अफगानिस्तान फिर दहला भूकंप से (तस्वीर क्रेडिट@Nt_Takfeeri_1)

अफगानिस्तान फिर दहला भूकंप से,भूकंप की तीव्रता 6.2 रही,हजारों लोग बेघर,राहत कार्य चुनौतीपूर्ण

काबुल/नई दिल्ली,5 सितंबर (युआईटीवी)- अफगानिस्तान एक बार फिर से भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। गुरुवार, 4 सितंबर 2025 को दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में आए 6.2 तीव्रता के भूकंप ने एक बार फिर इस युद्धग्रस्त देश की नाजुक मानवीय स्थिति को और गंभीर बना दिया। जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज (जीएफजेड) ने पुष्टि की है कि भूकंप का केंद्र केवल 10 किलोमीटर की गहराई में था,जिससे झटके बेहद विनाशकारी साबित हुए। इसके असर की तीव्रता इतनी अधिक थी कि पाकिस्तान के कई शहरों और भारत की राजधानी दिल्ली तक झटके महसूस किए गए।

हालाँकि,ताज़ा भूकंप में तत्काल बड़े पैमाने पर जनहानि की पुष्टि नहीं हुई है,लेकिन इसके ठीक पहले अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में आए 6.0 तीव्रता के भूकंप ने कहर बरपा दिया था। अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के अनुसार,वह भूकंप 31 अगस्त की रात 11:47 बजे स्थानीय समय पर आठ किलोमीटर की गहराई में आया था। इस भीषण हादसे में अब तक 1,457 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है,जबकि 3,394 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं।

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 6,700 से ज्यादा घर पूरी तरह से मलबे में तब्दील हो चुके हैं। ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में बने कच्चे मकान इस झटके को सह नहीं पाए और ताश के पत्तों की तरह ढह गए। राहतकर्मी मलबे से शव निकालने और घायलों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने में जुटे हैं,लेकिन दुर्गम भूभाग और लगातार आफ्टरशॉक्स की वजह से बचाव कार्य बेहद कठिन हो गया है।

पीड़ित परिवार इस वक्त पानी,भोजन और चिकित्सा जैसी बुनियादी जरूरतों से जूझ रहे हैं। अस्पतालों में घायलों की भीड़ उमड़ पड़ी है,मगर दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की भारी कमी स्थिति को और बिगाड़ रही है। तालिबान प्रशासन का दावा है कि कई इलाकों में राहत सामग्री पहुँचा दी गई है और दूरदराज के गाँवों तक पहुँचने के लिए सड़कें खोली जा रही हैं। हालाँकि,जमीनी हकीकत इससे अलग है। स्थानीय लोगों का कहना है कि दूरस्थ इलाकों में कई परिवार अब भी बिना मदद के खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं।

इस आपदा की गंभीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि रेड क्रॉस और विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन राहत कार्यों में जुटे हुए हैं। भारत,जापान,ईरान और तुर्की ने भी तुरंत मानवीय सहायता भेजी है। भारत से विशेष रूप से दवाइयाँ,टेंट और कंबल भेजे गए हैं,जबकि जापान और ईरान ने अस्थायी आश्रय गृह और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई है। तुर्की ने अपने विशेष रेस्क्यू दस्ते को काबुल रवाना किया है,जो भूकंप प्रभावित इलाकों में मलबा हटाने और लोगों को निकालने का काम करेगा।

राहत एजेंसियों का कहना है कि असली चुनौती ज़रूरतमंदों तक समय पर पहुँचना है। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और टूटी सड़कों की वजह से राहत सामग्री पहुँचाने में कई घंटे,यहाँ तक कि कई दिनों की देरी हो रही है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई है कि यदि जल्द ही भोजन,साफ पानी और दवाओं की आपूर्ति नहीं की गई,तो मौत का आँकड़ा और बढ़ सकता है।

भूकंपीय दृष्टि से अफगानिस्तान का यह पूरा इलाका बेहद संवेदनशील माना जाता है। यहाँ भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स मिलती हैं,जिसके कारण बार-बार भूकंप आते रहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की प्लेट टकराहट वाली जगहों पर झटके लंबे समय तक आते रहते हैं और आफ्टरशॉक्स का सिलसिला भी महीनों चल सकता है। यही कारण है कि प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग लगातार भय के माहौल में जी रहे हैं।

इतिहास गवाह है कि यह क्षेत्र बार-बार ऐसी तबाही झेल चुका है। अक्टूबर 2023 में आए भूकंप में 1,500 से अधिक लोग मारे गए थे। उससे पहले 2022 में एक और बड़े भूकंप ने 1,000 से ज्यादा लोगों की जान ली थी। हर बार की तरह इस बार भी अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर देश की निर्भरता स्पष्ट दिखाई दे रही है,क्योंकि तालिबान शासन के पास इतने बड़े पैमाने पर आपदा प्रबंधन के संसाधन नहीं हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वैश्विक समुदाय ने इस बार संगठित तरीके से मदद नहीं की,तो हजारों लोग कुपोषण,बीमारियों और ठंड के कारण भी अपनी जान गंवा सकते हैं। अफगानिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है,ऐसे में प्राकृतिक आपदाएं लोगों की परेशानियां और बढ़ा रही हैं।

फिलहाल प्रभावित इलाकों में मलबे से शव निकालने और घायलों को बचाने का काम युद्ध स्तर पर जारी है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि अफगानिस्तान इस विनाशकारी आपदा से उबर पाएगा या नहीं।