नई दिल्ली,27 दिसंबर (युआईटीवी)- दिल्ली की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। राजधानी में वायु गुणवत्ता पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच चल रही राजनीतिक जंग अब धार्मिक भावनाओं के मुद्दे से जुड़ गई है। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं सौरभ भारद्वाज,संजीव झा और आदिल अहमद खान के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने एक वीडियो के आधार पर एफआईआर दर्ज की है,जिसमें उन पर ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया गया है। इस मसले पर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इस कार्रवाई से आम आदमी पार्टी की “असंवेदनशील और छोटी राजनीति” जनता के सामने उजागर हो गई है।
सचदेवा ने आरोप लगाया कि सत्ता से बेदखल होने के बाद आम आदमी पार्टी के नेता सुर्खियों में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। उनके अनुसार,विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र में सभी को है,लेकिन इसके तरीके संवैधानिक और मर्यादित होने चाहिए। उन्होंने कहा कि एफआईआर में नामजद नेताओं ने धार्मिक आस्था का मजाक उड़ाकर ऐसा कृत्य किया है,जिसे कोई भी धर्म स्वीकार नहीं कर सकता। भाजपा नेता के मुताबिक,यह घटना उस समय हुई,जब ईसाई समुदाय अपने महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व की तैयारियों में व्यस्त था,ऐसे में इस तरह की प्रस्तुति स्वाभाविक रूप से आहत करने वाली मानी गई है।
मामला एक राजनीतिक वीडियो से जुड़ा है,जो 17 और 18 दिसंबर को इन नेताओं के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट्स से साझा किया गया था। यह वीडियो कनॉट प्लेस इलाके में किए गए एक स्किट पर आधारित बताया जा रहा है। शिकायत के अनुसार,इसमें सांता क्लॉज के रूप में दिखाया गया किरदार सड़क पर बेहोश होकर गिर जाता है और फिर उसे प्रदूषण तथा दिल्ली की वायु गुणवत्ता से जोड़कर एक राजनीतिक संदेश देने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वीडियो में सांता को मजाकिया अंदाज में नकली सीपीआर देते हुए भी दिखाया गया,जिसे शिकायतकर्ताओं ने क्रिसमस से जुड़े पवित्र प्रतीक और सेंट निकोलस की गरिमा के साथ खिलवाड़ करार दिया है।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि यह सब कुछ जानबूझकर और गहरी मंशा के साथ किया गया,ताकि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचे और राजनीतिक लाभ लिया जा सके। एफआईआर दर्ज होने के बाद यह बहस तेज हो गई है कि क्या राजनीतिक व्यंग्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा यहीं तक है या फिर धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल पर राजनीतिक दलों को अधिक जिम्मेदारी दिखानी चाहिए।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि किसी भी समुदाय के धार्मिक प्रतीक का इस्तेमाल इस तरह करना दुर्भाग्यपूर्ण है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में अस्वीकार्य होना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि विपक्ष में होने से विरोध करने का अधिकार खत्म नहीं होता,लेकिन लोकतंत्र की आत्मा यही कहती है कि विरोध के तरीके संवेदनशील और सभ्य हों। सचदेवा का मानना है कि आम आदमी पार्टी के नेता मुद्दों पर सार्थक बहस करने के बजाय विवाद पैदा करने वाले तरीके अपना रहे हैं,जिससे समाज के विभिन्न वर्गों में अनावश्यक तनाव पैदा होता है।
दूसरी ओर,राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद आने वाले समय में और बड़ा रूप ले सकता है। क्योंकि इसमें दो अहम पहलू जुड़े हुए हैं—एक तरफ धार्मिक भावनाओं का सवाल है,तो दूसरी तरफ राजनीतिक संदेश देने का तरीका। दिल्ली जैसे बहुसांस्कृतिक शहर में धार्मिक प्रतीकों से जुड़ा कोई भी विवाद जल्दी ही व्यापक बहस का रूप ले लेता है। इस मामले में भी सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे राजनीतिक प्रयोग करार दे रहे हैं,वहीं कई उपयोगकर्ताओं ने इसे ईसाई समुदाय का अपमान बताया है।
एफआईआर के बाद पुलिस ने शिकायत के बिंदुओं की जाँच शुरू कर दी है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के मामलों में यह देखना अहम होता है कि कृत्य के पीछे वास्तविक मंशा क्या थी—क्या वह केवल व्यंग्यात्मक राजनीतिक संदेश था या फिर जानबूझकर किसी धर्म विशेष का अपमान। अदालतें अक्सर इस आधार पर निर्णय तय करती हैं कि सामग्री से समाज में वैमनस्य फैलने की कितनी आशंका है और शिकायतकर्ता किस हद तक प्रभावित हुआ महसूस करता है।
हालाँकि,आम आदमी पार्टी की ओर से इस मुद्दे पर आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है,लेकिन पार्टी के कुछ समर्थकों का तर्क है कि वीडियो का मकसद केवल प्रदूषण के मुद्दे पर लोगों का ध्यान खींचना था। उनका कहना है कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर केंद्र सरकार और अन्य एजेंसियों की जिम्मेदारी को रेखांकित करना ही इस स्किट का लक्ष्य रहा होगा। फिर भी,यह सवाल बना हुआ है कि क्या ऐसा संदेश देने के लिए कोई दूसरा तरीका नहीं अपनाया जा सकता था।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह विवाद न केवल आम आदमी पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है,बल्कि भाजपा के लिए भी एक मौका है कि वह खुद को धार्मिक संवेदनशीलता के रक्षक के रूप में पेश करे,लेकिन साथ ही यह जिम्मेदारी भी पैदा होती है कि ऐसे मुद्दों को राजनीति से ऊपर उठकर सँभाला जाए,ताकि सामाजिक सद्भाव प्रभावित न हो।
क्रिसमस से ठीक पहले सामने आए इस मामले ने राजधानी के राजनीतिक तापमान में और इजाफा कर दिया है। अब नजरें इस बात पर टिकी हैं कि जाँच आगे क्या मोड़ लेती है और अदालत में यह मामला किस तरह आगे बढ़ता है। फिलहाल इतना तय है कि एक वीडियो के जरिये शुरू हुआ विवाद दिल्ली की राजनीति में नए सवाल खड़े कर चुका है और इन सवालों के जवाब,शायद,आने वाले दिनों में ही मिल पाएँगे।
