी वीजा चयन में सैलरी आधारित नया फार्मूला—भारतीय पेशेवरों में बढ़ी अनिश्चितता,अमेरिका कहता है ‘उच्च कौशल को बढ़ावा’

वाशिंगटन,26 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका के प्रतिष्ठित एच-1बी वर्क वीजा कार्यक्रम में किए गए बड़े बदलाव ने भारतीय तकनीकी पेशेवरों,स्टार्टअप समुदाय और भारतीय-अमेरिकी परिवारों के बीच नई चिंता पैदा कर दी है। डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) ने स्पष्ट कर दिया है कि अब एच-1बी वीजा के लिए सीमित संख्या वाली कैप सिलेक्शन प्रक्रिया पूरी तरह रैंडम लॉटरी पर निर्भर नहीं रहेगी,बल्कि “सैलरी लेवल” के आधार पर वेटेड चयन किया जाएगा। फेडरल रजिस्टर में प्रकाशित अंतिम नियम के अनुसार,लाभार्थी के लिए प्रस्तावित वेतन जिस सैलरी स्तर से मेल खाता है,उसी के अनुसार रजिस्ट्रेशन को प्राथमिकता या वजन मिलेगा। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि जिन नियोक्ताओं द्वारा अधिक वेतन की पेशकश की जाएगी,उनके दर्ज रजिस्ट्रेशन के चयन होने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होगी।

भारतीय नागरिक,जो लंबे समय से एच-1बी अनुमोदनों में सबसे बड़ा समूह रहे हैं और रोजगार-आधारित ग्रीन कार्ड बैकलॉग से भी सबसे अधिक प्रभावित होते हैं,इस नीति परिवर्तन को गंभीरता से देख रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव अमेरिकी टेक कार्यबल में विदेशी प्रतिभा के प्रवेश के तरीके को मूल रूप से बदल सकता है। खासकर आईटी सेवाओं,मिड-साइज कंपनियों और स्टार्टअप सेक्टर में काम करने वाले हजारों भारतीय पेशेवरों के सामने चयन की नई बाधाएँ खड़ी हो सकती हैं,क्योंकि वेतन संरचना हमेशा बड़ी टेक कंपनियों के स्तर की नहीं होती।

डीएचएस का तर्क है कि नया नियम उन नौकरियों के लिए अधिक उपयुक्त उम्मीदवारों को आकर्षित करेगा,जहाँ उच्च कौशल और उन्नत योग्यता की आवश्यकता होती है। विभाग के अनुसार,नीति का उद्देश्य अमेरिकी कर्मचारियों के वेतन,कार्य स्थितियों और नौकरी के अवसरों की सुरक्षा करना है,साथ ही एच-1बी प्रोग्राम के उस कथित दुरुपयोग को रोकना है,जिसके चलते कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों की नियुक्ति करके अमेरिकी वर्कफोर्स को नुकसान पहुँचाया जाता रहा है। विभाग का दावा है कि सैलरी आधारित चयन मॉडल से यह सुनिश्चित होगा कि वीजा उन्हीं कंपनियों और भूमिकाओं को मिले,जो वास्तव में उच्च कौशल और बेहतर मुआवजा प्रदान करती हैं।

हालाँकि,नियम निर्माण प्रक्रिया के दौरान प्राप्त सार्वजनिक टिप्पणियों में एक अलग ही तस्वीर सामने आई। कई नियोक्ताओं,स्टार्टअप संस्थापकों और शैक्षणिक संस्थानों ने चिंता जताई कि एच-1बी पेशेवर अमेरिका में नवाचार,उत्पादकता वृद्धि और उद्यमिता के महत्वपूर्ण इंजन रहे हैं। उनका कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और पेशेवरों के योगदान ने न केवल शोध और प्रौद्योगिकी विकास को गति दी,बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण निवेश जोड़े। अनेक टिप्पणीकारों ने चेताया कि यदि चयन प्रणाली वेतन-केंद्रित हो गई, तो स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसाय नुकसान में चले जाएँगे,क्योंकि वे बड़ी, स्थापित टेक कंपनियों के वेतन से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। इससे नई कंपनियों में प्रतिभा का प्रवाह कम होगा और लंबे समय में नवाचार की रफ्तार धीमी पड़ सकती है।

एक टिप्पणी में स्पष्ट कहा गया कि शुरुआती चरण के स्टार्टअप्स अक्सर विशिष्ट कौशल वाले विदेशी पेशेवरों पर निर्भर रहते हैं,क्योंकि घरेलू बाजार में ऐसे विशेषज्ञ आसानी से उपलब्ध नहीं होते। यदि एच-1बी कार्यक्रम को अधिक महँगा,जटिल और वेतन-प्रधान बना दिया जाता है,तो ऐसे स्टार्टअप्स अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त खो सकते हैं। इससे अमेरिकी टेक नेतृत्व और वैश्विक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। आलोचकों के अनुसार,यह नीति बड़े निगमों को अप्रत्यक्ष लाभ और प्रतिभा तक पहुँच में असमानता पैदा कर सकती है।

