यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की,अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@ChandanSharmaG)

यूक्रेन-रूस युद्ध पर बड़े समझौते के करीब बताए ट्रंप,मार-ए-लागो में जेलेंस्की संग मुलाकात के बाद शांति वार्ता को नई रफ्तार

न्यूयॉर्क,29 दिसंबर (युआईटीवी)- करीब चार वर्षों से जारी यूक्रेन और रूस के बीच का विनाशकारी युद्ध अब एक ऐसे मोड़ पर पहुँचता दिख रहा है,जहाँ कूटनीतिक कोशिशें दोबारा उम्मीद जगा रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को फ्लोरिडा के पाम बीच स्थित अपने मार-ए-लागो क्लब में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से मुलाकात की। इस बैठक के बाद ट्रंप ने संकेत दिया कि युद्ध समाप्त करने की दिशा में एक “बड़ा समझौता” लगभग अंतिम चरण में है और दोनों देश शांति के बेहद करीब पहुँच चुके हैं।

ट्रंप के अनुसार,कई महीनों से चल रहे बैक-चैनल संवाद और हालिया वार्ताओं ने माहौल को काफी सकारात्मक बना दिया है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन और रूस के बीच चल रही चर्चाएँ अब सिर्फ तकनीकी मसलों पर आकर रुक गई हैं और यदि सब कुछ योजना के मुताबिक रहा,तो आने वाले समय में इस संघर्ष का अंत संभव हो सकता है। ट्रंप के इन बयानों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में नई हलचल पैदा की है,क्योंकि अब तक संघर्ष विराम की कई कोशिशें नाकाम होती रही हैं।

बैठक के बाद जेलेंस्की ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि अमेरिका और यूक्रेन की टीमें अगले सप्ताह फिर बैठकर बैठक में उठे मुद्दों को अंतिम रूप देंगी। उन्होंने यह भी पुष्टि की कि ट्रंप अगले महीने वाशिंगटन में यूक्रेन और यूरोपीय नेताओं के साथ उच्चस्तरीय चर्चा करेंगे। यह मुलाकात इसलिए खास मानी जा रही है क्योंकि अब तक शांति प्रस्तावों में अमेरिका की भूमिका पर कई सवाल उठते रहे थे और यूरोपीय देशों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था।

रूस की ओर से भी संकेत मिले हैं कि कूटनीतिक प्रक्रिया जारी रहेगी। क्रेमलिन के प्रवक्ता यूरी उशाकोव ने कहा कि अमेरिका के साथ बातचीत दो अलग-अलग कार्य समूहों के माध्यम से आगे बढ़ेगी—पहला सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर और दूसरा आर्थिक मामलों पर। इन समूहों की रूपरेखा और शर्तें जनवरी की शुरुआत तक तय की जाएँगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि शांति योजना सिर्फ युद्धविराम तक सीमित न होकर व्यापक सुरक्षा और आर्थिक संरचना को शामिल करेगी।

बैठक में 20 बिंदुओं वाले शांति प्रस्ताव पर विस्तार से चर्चा हुई। जेलेंस्की ने बताया कि दोनों पक्षों ने शांति ढाँचे के लगभग सभी पहलुओं पर बातचीत की और “महत्वपूर्ण प्रगति” दर्ज की। उनके अनुसार आगे की कार्ययोजना और चरणबद्ध क्रियान्वयन के क्रम पर सहमति बनी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए मजबूत सुरक्षा गारंटी अत्यंत आवश्यक है और इसी बिंदु पर वार्ता आगे बढ़ाई जाएगी।

