वाशिंगटन,19 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिका और रूस के बीच अलास्का में हुई बैठक को लेकर अमेरिकी राजनीति में तीखी बहस छिड़ गई है। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस बैठक को शांति की दिशा में अहम कदम बता रहे हैं,वहीं दूसरी ओर डेमोक्रेट सीनेटर क्रिस मर्फी ने इसे अमेरिका के लिए “आपदा” और “शर्मिंदगी” करार दिया है। इस पर पलटवार करते हुए ट्रंप ने मर्फी को “कमजोर इंसान” बताया और कहा कि ऐसे नेता शांति प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं।
दरअसल,शनिवार को अलास्का के आर्कटिक वॉरियर कन्वेंशन सेंटर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच तीन घंटे लंबी मुलाकात हुई। बैठक में दोनों देशों के शीर्ष अधिकारी भी शामिल रहे। अमेरिकी पक्ष से विदेश मंत्री मार्को रुबियो और राष्ट्रपति के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ मौजूद थे,जबकि रूसी पक्ष से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और राष्ट्रपति के सहयोगी यूरी उशाकोव ने हिस्सा लिया। इस बैठक का मकसद यूक्रेन युद्ध में शांति बहाली की दिशा में प्रगति करना था। हालाँकि,बैठक से किसी ठोस समझौते की घोषणा नहीं हो सकी और रूस की ओर से युद्धविराम का ऐलान भी नहीं किया गया।
सीनेटर क्रिस मर्फी ने एनबीसी न्यूज़ पर अपनी टिप्पणी में इस बैठक की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि “यह बैठक एक आपदा थी और अमेरिका के लिए शर्मनाक रही। व्लादिमीर पुतिन को वह सब कुछ मिल गया,जिसकी उन्हें चाहत थी। सबसे पहले तो उन्होंने दुनिया को यह संदेश देने में सफलता हासिल की कि उन पर लगे युद्ध अपराधों के आरोपों का कोई असर नहीं है। उन्होंने अमेरिका की जमीन पर कदम रखा और उन्हें वहाँ बुलाया गया। सामान्य तौर पर युद्ध अपराधों से जुड़े नेता अमेरिका में नहीं बुलाए जाते,लेकिन इस बार पुतिन को निमंत्रण देकर गलत संदेश दिया गया।” मर्फी का यह भी आरोप था कि बैठक ने अमेरिका की वैश्विक साख को नुकसान पहुँचाया है और इससे रूस की स्थिति मजबूत हुई है।
ट्रंप ने मर्फी के इन आरोपों का जवाब अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “ट्रुथ सोशल” पर दिया। उन्होंने लिखा, “कनेक्टिकट के सीनेटर क्रिस मर्फी ने कहा कि पुतिन को वह सब कुछ मिल गया,जो वह चाहते थे। जबकि सच्चाई यह है कि किसी को अभी तक कुछ नहीं मिला है,लेकिन हम उस दिशा में जरूर बढ़ रहे हैं। मर्फी जैसे लोग शांति प्रक्रिया को नाकाम करने में लगे रहते हैं। वह एक कमजोर इंसान हैं,जो सोचते हैं कि केवल अमेरिका आने भर से पुतिन को फायदा मिल गया। सच तो यह है कि पुतिन के लिए अमेरिका आना बेहद मुश्किल फैसला था। अगर शांति वार्ता आगे बढ़ी तो यह युद्ध जल्द खत्म हो सकता है,लेकिन मर्फी,जॉन बोल्टन और इनके जैसे कुछ और बेवकूफ लोग हालात को और कठिन बना रहे हैं।”
ट्रंप ने अपने बयान में यह भी कहा कि बैठक ने दोनों देशों के बीच संवाद की राह खोली है। हालाँकि,उन्होंने यह स्वीकार किया कि अभी कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ है,लेकिन उनका मानना है कि इस तरह की बातचीत से जमीनी हालात में बदलाव लाने की संभावना बढ़ती है। ट्रंप के मुताबिक, “इतिहास गवाह है कि बड़ी जंगों का अंत हमेशा बातचीत की मेज पर ही हुआ है और यही हम इस समय करने की कोशिश कर रहे हैं।”
इस पूरे विवाद ने अमेरिका की घरेलू राजनीति में हलचल मचा दी है। डेमोक्रेटिक पार्टी ट्रंप पर रूस के सामने झुकने और अमेरिका की प्रतिष्ठा को गिराने का आरोप लगा रही है,जबकि रिपब्लिकन खेमे का दावा है कि ट्रंप शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं और उनके आलोचक केवल राजनीतिक अंक जुटाने के लिए बयानबाजी कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अलास्का बैठक चाहे सफल रही हो या असफल,लेकिन इसके जरिए यह संदेश जरूर गया है कि रूस और अमेरिका बातचीत की राह तलाशने को तैयार हैं। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि इस बैठक से भले ही तत्काल युद्धविराम नहीं हुआ,लेकिन यह आने वाले समय में किसी बड़े समझौते की नींव रख सकती है।
वहीं,आलोचकों का कहना है कि पुतिन का अमेरिका आना और ट्रंप से मुलाकात करना रूस की कूटनीतिक जीत है। इससे यह धारणा बनी है कि रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी कोशिशें कमजोर पड़ रही हैं। यही कारण है कि क्रिस मर्फी जैसे डेमोक्रेट नेता इसे अमेरिका की “शर्मिंदगी” बता रहे हैं।
अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आने वाले हफ्तों में अमेरिका और रूस के बीच संवाद किस दिशा में आगे बढ़ता है और क्या वास्तव में यूक्रेन युद्ध के समाधान की कोई ठोस पहल होती है। फिलहाल इतना तय है कि अलास्का बैठक ने न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर,बल्कि अमेरिकी राजनीति के भीतर भी नए सियासी तूफान खड़े कर दिए हैं।