डीएचएस ने इन तर्कों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। विभाग ने अपने लिखित जवाब में कहा कि नई प्रणाली अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभा तक पहुँच को सीमित नहीं करती,बल्कि सभी प्रकार और आकार के नियोक्ताओं को अधिक कुशल और उच्च वेतन पाने वाले पेशेवरों को आकर्षित करने और बनाए रखने का अवसर देती है। विभाग का मानना है कि जब वीजा उन्हीं भूमिकाओं को मिलता है,जो वास्तव में प्रीमियम सैलरी और उन्नत विशेषज्ञता की माँग करती हैं,तो कार्यक्रम अपने मूल उद्देश्य के और करीब पहुँचता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार,दीर्घकाल में इससे अमेरिकी नागरिकों और विदेशी पेशेवरों,दोनों के लिए अधिक स्थिर और न्यायसंगत श्रम बाजार तैयार होगा।

फिर भी,जमीनी हकीकत भारतीय-अमेरिकियों के लिए कहीं अधिक जटिल है। अमेरिका में बसे कई भारतीय मूल के नागरिकों के परिवार के सदस्य एच-1बी या अन्य अस्थायी वर्क वीजा पर हैं। ऐसे परिवारों की दिक्कत सिर्फ कार्यस्थल तक सीमित नहीं रहती। इसका असर आवास खरीदने,बच्चों की शिक्षा,दीर्घकालिक बसने के फैसलों और पारिवारिक स्थिरता पर भी पड़ता है। नई नीति से चयन की अनिश्चितता बढ़ने पर कई परिवारों को अपने भविष्य की योजनाएँ फिर से तय करनी पड़ सकती हैं। रोजगार में छोटे-छोटे बदलाव भी अब बड़ा जोखिम बन सकते हैं,क्योंकि सैलरी स्तर में उतार-चढ़ाव सीधे वीजा अवसरों पर असर डाल सकता है।

भारतीय आईटी कंपनियों और कंसल्टिंग फर्मों के लिए भी यह बदलाव रणनीतिक चुनौती लेकर आया है। परंपरागत रूप से,ये कंपनियाँ व्यापक पैमाने पर प्रोजेक्ट-आधारित भर्तियों के लिए एच-1बी कार्यक्रम का सहारा लेती रही हैं। सैलरी-आधारित चयन का अर्थ यह हो सकता है कि उन्हें अब या तो ऊँचे वेतन प्रस्ताव देने होंगे या फिर स्थानीय भर्ती और ‘ऑफशोर’ मॉडल के बीच नई संतुलन रणनीति विकसित करनी होगी। इससे लागत संरचना,प्रोजेक्ट प्राइसिंग और ग्राहक संबंधों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

दूसरी ओर,कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नया मॉडल “कौशल प्रीमियम” की अवधारणा को मजबूत कर सकता है। उच्च माँग वाले क्षेत्रों—जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस,साइबर सुरक्षा,क्लाउड आर्किटेक्चर,बायोटेक और उन्नत शोध में काम करने वाले पेशेवरों को इससे लाभ मिल सकता है,क्योंकि इन भूमिकाओं में स्वाभाविक रूप से बेहतर वेतन मिलता है। ऐसे उम्मीदवारों के चयन की संभावना अब पहले से ज्यादा हो सकती है। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि यदि कंपनियाँ वास्तव में विदेशी प्रतिभा चाहती हैं,तो वेतन मानकों को ऊपर उठाने से अमेरिकी और विदेशी दोनों कर्मचारियों के लिए अवसर और आय स्तर सुधर सकते हैं।

फिर भी,सवाल बना हुआ है कि क्या यह नीति “समान अवसर” के सिद्धांत के साथ न्याय कर पाएगी,खासकर उन युवा स्नातकों और शुरुआती करियर वाले पेशेवरों के लिए जो अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद पहली नौकरी की तलाश में होते हैं। कई अंतर्राष्ट्रीय छात्र अपेक्षाकृत कम वेतन वाली एंट्री-लेवल भूमिकाओं से शुरुआत करते हैं। सैलरी आधारित चयन में उनके लिए मुकाबला और कठिन हो सकता है,जिससे अमेरिका प्रतिभाशाली,परंतु अपने करियर की शुरुआती अवस्था में मौजूद युवाओं को खो सकता है।

बदलाव के इस दौर में भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनौती अनुकूलन की रहेगी। इमिग्रेशन विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि नियोक्ता भूमिका और वेतन की पारदर्शिता बढ़ाएँ,लंबी अवधि की योजना बनाएँ और वैकल्पिक वीजा विकल्पों—जैसे ओ-1, एल-1 या रिसर्च-ओरिएंटेड मार्गों पर भी विचार करें। वहीं,भारतीय-अमेरिकी समुदाय में व्यापक चर्चा यह है कि अमेरिकी नीति के लगातार बदलते माहौल में परिवारों को स्थिरता और भविष्य की सुरक्षा के लिए अधिक जागरूक और तैयार रहना होगा।

एच-1बी चयन प्रक्रिया में सैलरी आधारित यह नया फार्मूला अमेरिका के लिए श्रम बाजार सुधार का प्रयास है,जबकि भारतीय पेशेवरों के लिए यह अवसर और अनिश्चितता,दोनों का मिश्रण बनकर सामने आया है। आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि यह बदलाव वास्तव में “उच्च कौशल को बढ़ावा” देने वाला साबित होता है या फिर वैश्विक प्रतिभा के लिए नई बाधाएँ खड़ी करता है,लेकिन इतना तय है कि इसके प्रभाव व्यापक और दीर्घकालिक होंगे।