बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस (तस्वीर क्रेडिट@Raathore_)

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर नया सवाल,राजबाड़ी मॉब लिंचिंग ने बढ़ाई चिंता

नई दिल्ली,27 दिसंबर (युआईटीवी)- बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा एक बार फिर बहस के केंद्र में है। कुछ ही समय पहले हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की नृशंस हत्या के बाद अब अमृत मंडोल नाम के एक अन्य हिंदू युवक की भीड़ द्वारा हत्या की खबर सामने आई है। लगातार हो रही इन घटनाओं ने देश के भीतर कानून-व्यवस्था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालाँकि,अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की सरकार का कहना है कि राजबाड़ी जिले में हुई यह घटना सांप्रदायिक हिंसा नहीं,बल्कि अपराध और जबरन वसूली से जुड़ा मामला थी,जिसके कारण हालात बिगड़े।

घटना से जुड़ी जानकारी सबसे पहले सोशल मीडिया पर तेजी से फैली। कई पोस्ट और वीडियो में दावा किया गया कि भीड़ ने एक और हिंदू युवक को उसके धार्मिक पहचान के कारण मौत के घाट उतार दिया। इन दावों ने स्वाभाविक रूप से देश के भीतर और बाहर चिंता का माहौल बना दिया,लेकिन सरकारी एजेंसी बीएसएस और आधिकारिक बयानों के अनुसार,मामला उतना एकतरफा नहीं है,जितना सोशल मीडिया पर दिखाया गया। सरकार ने स्पष्ट किया कि जिस युवक की हत्या हुई, उसकी पहचान अमृत मंडोल उर्फ सम्राट के रूप में हुई है और वह कथित रूप से जबरन वसूली और आपराधिक गतिविधियों में शामिल था।

सीए के प्रेस विंग द्वारा जारी बयान में कहा गया कि राजबाड़ी के पंग्शा थाना क्षेत्र में बुधवार की रात हुई इस घटना के संबंध में सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी प्रसारित की जा रही है। बयान के अनुसार शुरुआती जाँच से यह तथ्य सामने आया कि यह हमला किसी सांप्रदायिक द्वेष की वजह से नहीं,बल्कि स्थानीय स्तर पर अपराध और अवैध वसूली से उत्पन्न विवाद का परिणाम था। बताया गया कि सम्राट कथित तौर पर जबरन वसूली के पैसे माँगने इलाके में गया था,जहाँ उसकी स्थानीय लोगों के साथ झड़प हो गई और स्थिति देखते-देखते हिंसक होती चली गई।

सरकारी बयान में यह भी उल्लेख किया गया कि अमृत मंडोल पर पहले से ही कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे,जिनमें हत्या और वसूली से जुड़े आरोप शामिल थे और उसके खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट भी जारी थे। पुलिस ने इस घटना के दौरान उसके एक साथी सलीम को हथियारों के साथ हिरासत में लिया। बताया गया कि सलीम के पास से एक विदेशी पिस्टल और एक पाइपगन बरामद की गई,जबकि इस पूरे प्रकरण में तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं और जाँच जारी है।

सरकार ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि किसी भी तरह की गैर-कानूनी हिंसा,भीड़ द्वारा न्याय या सामूहिक मारपीट को स्वीकार नहीं किया जा सकता। बयान में यह भी जोड़ा गया कि जो भी लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस हिंसा में शामिल थे,उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यूनुस सरकार ने साफ किया कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है और वह न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

फिर भी,इस मामले को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रहा। अंतरिम सरकार का यह कहना कि घटना सांप्रदायिक नहीं है,कई लोगों को संतुष्ट नहीं कर पा रहा। यूनुस सरकार ने चिंता जताई कि कुछ समूह इस घटना को धार्मिक चश्मे से देखने और इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार के अनुसार,मृतक की धार्मिक पहचान को जोर देकर पेश करना और इसे एक सुनियोजित सांप्रदायिक हमले के रूप में प्रचारित करना गलत और भ्रामक है। सरकार ने मीडिया और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं दोनों से अपील की कि वे जिम्मेदारी से काम करें और ऐसे बयानों से बचें जो समाज में नफरत और अविश्वास को बढ़ा सकते हैं।

