एंकोरेज (अलास्का),16 अगस्त (युआईटीवी)- अलास्का के एंकोरेज शहर में शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई बहुप्रतीक्षित शिखर वार्ता ने वैश्विक राजनीतिक हलचल को और तेज़ कर दिया। तीन घंटे तक चली इस बातचीत के बाद दोनों नेताओं ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की,लेकिन समझौते के किसी ठोस ढाँचे की घोषणा नहीं की गई। इसके बावजूद ट्रंप और पुतिन, दोनों ने संकेत दिए कि वार्ता “रचनात्मक” रही है और इसमें “महत्वपूर्ण प्रगति” हुई है।
ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमारी बैठक बहुत अच्छी रही और कई बिंदुओं पर सहमति बनी है। हमने अच्छी तरक्की की है,लेकिन जब तक कोई अंतिम समझौता नहीं हो जाता,तब तक उसे समझौता नहीं माना जा सकता।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे नाटो सहयोगियों और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की को इस वार्ता की जानकारी देंगे। ट्रंप ने साफ़ शब्दों में कहा कि “निर्णय अंततः यूक्रेन को ही लेना होगा।”
इस मुलाकात का मुख्य एजेंडा यूक्रेन में जारी युद्ध ही रहा। ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह 2022 में राष्ट्रपति होते तो रूस-यूक्रेन युद्ध कभी शुरू ही नहीं होता। उन्होंने कहा कि उनके प्रशासन के वरिष्ठ प्रतिनिधियों विदेश मंत्री मार्को रुबियो और विशेष दूत स्टीव विटकॉफने पुतिन के साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा की है और अब यह यूक्रेन पर निर्भर करेगा कि वह किन बातों पर सहमति जताता है। हालाँकि,ट्रंप ने समझौते के खाके या शर्तों के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया।
दूसरी ओर,पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए संघर्ष की मूल वजहों को समझना और उन्हें दूर करना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यूरोपीय और यूक्रेनी नेता इस “उभरती प्रगति” में बाधा न डालें। पुतिन ने जोर देकर कहा, “यूक्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है,लेकिन इसके लिए रूस की सुरक्षा चिंताओं को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।”
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की एक दिलचस्प बात यह रही कि सामान्य तौर पर जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति किसी विदेशी नेता की मेजबानी करता है,तो पहले वक्तव्य अमेरिकी राष्ट्रपति का होता है,लेकिन इस बार परंपरा तोड़ते हुए पुतिन ने आठ मिनट तक लंबा भाषण दिया और ट्रंप ने केवल चार मिनट की टिप्पणी की। ट्रंप ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में कहा कि अब उन्हें कई अहम फोन कॉल करने हैं,जिनमें नाटो सहयोगी देशों और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से बात शामिल है।
पुतिन ने यह भी दोहराया कि 2022 में उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को समझाने की कोशिश की थी कि स्थिति को इतना न बिगड़ने दें कि युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाए। पुतिन ने कहा, “ट्रंप और मेरे बीच हमेशा भरोसे का रिश्ता रहा है। मुझे विश्वास है कि अगर हम इसी दिशा में आगे बढ़ते रहे तो यूक्रेन संकट को जल्दी खत्म किया जा सकता है।”
ट्रंप ने भी स्वीकार किया कि पुतिन के साथ उनका निजी रिश्ता हमेशा अच्छा रहा है,लेकिन 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में रूस के कथित हस्तक्षेप की जाँच ने उनके पहले कार्यकाल में इस रिश्ते को मुश्किल बना दिया था। फिर भी उन्होंने संकेत दिया कि मौजूदा परिस्थितियों में वह पुतिन के साथ नए सिरे से रिश्ते सुधारने की कोशिश करेंगे।
वार्ता के दौरान पुतिन ने ट्रंप को अगली शिखर बैठक के लिए मास्को आने का प्रस्ताव दिया। इस पर ट्रंप ने सावधानी भरी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह विचार विवादास्पद हो सकता है,लेकिन इसकी संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। इस बयान से यह स्पष्ट हो गया कि दोनों देशों के बीच बातचीत की प्रक्रिया अभी केवल शुरुआती चरण में है और आगे की राह आसान नहीं होगी।
पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यूरोपीय नेताओं को भी संदेश दिया। उन्होंने कहा कि कीव और यूरोपीय देशों को सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए और किसी भी तरह की प्रगति को बाधित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। पुतिन का यह बयान दरअसल यूरोप पर परोक्ष दबाव बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है,क्योंकि नाटो देश लगातार यूक्रेन को सैन्य और वित्तीय मदद उपलब्ध करा रहे हैं।
दूसरी ओर,ट्रंप ने ज़ेलेंस्की को भरोसा दिलाने की कोशिश की कि अंतिम निर्णय उन्हीं का होगा,लेकिन उनके इस बयान से यह सवाल भी उठता है कि क्या अमेरिका और रूस के बीच हुई संभावित सहमतियों पर यूक्रेन अपनी स्वीकृति देगा या नहीं।
सबसे अहम सवाल यही है कि आखिर अलास्का वार्ता में किन मुद्दों पर सहमति बनी। न तो ट्रंप और न ही पुतिन ने किसी तरह का खाका सार्वजनिक किया। यहाँ तक कि युद्धविराम जैसे किसी तात्कालिक कदम की भी घोषणा नहीं की गई। ट्रंप ने सिर्फ इतना कहा कि “अच्छा मौका” है कि आने वाले समय में एक ठोस समझौता हो।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रणनीति दोनों नेताओं की ओर से जानबूझकर अपनाई गई है,ताकि अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचते हुए वे धीरे-धीरे बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकें।
अलास्का की यह शिखर वार्ता निश्चित रूप से अमेरिका और रूस के बीच संवाद बहाली की दिशा में एक अहम कदम है,लेकिन यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि यूक्रेन युद्ध पर कोई बड़ा समाधान सामने आ गया है। ट्रंप और पुतिन दोनों ने “प्रगति” का दावा किया है,लेकिन अंतिम समझौते पर अभी भी परदा पड़ा हुआ है।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि ट्रंप जब नाटो सहयोगियों और ज़ेलेंस्की से बात करेंगे तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होती है। यदि यूक्रेन और यूरोप इस पहल को सकारात्मक रूप से स्वीकारते हैं,तो शांति की राह बन सकती है,अन्यथा यह शिखर सम्मेलन केवल एक और कूटनीतिक कवायद बनकर रह जाएगा।
फिलहाल इतना साफ है कि पुतिन और ट्रंप,दोनों के बयानों ने एक नई बहस छेड़ दी है। एक ओर जहाँ पुतिन अमेरिकी नेतृत्व में बदलाव को अवसर के रूप में देख रहे हैं,वहीं ट्रंप इसे अपने कूटनीतिक कौशल का सबूत बताने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन क्या वाकई यह बातचीत युद्ध को समाप्त कर पाएगी या यह भी अतीत की तरह अधूरी कोशिश साबित होगी,इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।