नई दिल्ली,27 दिसंबर (युआईटीवी)- सार्वजनिक क्षेत्र के दिग्गज बैंक पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने श्रेय समूह की दो वित्तीय कंपनियों—श्रेय इक्विपमेंट फाइनेंस और श्रेय इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस से जुड़े लोन खातों को बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी करार दिया है। बैंक ने एक्सचेंज फाइलिंग के जरिए जानकारी दी कि कुल 2,434 करोड़ रुपए के लोन को फ्रॉड के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसमें 1,240.94 करोड़ रुपए श्रेय इक्विपमेंट फाइनेंस से और 1,193.06 करोड़ रुपए श्रेय इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस से जुड़े हैं। पीएनबी ने स्पष्ट किया कि उसने इन दोनों खातों पर 100 प्रतिशत प्रावधान कर दिया है,यानी संभावित नुकसान को ध्यान में रखते हुए पूरी राशि के बराबर राशि अलग रखी जा चुकी है।
बैंक के अनुसार,यह निर्णय विस्तृत फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर लिया गया,जिसमें कई अनियमितताओं की ओर इशारा किया गया था। रिपोर्ट में संबंधित पक्षों को दिए गए लोन,स्वीकृति प्रक्रिया की कमियाँ और लोन के पुनर्जीवन से जुड़े संदिग्ध लेनदेन का उल्लेख किया गया। सामान्य तौर पर फोरेंसिक ऑडिट तब कराया जाता है,जब बैंक को किसी खाते में गंभीर गड़बड़ी का संदेह हो और रिपोर्ट के निष्कर्ष धोखाधड़ी के वर्गीकरण के लिए महत्वपूर्ण आधार बनते हैं।
हालाँकि,श्रेय ग्रुप ने इन निष्कर्षों को चुनौती दी है। समूह का कहना है कि फोरेंसिक रिपोर्ट पर आधारित धोखाधड़ी का निर्णय जल्दबाजी में लिया गया है और यह मामला अदालत में विचाराधीन है। समूह के प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के दौरान कई तथ्य और दस्तावेज अभी न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं,इसलिए बैंक का यह कदम समय से पहले है।
पीएनबी अकेला बैंक नहीं है,जिसने श्रेय कंपनियों से जुड़े खातों को संदिग्ध माना हो। इससे पहले पंजाब एंड सिंध बैंक,बैंक ऑफ बड़ौदा और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया सहित कई बैंकों ने भी इन्हीं खातों को फ्रॉड घोषित किया था। यह सब उस व्यापक संकट का हिस्सा है,जो 2021 में श्रेय समूह पर गहराता चला गया और अंततः उसे दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में भेजना पड़ा।
अक्टूबर 2021 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने श्रेय इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस और श्रेय इक्विपमेंट फाइनेंस के बोर्ड भंग कर दिए थे। नियामक ने शासन से जुड़ी गंभीर खामियों,लगातार चूक और वित्तीय जोखिमों के मद्देनज़र दोनों कंपनियों को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास भेजने का फैसला किया। यह कदम संकेत था कि स्थिति सामान्य बैंकिंग हस्तक्षेप से आगे निकल चुकी है और अब समाधान के लिए कानूनी ढाँचे का सहारा लेना जरूरी हो गया है।
एनसीएलटी में चल रही प्रक्रिया के दौरान राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) ने दोनों कंपनियों के लिए समाधान योजना पेश की। फरवरी 2023 में एनएआरसीएल सफल बोलीदाता के रूप में सामने आया,जबकि इन कंपनियों पर ऋणदाताओं का कुल बकाया 32,750 करोड़ रुपए के करीब था। अगस्त 2023 में एनसीएलटी ने समाधान योजना को मंजूरी दी और जनवरी 2024 तक अधिग्रहण प्रक्रिया को अंतिम रूप दे दिया गया। इस अधिग्रहण से उम्मीद की गई थी कि ऋणदाताओं को कम से कम आंशिक वसूली का रास्ता मिलेगा और परिसंपत्तियों के पुनर्गठन की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
पीएनबी द्वारा किए गए सौ प्रतिशत प्रावधान का मतलब है कि बैंक अपनी बैलेंस शीट पर इस राशि को नुकसान के रूप में मान चुका है। हालाँकि,यदि भविष्य में दिवालियापन समाधान के जरिए कोई वसूली होती है,तो वह बैंक के लाभ में जुड़ सकती है,लेकिन फिलहाल,बैंक ने यह संकेत दे दिया है कि इन खातों से वसूली की संभावना सीमित है और जोखिम को वित्तीय रूप से पहले ही समायोजित किया जा चुका है।
यह मामला व्यापक बैंकिंग प्रणाली के लिए भी सबक के रूप में देखा जा रहा है। बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को दिए गए लोन में जोखिम पहचान,निगरानी और गवर्नेंस मानकों के पालन पर सवाल उठे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते चेतावनी संकेतों पर ध्यान दिया जाता,तो नुकसान के आकार को कम किया जा सकता था। साथ ही,यह प्रकरण दिवालियापन कानून के व्यावहारिक उपयोग और परिसंपत्तियों के पुनर्गठन की जटिलताओं को भी सामने लाता है।
दूसरी ओर,निवेशकों और जमाकर्ताओं के लिए यह संकेत है कि बैंकिंग प्रणाली जोखिमों का आकलन करते हुए पारदर्शी तरीके से घाटे को दर्ज करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। प्रावधान बढ़ने से अल्पावधि में बैंकों के मुनाफे पर दबाव पड़ सकता है,लेकिन लंबे समय में इससे बैलेंस शीट साफ होती है और वित्तीय स्थिरता मजबूत होती है।
पीएनबी का यह कदम श्रेय समूह से जुड़े मामलों में एक और महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। जहाँ एक तरफ बैंक अपने जोखिम को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है,वहीं दूसरी तरफ दिवालियापन समाधान प्रक्रिया से जुड़े कानूनी और वित्तीय सवाल अभी भी खुले हैं। आने वाले महीनों में कोर्ट की सुनवाई,एनएआरसीएल की वसूली कोशिशें और नियामक कदम तय करेंगे कि इस बहुचर्चित प्रकरण का अंतिम आर्थिक असर कितना गहरा पड़ता है और बैंकिंग प्रणाली इसके बाद किस तरह के सुधार अपनाती है।