इस मुलाकात के दौरान ट्रंप और जेलेंस्की ने यूरोपीय नेताओं के साथ एक कॉन्फ्रेंस कॉल भी की,जिसमें यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर शामिल थे। यूरोप लंबे समय से यूक्रेन के समर्थन में खड़ा रहा है और अब वह किसी भी समझौते में स्पष्ट और विश्वसनीय सुरक्षा आश्वासनों को अनिवार्य मान रहा है। वॉन डेर लेयेन ने बाद में ‘ब्लूस्काई’ पर लिखा कि वार्ता में अच्छी प्रगति हुई है और यूरोपीय संघ इस दिशा में जारी प्रयासों का स्वागत करता है। उन्होंने भी दोहराया कि बिना ठोस सुरक्षा गारंटी के शांति के किसी समझौते को टिकाऊ नहीं माना जा सकता।

शांति ढाँचे के तहत यह प्रस्ताव सामने आया है कि पश्चिमी यूरोपीय देश यूक्रेन को सैन्य एवं रणनीतिक सहायता जारी रखेंगे,जबकि अमेरिका से अपेक्षा है कि वह एक द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते के जरिए यूक्रेन की रक्षा सुनिश्चित करे। इस ढाँचे की बुनियाद में यूक्रेन की यूरोपीय संघ की सदस्यता का विचार निहित है,जो उसे एक बड़े राजनीतिक-आर्थिक समूह का स्थायी सुरक्षा कवच प्रदान कर सकता है। ट्रंप ने सुरक्षा गारंटी के विचार का समर्थन किया,हालाँकि,उन्होंने स्पष्ट किया कि समझौते के कई विवरणों पर अभी बातचीत जारी है। उनके शब्दों में, “एक सुरक्षा समझौता होगा और यह मजबूत होगा। इसमें यूरोपीय देशों की पूरी भागीदारी रहेगी।”

दिलचस्प बात यह रही कि जेलेंस्की से मिलने से पहले ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी एक घंटे से अधिक समय तक बातचीत की। बैठक के बाद ट्रंप ने कहा, “पुतिन इसे होते देखना चाहते हैं। मुझे उन पर भरोसा है।” उशाकोव के अनुसार, पुतिन ने ट्रंप से कहा कि कीव को साहसिक और जिम्मेदार राजनीतिक फैसला लेना होगा,जो रूस के रुख के अनुरूप हो। उन्होंने यह भी दावा किया कि ट्रंप ने स्वीकृति दी कि यूक्रेन संकट उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी विदेश नीति चुनौती रहा है।

ट्रंप पहले भी चुनाव प्रचार के दौरान यह कहते रहे हैं कि वे सत्ता संभालते ही 24 घंटे में यूक्रेन युद्ध समाप्त कर देंगे,लेकिन कई दौर की कूटनीति,शिखर बैठकों और संवाद के बावजूद संघर्ष जारी है। यह इस बात का संकेत है कि जमीनी हकीकत,राजनीतिक दबाव और क्षेत्रीय दावों के उलझाव किसी भी शांति प्रक्रिया को जटिल बना देते हैं।

वार्ता में सबसे कठिन प्रश्न डोनबास क्षेत्र का भविष्य है। रूस चाहता है कि पूरा डोनबास—यहाँ तक कि वे हिस्से भी जो अभी उसके नियंत्रण में नहीं—उसके पास आएँ । वहीं, यूक्रेन इस क्षेत्र को “सैन्य-मुक्त क्षेत्र” बनाने का प्रस्ताव रख चुका है। एक समय ऐसा भी लगा कि ट्रंप इस रूसी प्रस्ताव से सहमत हो सकते हैं,लेकिन यूक्रेनी पक्ष ने इसे देश की संप्रभुता के लिए खतरा बताया। उशाकोव ने चेतावनी दी कि मोर्चे पर बदलते हालात को देखते हुए यूक्रेन के हित में होगा कि वह डोनबास पर बिना देरी फैसला करे,क्योंकि रूस इसे शक्ति के बल पर हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई देता है।

