नई दिल्ली,27 दिसंबर (युआईटीवी)- ऑस्ट्रेलिया में पिछले कुछ महीनों के दौरान खालिस्तान से जुड़ी गतिविधियों में अप्रत्याशित तेजी दर्ज की गई है,जिसने न केवल स्थानीय प्रशासन,बल्कि भारतीय खुफिया एजेंसियों की चिंताओं को भी बढ़ा दिया है। जुलाई,अगस्त और फिर दिसंबर के महीनों में विभिन्न शहरों में आयोजित रैलियों और विरोध प्रदर्शनों में अराजक तत्व खुलेआम खालिस्तान के झंडे लहराते दिखाई दिए,साथ ही भारत विरोधी नारे लगाए गए और कई स्थानों पर तोड़फोड़ की घटनाएँ भी सामने आईं। इन कार्रवाइयों ने वहाँ बसे भारतीय समुदाय को गहराई से आहत किया है और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपना विरोध दर्ज कराया है।
खुफिया रिपोर्टों के अनुसार,खालिस्तान समर्थक समूहों ने पिछले कुछ समय में अपनी रणनीति में बदलाव किया है। जबकि कनाडा और यूनाइटेड किंगडम में इन संगठनों पर निगरानी और कार्रवाई कड़ी हुई है,वहीं ऑस्ट्रेलिया में गतिविधियाँ लगातार विस्तार पा रही हैं। एजेंसियों का कहना है कि इन समूहों ने अपने संसाधनों और नेटवर्क का बड़ा हिस्सा अब ऑस्ट्रेलियाई शहरों में स्थानांतरित कर दिया है,जहाँ वे जनमत संग्रह के नाम पर भीड़ जुटाने और प्रचार अभियान चलाने पर जोर दे रहे हैं। हाल की हिंसक घटनाएँ इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि उनकी मौजूदगी पहले की तुलना में कहीं अधिक मजबूत और संगठित हो चुकी है।
ज्ञात हो कि ऑस्ट्रेलिया में इससे पहले भी कथित “जनमत संग्रह” जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए थे,लेकिन इस बार इनकी व्यापकता और आवृत्ति दोनों में उल्लेखनीय इजाफा देखने को मिला है। सिख्स फॉर जस्टिस (एसएफजे) जैसे संगठनों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाए हैं,जिनमें ऑस्ट्रेलिया में हुई घटनाओं को लगातार प्रमुखता दी जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि इन अभियानों के जरिए न केवल भारतीय सरकार की छवि खराब करने की कोशिश हो रही है,बल्कि भारतीय समुदाय के भीतर भय और असुरक्षा का माहौल बनाने का भी प्रयास किया जा रहा है। कई पोस्टों और वीडियो में तोड़फोड़ के तरीके,विरोध की कॉल और भारत विरोधी नारेबाजी खुलेआम साझा की गई,जिससे माहौल और अधिक संवेदनशील हो गया।
भारत ने इस मुद्दे को कूटनीतिक स्तर पर भी गंभीरता से उठाया है। नई दिल्ली ने कनाडा और ब्रिटेन की सरकारों से आधिकारिक रूप से संपर्क कर खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर चिंता जताई है। दोनों देशों ने इस समस्या को स्वीकार किया और भारत के साथ मिलकर काम करने का आश्वासन दिया। परिणामस्वरूप,हाल के महीनों में उन देशों में कुछ ठोस कार्रवाइयाँ भी देखने को मिलीं। विश्लेषकों का मानना है कि यही वजह है कि खालिस्तान समर्थक तत्व अब उन क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं,जहाँ उन्हें अपेक्षाकृत ढीला वातावरण और अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ मिल सके और ऑस्ट्रेलिया को वे इस लिहाज से उपयुक्त मानते दिखाई देते हैं।
दिसंबर में हुई एक रैली के दौरान स्थिति तब और बिगड़ गई,जब प्रदर्शनकारियों ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ दिया और उसके वीडियो व्यापक रूप से सोशल मीडिया पर प्रसारित किए गए। इन दृश्यों ने ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीयों को गुस्से और दुख से भर दिया। कई स्थानों पर भारतीय समुदाय के लोगों ने जवाब में “भारत माता की जय” के नारे लगाए और शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज कराया। अधिकारियों का कहना है कि खालिस्तान समर्थक समूह जानबूझकर ऐसे उकसावे भरे कदम उठाते हैं,ताकि समुदायों के बीच टकराव पैदा हो और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को नुकसान पहुँचाया जा सके।
