अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी (तस्वीर क्रेडिट@thewittynoise)

अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा रद्द,यूएनएससी से अनुमति न मिलने के कारण बिगड़ी योजना

नई दिल्ली,26 अगस्त (युआईटीवी)- अफगानिस्तान और भारत के रिश्तों में एक अहम मोड़ लाने वाली यात्रा अंतिम समय में अधूरी रह गई। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की इस सप्ताह प्रस्तावित नई दिल्ली यात्रा अचानक रद्द कर दी गई। काबुल स्थित सूत्रों ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि इस दौरे की रद्दीकरण का कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) से यात्रा प्रतिबंध में छूट की मंजूरी न मिलना रहा। मुत्ताकी और कई अन्य तालिबान नेताओं पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यात्रा प्रतिबंध लागू हैं और उन्हें किसी भी देश की आधिकारिक यात्रा के लिए यूएनएससी की अनुमति आवश्यक होती है। इस बार की तरह पहले भी पाकिस्तान यात्रा की उनकी योजना इन्हीं पाबंदियों की वजह से टल चुकी है।

भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों का इतिहास हमेशा से गहराई और जटिलताओं से भरा रहा है। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद इस रिश्ते में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। भारत ने हालाँकि अब तक तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता नहीं दी है,लेकिन धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच संवाद की कोशिशें जारी हैं। भारत ने काबुल में अपने दूतावास को पुनः सक्रिय किया और मुंबई व हैदराबाद स्थित अफगानिस्तान के वाणिज्य दूतावास भी अब तालिबान राजदूतों के नियंत्रण में हैं। इस संदर्भ में मुत्ताकी की प्रस्तावित यात्रा दोनों देशों के बीच नए समीकरण बनाने में अहम साबित हो सकती थी,लेकिन यूएनएससी की सख्ती के चलते यह अवसर अभी टल गया है।

सूत्रों के मुताबिक भारत के विदेश मंत्रालय ने आमिर खान मुत्ताकी को आधिकारिक तौर पर आमंत्रण भेजा था और सभी तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी थीं। यह यात्रा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं,बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थी। भारत लंबे समय से अफगानिस्तान में निवेश और विकास कार्यों में सहयोग करता रहा है। अस्पताल,स्कूल,सड़क और ऊर्जा परियोजनाओं में भारत ने बड़ा योगदान दिया है। ऐसे में तालिबान के साथ संवाद से भारत अपने नागरिकों और निवेश की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। साथ ही क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की संभावनाएँ भी तलाशना चाहता है,लेकिन मुत्ताकी की यात्रा रद्द होने से इस संवाद की प्रक्रिया पर अस्थायी विराम लग गया है।

तालिबान की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति अभी भी असमंजस में है। पिछले महीने रूस तालिबान को औपचारिक मान्यता देने वाला पहला देश बना,जिससे काबुल में तालिबान सरकार को बड़ी कूटनीतिक जीत मिली,लेकिन संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों की ओर से महिलाओं की शिक्षा और रोजगार पर प्रतिबंध,मानवाधिकार उल्लंघन और कट्टरपंथी नीतियों को लेकर तालिबान पर लगातार आलोचना होती रही है। इन कारणों से व्यापक अंतर्राष्ट्रीय मान्यता अब तक नहीं मिल पाई है। भारत,अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भी यही रुख अपनाया है कि जब तक तालिबान एक समावेशी सरकार नहीं बनाता और मानवाधिकारों की गारंटी नहीं देता,तब तक उसे मान्यता नहीं दी जा सकती।

मुत्ताकी की भारत यात्रा ऐसे समय में प्रस्तावित थी,जब क्षेत्रीय राजनीति में अफगानिस्तान का महत्व बढ़ गया है। पाकिस्तान और चीन पहले से ही तालिबान से निकट संबंध बना रहे हैं। चीन ने अफगानिस्तान के साथ कई आर्थिक परियोजनाओं की घोषणा की है,जबकि पाकिस्तान की कोशिश है कि तालिबान को अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखा जाए। ऐसे में भारत की प्राथमिकता है कि वह अफगानिस्तान में पूरी तरह अलग-थलग न पड़ जाए। यही वजह है कि भारत तालिबान से प्रत्यक्ष बातचीत से परहेज करते हुए भी कूटनीतिक और आर्थिक चैनलों को सक्रिय रख रहा है।

भारत की चिंता सिर्फ निवेश या विकास परियोजनाओं तक सीमित नहीं है। सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा का है। अफगानिस्तान की धरती पहले भी भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों का अड्डा बन चुकी है। काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हुए हमले और कंधार अपहरण जैसी घटनाएँ भारत को लगातार याद दिलाती हैं कि अफगानिस्तान में अस्थिरता का सीधा असर उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ सकता है। इस कारण भारत अफगानिस्तान से बातचीत बनाए रखने को मजबूर है।

मुत्ताकी की यात्रा रद्द होने से यह संदेश भी गया है कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर तालिबान की स्थिति अभी बहुत कमजोर है। जब तक संयुक्त राष्ट्र से यात्रा प्रतिबंध हटाया नहीं जाता,तब तक तालिबान नेताओं की अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी सीमित रहेगी। यह स्थिति तालिबान की वैश्विक मान्यता पाने की कोशिशों में बाधा डालती रहेगी।

फिलहाल भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। एक ओर भारत अफगान जनता के साथ अपने ऐतिहासिक रिश्तों और निवेश को ध्यान में रखते हुए तालिबान से संपर्क बनाए रखना चाहता है,वहीं दूसरी ओर वह इसे मान्यता देने में जल्दबाजी भी नहीं करना चाहता। मुत्ताकी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच बढ़ते संवाद की दिशा में पहला ठोस कदम हो सकती थी,लेकिन अब इसके लिए भारत और काबुल को कुछ और इंतजार करना होगा।

इस घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अफगानिस्तान अभी भी एक ‘अधूरी कड़ी’ बना हुआ है। जहाँ एक ओर रूस जैसे देश तालिबान को वैधता देने में आगे बढ़ चुके हैं,वहीं दूसरी ओर भारत,अमेरिका और पश्चिमी देश अभी भी उसके बदलते व्यवहार का इंतजार कर रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या तालिबान वैश्विक मान्यता पाने के लिए अपने कठोर रुख में बदलाव करता है या फिर वह अलग-थलग रहने का जोखिम उठाता है। फिलहाल मुत्ताकी की रद्द हुई यात्रा इस दिशा में एक और अड़चन के रूप में सामने आई है।