युद्ध के शुरुआत से ही यह संघर्ष सिर्फ सैन्य टकराव का मुद्दा नहीं रहा,बल्कि इसमें भू-राजनीतिक संतुलन,ऊर्जा सुरक्षा,नाटो का विस्तार और वैश्विक शक्ति समीकरण भी जुड़े रहे हैं। नाटो सदस्यता के बिना यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने का प्रश्न पश्चिमी देशों के लिए संतुलन साधने जैसा है,क्योंकि उन्हें रूस को उकसाए बिना यूक्रेन के बचाव की व्यवस्था करनी है। यही कारण है कि सुरक्षा ढाँचे के लिए बहु-स्तरीय समझौतों की जरूरत पड़ रही है,जिनमें अमेरिका,यूरोपीय संघ और अन्य सहयोगी देश शामिल रहेंगे।

मार-ए-लागो बैठक में मानवीय सहायता,युद्धग्रस्त क्षेत्रों के पुनर्निर्माण और शरणार्थियों की वापसी पर भी चर्चा हुई। यूक्रेन का अनुमान है कि युद्ध से बुनियादी ढाँचे को हुए नुकसान की भरपाई में कई दशक लग सकते हैं। ऐसे में केवल युद्धविराम पर्याप्त नहीं,बल्कि एक दीर्घकालिक आर्थिक सहायता योजना और पुनर्वास कार्यक्रम भी जरूरी होगा। यहीं पर आर्थिक कार्य समूह की भूमिका अहम मानी जा रही है,जो निवेश,पुनर्निर्माण और ऋण पुनर्गठन जैसी जटिलताओं पर समाधान तैयार करेगा।

फिर भी सभी पक्षों को यह एहसास है कि अंतिम समझौते तक पहुँचना आसान नहीं। ट्रंप ने स्वयं स्वीकार किया कि “यह भी संभव है कि यह समझौता पूरा न हो पाए। कुछ हफ्तों में हमें पता चल जाएगा।” यह बयान बताता है कि हालाँकि उम्मीद जगी है,लेकिन अविश्वास,राजनीतिक दबाव और सैन्य वास्तविकताएँ अभी भी बड़ी बाधा बनी हुई हैं। यूक्रेन पश्चिमी समर्थन पर निर्भर है,जबकि रूस अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता।

यूरोपीय देशों के लिए भी यह एक परीक्षा का समय है। एक ओर वे यूक्रेन की सहायता जारी रखना चाहते हैं,वहीं दूसरी ओर लंबी खिंचती जंग उनके अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों पर भारी पड़ रही है। ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव,शरणार्थियों का बोझ और रक्षा बजट में इजाफा—इन सबने घरेलू राजनीति पर असर डाला है। इसलिए यूरोपीय नेता शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए पहले से ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के इस गहन चरण में विश्व समुदाय की निगाहें अमेरिका,रूस और यूक्रेन की त्रिकोणीय बातचीत पर टिकी हैं। यदि सुरक्षा गारंटी,डोनबास के भविष्य और आर्थिक पुनर्निर्माण जैसे विवादित मुद्दों पर सहमति बन पाती है,तो यह न केवल पूर्वी यूरोप के लिए,बल्कि संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए एक बड़ा मोड़ साबित होगा,लेकिन यदि मतभेद दूर नहीं हो पाए,तो संघर्ष और लंबा खिंच सकता है और इसके दुष्परिणाम पूरे क्षेत्र को झेलने पड़ेंगे।

फिलहाल,ट्रंप-जेलेंस्की मुलाकात और रूस के साथ समानांतर संवाद ने शांति की संभावना को फिर से जीवित किया है। आने वाले हफ्तों में कार्य समूहों की बैठकों,वाशिंगटन वार्ता और आगे होने वाली कूटनीतिक हलचलों से यह साफ हो जाएगा कि क्या यह पहल युद्ध को समाप्त करने की दिशा में निर्णायक कदम बनेगी या फिर यह भी उन कई अधूरी कोशिशों की तरह इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह जाएगी। इतनी गंभीर और लंबी लड़ाई के बीच दुनिया यही उम्मीद कर रही है कि कूटनीति आखिरकार हथियारों पर भारी पड़े और यूक्रेन के लोगों को शांति और पुनर्निर्माण का मौका मिले।