हालाँकि,जमीनी स्तर पर अल्पसंख्यक समुदायों की आशंकाएँ कम नहीं हो रही हैं। दीपू चंद्र दास की हत्या अभी पूरी तरह से लोगों के जेहन से निकली भी नहीं थी कि दूसरी घटना की खबर ने असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया। अनेक मानवाधिकार संगठनों और अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों का मानना है कि चाहे घटनाओं के पीछे कारण कुछ भी हों,तथ्य यह है कि भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं और कानून का डर कम होता दिख रहा है। उनका तर्क है कि जब अपराधी भीड़ का रूप ले लेते हैं और किसी व्यक्ति को सजा देने का ठेका अपने हाथ में ले लेते हैं,तो इससे राज्य की संस्थाओं की विश्वसनीयता पर आंच आती है।

अंतरिम सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि देश में कानून और न्याय का राज स्थापित करना सर्वोच्च लक्ष्य है और शांति व स्थिरता को भंग करने की किसी भी कोशिश के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएँगे। सरकार ने लोगों को भरोसा दिलाया कि जाँच निष्पक्ष होगी और तथ्यों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी,लेकिन आलोचकों का कहना है कि भरोसा केवल बयानों से नहीं,बल्कि ठोस और पारदर्शी कदमों से पैदा होता है। वे यह भी याद दिलाते हैं कि दीपू चंद्र दास के मामले में भी कड़ी कार्रवाई और न्याय का आश्वासन दिया गया था,परंतु उसका ठोस परिणाम अभी जनता के सामने पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।

इस बीच,सोशल मीडिया पर चल रही बहस ने मामले को और जटिल बना दिया है। एक ओर कुछ लोग इसे अपराध से जुड़ी घटना मानते हुए कहते हैं कि इसे धार्मिक रंग देना गलत है,जबकि दूसरी ओर कुछ समूहों का दावा है कि अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली हर घटना को “साधारण अपराध” बताकर नजरअंदाज किया जा रहा है। इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप ने समाज में अविश्वास और विभाजन की खाई को और चौड़ा कर दिया है।

बांग्लादेश के इतिहास पर नजर डालें तो यह देश खुद को लंबे समय से एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत करता रहा है। संविधान में भी समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है,लेकिन समय-समय पर अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा की खबरें सामने आती रहती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब भी राजनीतिक अस्थिरता या सत्ता परिवर्तन का दौर आता है,तब सामाजिक तनाव बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है। वर्तमान अंतरिम सरकार के दौर में लगातार सामने आ रही ऐसी घटनाएँ इस धारणा को और मजबूत करती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इन घटनाओं पर नजर रखी जा रही है। दीपू चंद्र दास की हत्या के बाद कई देशों और मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई थी और बांग्लादेश सरकार से कठोर कदम उठाने की अपील की थी। अब अमृत मंडोल की मौत के बाद यह दबाव और बढ़ सकता है। सरकार के सामने चुनौती यह होगी कि वह एक तरफ अपराध और भीड़तंत्र पर सख्त रोक लगाए और दूसरी ओर यह भी साबित करे कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा के प्रति वास्तव में प्रतिबद्ध है।

आने वाले समय में इस मामले की जाँच किस दिशा में जाती है और अदालतें क्या फैसला सुनाती हैं,इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा। यदि जाँच पारदर्शी रही और दोषियों को कड़ी सजा मिली,तो इससे न सिर्फ पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा,बल्कि समाज के भीतर भी यह संदेश जाएगा कि भीड़तंत्र और हिंसा को किसी रूप में सहन नहीं किया जाएगा। वहीं,यदि मामले को लेकर संदेह बना रहा या कार्रवाई आधी-अधूरी रही,तो अल्पसंख्यक समुदायों की चिंता और अविश्वास और गहरा सकता है।

फिलहाल इतना तय है कि राजबाड़ी की यह घटना केवल एक आपराधिक मामला नहीं,बल्कि बांग्लादेश के सामाजिक ढाँचे और न्याय व्यवस्था की परीक्षा भी है। सरकार ने भले ही इसे सांप्रदायिक स्वरूप से इनकार किया हो,लेकिन अल्पसंख्यकों के मन में जो भय और असुरक्षा जन्म ले चुकी है,उसे दूर करना आसान नहीं होगा। इसके लिए केवल बयान नहीं,बल्कि लगातार,निष्पक्ष और प्रभावी कार्रवाई जरूरी होगी,तभी बांग्लादेश यह संदेश दे पाएगा कि वह वास्तव में सभी नागरिकों के लिए समान रूप से सुरक्षित देश है।