दिलचस्प बात यह है कि कनाडा और ब्रिटेन के विपरीत,ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तानियों को स्थानीय भारतीयों के प्रतिरोध का सामना अधिक मजबूती से करना पड़ रहा है। भारतीय मूल के नागरिक,छात्र और पेशेवर वर्ग यह स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि वे किसी भी ऐसे आंदोलन का समर्थन नहीं करेंगे,जो हिंसा,नफरत और अलगाववाद को बढ़ावा देता हो। फिर भी,खालिस्तान समर्थक समूह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला देकर अपने प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं और कानून के दायरे की सीमाओं को परखने की कोशिश कर रहे हैं।
नीतिगत विशेषज्ञों का कहना है कि “फ्री स्पीच” का सिद्धांत लोकतंत्र की बुनियाद है,लेकिन जब इसका इस्तेमाल नफरत फैलाने,सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने या किसी संप्रभु राष्ट्र की अखंडता को चुनौती देने के लिए किया जाने लगे,तो सरकारों को संतुलित लेकिन सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। ऑस्ट्रेलिया के मामले में भी यही सवाल सामने आ रहा है—अभिव्यक्ति की आजादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच सही संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।
भारतीय एजेंसियों का मानना है कि यदि इन गतिविधियों को समय रहते नहीं रोका गया,तो यह न केवल भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों पर असर डाल सकता है,बल्कि स्थानीय कानून-व्यवस्था के लिए भी चुनौती बन सकता है। उनके अनुसार, खालिस्तान समर्थक समूह केवल राजनीतिक नारेबाजी तक सीमित नहीं हैं,बल्कि वे अपने नेटवर्क को मजबूत करने,फंडिंग बढ़ाने और युवाओं को प्रभावित करने की योजनाओं पर भी काम कर रहे हैं। यही कारण है कि इन पर कड़ी निगरानी और समन्वित अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
इस मुद्दे पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। विदेश मंत्री पेनी वोंग ने स्पष्ट किया कि उनका देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करता है,लेकिन किसी भी तरह की हिंसा,उकसावे या सामुदायिक तनाव को बढ़ावा देने वाले कृत्यों के प्रति सख्त रुख अपनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस संबंध में भारत के साथ संवाद जारी है और दोनों देश मिलकर ऐसे मामलों को संवेदनशीलता के साथ संभालने के पक्षधर हैं। यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इससे संकेत मिलता है कि ऑस्ट्रेलिया भी समस्या की गंभीरता को समझ रहा है और कानून के दायरे में रहकर ठोस कदम उठाने के लिए तैयार है।
दूसरी तरफ,विशेषज्ञ यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि यदि सख्ती नहीं दिखाई गई,तो आने वाले समय में हालात बेकाबू हो सकते हैं। कई शहरों में भारतीय दूतावासों और कांसुलर कार्यालयों के आसपास सुरक्षा बढ़ाई गई है। स्थानीय पुलिस को भी निर्देश दिए गए हैं कि संभावित विरोध प्रदर्शनों के दौरान सतर्क रहें और किसी भी तरह की तोड़फोड़ या हिंसा को तुरंत काबू में लें।
ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान से जुड़ी हालिया घटनाएँ एक बड़े और जटिल मुद्दे की ओर इशारा करती हैं,जहाँ अंतर्राष्ट्रीय राजनीति,प्रवासी समुदायों की भावनाएँ,सोशल मीडिया की ताकत और अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल एक साथ आकर टकराते हैं। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी देश में अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को नजरअंदाज नहीं करेगा और साझेदार देशों से सहयोग की अपेक्षा रखता है। वहीं,ऑस्ट्रेलिया के सामने चुनौती यह है कि वह अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए ऐसे तत्वों पर नकेल कैसे कसे जो इन मूल्यों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
आने वाले महीनों में दोनों देशों के बीच इस विषय पर और भी गहन वार्ताएँ होने की संभावना है। फिलहाल,भारतीय समुदाय सतर्क है,एजेंसियाँ निगरानी बढ़ा रही हैं और सरकारें स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कूटनीति के जरिए इस संवेदनशील मुद्दे का समाधान किस तरह तलाशा जाता है,ताकि ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर शांति,कानून का राज और समुदायों के बीच सद्भाव कायम रह सके।
