नई दिल्ली,27 दिसंबर (युआईटीवी)- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार दूसरे सप्ताह महत्वपूर्ण बढ़त दर्ज की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी ताजा आँकड़ों के अनुसार 19 दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह में देश का फॉरेक्स रिजर्व 4.368 अरब डॉलर बढ़कर 693.318 अरब डॉलर के स्तर पर पहुँच गया। इससे पहले वाले सप्ताह में यह भंडार 688.94 अरब डॉलर था और तब इसमें 1.689 अरब डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। लगातार दो सप्ताह से हो रही यह वृद्धि संकेत देती है कि भारत की बाहरी वित्तीय स्थिति मजबूत बनी हुई है और वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव के बीच देश के पास पर्याप्त कुशन मौजूद है।
आरबीआई के डेटा के मुताबिक इस अवधि में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों यानी फॉरेन करेंसी एसेट्स की वैल्यू 1.641 अरब डॉलर बढ़कर 559.428 अरब डॉलर हो गई। फॉरेन करेंसी एसेट्स विदेशी मुद्राओं में रखे गए निवेशों और जमा की उस वैल्यू को दर्शाते हैं,जो विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के साथ घटती-बढ़ती रहती है। डॉलर के सापेक्ष अन्य प्रमुख मुद्राओं के मजबूत होने और पूँजी प्रवाह में सुधार ने इस घटक को सहारा दिया है।
सबसे ज्यादा उछाल सोने के भंडार में देखने को मिला। रिजर्व बैंक के पास सोने की वैल्यू 2.623 अरब डॉलर बढ़कर 110.365 अरब डॉलर तक पहुँच गई। वैश्विक बाजारों में सोने की कीमतों में तेजी और आरबीआई द्वारा रणनीतिक रूप से रिजर्व में विविधता लाने के प्रयासों का यह परिणाम माना जा रहा है। सोना केंद्रीय बैंकों के लिए संकट के समय सुरक्षित संपत्ति के रूप में काम करता है और इसकी हिस्सेदारी बढ़ने से कुल रिजर्व की स्थिरता भी मजबूत होती है।
इसके अलावा,विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) की वैल्यू 8 मिलियन डॉलर बढ़कर 18.744 अरब डॉलर हो गई,जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास भारत की रिजर्व पोजिशन 95 मिलियन डॉलर बढ़कर 4.782 अरब डॉलर पर पहुँच गई। ये दोनों घटक भारत की अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में स्थिति और आपातकालीन वित्तीय जरूरतों को पूरा करने की क्षमता को दर्शाते हैं।
किसी भी देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक स्थिरता का महत्वपूर्ण पैमाना माना जाता है। यह न केवल बाहरी झटकों से सुरक्षा प्रदान करता है,बल्कि भुगतान संतुलन और विनिमय दर को स्थिर रखने में भी अहम भूमिका निभाता है। अगर किसी स्थिति में डॉलर के मुकाबले रुपए पर दबाव बढ़ जाए और उसकी वैल्यू कमजोर हो,तो आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करके बाजार में डॉलर की उपलब्धता बढ़ा सकता है। इससे रुपए में गिरावट को सीमित करने और विनिमय दर को संतुलित रखने में मदद मिलती है।
बढ़ता फॉरेक्स रिजर्व इस बात का संकेत भी देता है कि देश में डॉलर सहित विदेशी पूंजी का प्रवाह मजबूत बना हुआ है। विदेशी निवेश,निर्यात आय और सेवाओं से कमाई में सुधार जैसे कारकों ने इसमें योगदान दिया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के बीच भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसा मजबूत होता है और सरकार तथा उद्योग जगत के लिए उधारी या आयात वित्त पोषण की लागत को अपेक्षाकृत कम रखने में सहायता मिलती है।
विदेशी मुद्रा भंडार का ऊँचा स्तर भारत के बाहरी ऋण दायित्वों को सँभालने के लिहाज से भी सकारात्मक माना जा रहा है। बढ़े हुए रिजर्व के चलते देश के पास पर्याप्त संसाधन होते हैं कि वह आकस्मिक परिस्थितियों—जैसे ट्रेड डेफिसिट में अचानक इजाफा,पूँजी बहिर्प्रवाह या वैश्विक वित्तीय बाजारों में झटकों का सामना कर सके। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रिजर्व बढ़ने से क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के नजरिए पर भी सकारात्मक असर पड़ता है,जिससे उधारी की शर्तें और बेहतर हो सकती हैं।
हालाँकि,विशेषज्ञ यह भी याद दिलाते हैं कि फॉरेक्स रिजर्व का उद्देश्य केवल आँकड़ों की दौड़ में आगे निकलना नहीं,बल्कि स्थिर और टिकाऊ आर्थिक संतुलन बनाए रखना है। निर्यात प्रतिस्पर्धा,घरेलू महँगाई और पूँजी प्रवाह की गुणवत्ता जैसे कारकों पर भी समान रूप से ध्यान देना जरूरी है। फिर भी,मौजूदा परिस्थितियों में 693 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भरोसे का मजबूत आधार प्रस्तुत करता है।
समग्र रूप से देखा जाए तो हालिया वृद्धि भारत के लिए सकारात्मक संकेत लेकर आई है। बढ़ते रिजर्व ने यह संदेश दिया है कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था लचीलापन दिखा रही है और बाहरी मोर्चे पर तैयार है। आने वाले समय में यदि यह रुझान बरकरार रहता है तो व्यापार,निवेश और मुद्रा स्थिरता के मोर्चे पर भारत को अतिरिक्त मजबूती मिल सकती है,जिससे विकास की गति को भी सहारा मिलेगा।
