बीजिंग, 5 फरवरी (युआईटीवी/आईएएनएस)- चीन और भारत दोनों पुरातन सभ्यता वाले देश हैं। इसलिये दोनों देशों में रंगारंग दिवसों पर भिन्न-भिन्न रीति-रिवाज होते हैं। और कुछ रीति-रिवाज बहुत समान हैं। चूहे की पूजा उनमें से एक है। भारत के राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में स्थित करणी माता मंदिर में चूहे की पूजा-अर्चना करने की रस्म होती है। इस मंदिर की स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई थी, जो भारत में प्रसिद्ध सांस्कृतिक विरासत है। पांच सौ वर्षों में यह मंदिर बहुत लोकप्रिय रहा। बहुत लोग यहां आकर चूहे से प्रार्थना करते हैं।
इस मंदिर में हजारों चूहे रहते हैं। उन्हें यहां विशेष रूप से संरक्षित कर खिलाया जाता है। यदि आप मंदिर में गलती से एक चूहे को घायल कर देते हैं, तो आपको मुआवजे के रूप में एक स्टलिर्ंग चांदी या सोने का चूहा देना होता है। कहते हैं कि इस मंदिर में हजारों चूहों में से पांच सफेद चूहे खास पवित्र हैं। क्योंकि वे स्वयं देवी करणी माता और उनके चार पुत्रों के अवतार हैं।
भारत के करणी माता मंदिर से आप शायद बहुत परिचित हैं, लेकिन आप ये नहीं जानते होंगे कि चीन में भी चूहे की पूजा-अर्चना करने का रिवाज है। वसंत त्योहार के दौरान यानी चीनी पंचांग के अनुसार नव वर्ष के तीसरे दिन को चीनी लोग चूहे का शादी दिवस कहते हैं। चूहे की शादी में खलल न डालने के लिये लोग ठीक उसी दिन की रात को जल्द से जल्द दरवाजा बंद करते हैं, और लाइट भी बंद करके सोने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा लोग रसोई में या कोनों में, जहां चूहे अकसर शिकार करते हैं, शादी के उपहार के रूप में कुछ अनाज या केक छिड़कते हैं। ऐसा करके लोग आने वाले वर्ष में चूहों से फसलों को नुकसान न पहुंचाने और बीमारी न फैलाने की प्रार्थना करते हैं। मानव चूहे के साथ शादी की खुशी और एक साल की फसल को साझा करते हैं, जिन्हें मूसक पैसे कहा जाता है।

