वाशिंगटन,14 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिका और रूस के बीच होने वाली बहुप्रतीक्षित अलास्का शिखर वार्ता से ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कड़ा बयान देकर वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है। ट्रंप ने साफ चेतावनी दी है कि अगर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन युद्ध रोकने पर सहमत नहीं होते,तो उन्हें इसके “बहुत गंभीर परिणाम” भुगतने होंगे। यह बयान ऐसे समय आया है,जब यूक्रेन युद्ध को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक दबाव तेज हो चुका है और यूरोपीय देश भी संघर्ष विराम के लिए एकजुट हो रहे हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने खुलासा किया कि ट्रंप ने बुधवार को यूरोपीय देशों के नेताओं के साथ हुई एक ऑनलाइन बैठक में स्पष्ट रूप से कहा है कि अमेरिका अलास्का में होने वाले आगामी अमेरिका-रूस शिखर सम्मेलन में संघर्ष विराम समझौता चाहता है। मैक्रों के अनुसार,ट्रंप ने यूरोपीय नेतृत्व को यह भरोसा दिलाया कि वाशिंगटन इस वार्ता में युद्ध खत्म करने के लिए ठोस प्रस्ताव लेकर आएगा।
दूसरी ओर,यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने पुतिन पर वार्ता से पहले “गुमराह करने” का आरोप लगाया है। जेलेंस्की ने कहा कि पुतिन यूक्रेनी मोर्चे के सभी क्षेत्रों पर सैन्य दबाव बढ़ा रहे हैं,ताकि यह संदेश दिया जा सके कि रूस पूरे यूक्रेन पर कब्जा करने में सक्षम है। उन्होंने कहा, “पुतिन प्रतिबंधों के असर के बारे में भी झूठा दावा कर रहे हैं,जैसे उनके लिए इनका कोई महत्व ही नहीं है,लेकिन सच्चाई यह है कि पश्चिमी प्रतिबंध रूस की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं,जिससे वह युद्ध में कमजोर पड़ सकता है।”
जेलेंस्की ने यह भी आरोप लगाया कि पुतिन का मकसद आगामी वार्ता में अधिक दबाव बनाना और अपने शर्तों को थोपना है। उनके अनुसार,रूस चाहता है कि संघर्ष विराम समझौते के तहत यूक्रेन डोनेत्स्क क्षेत्र के उस बचे हुए 30 प्रतिशत हिस्से से भी पीछे हट जाए,जिस पर अभी उसका नियंत्रण है। यह माँग यूक्रेन के लिए न केवल अस्वीकार्य है बल्कि देश की संप्रभुता पर सीधा हमला भी है।
ट्रंप का यह नया बयान कोई पहली बार नहीं है,जब उन्होंने पुतिन के प्रति सख्त रुख दिखाया हो। इससे पहले भी उन्होंने कहा था कि उन्हें पुतिन से मुलाकात के पहले दो मिनट में ही अंदाजा हो जाएगा कि कोई समझौता संभव है या नहीं। ट्रंप के इस आत्मविश्वास भरे बयान ने यह संकेत दिया था कि वह वार्ता को किसी भी तरह लंबा खींचने के पक्ष में नहीं हैं और तुरंत नतीजे की दिशा में बढ़ना चाहते हैं।
हाल के दिनों में ट्रंप ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि यह संघर्ष बाइडेन की नीतियों का नतीजा है, उनका नहीं। ट्रंप ने यहाँ तक कहा था, “अगर मैं राष्ट्रपति होता तो ऐसी परिस्थिति कभी पैदा ही नहीं होती। हम इस तरह की स्थिति में होते ही नहीं। मैं अब इसे ठीक करने आया हूँ।” उनका यह बयान न केवल चुनावी राजनीति में उनकी आक्रामक रणनीति को दर्शाता है,बल्कि यह भी बताता है कि वह इस युद्ध को खत्म कर अपने नेतृत्व कौशल को साबित करने की कोशिश में हैं।
अलास्का में होने वाली यह अमेरिका-रूस वार्ता वैश्विक स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है,क्योंकि यह पहला मौका होगा,जब ट्रंप और पुतिन आमने-सामने बैठकर यूक्रेन युद्ध पर औपचारिक बातचीत करेंगे। अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस बैठक का नतीजा आने वाले महीनों में युद्ध की दिशा और वैश्विक शक्ति संतुलन को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है।
पश्चिमी देशों,खासकर यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों की चिंता यह है कि अगर यह वार्ता विफल होती है,तो युद्ध न केवल लंबा खींच सकता है,बल्कि इसके प्रभाव यूरोप की सीमाओं से भी बाहर फैल सकते हैं। ऊर्जा आपूर्ति,खाद्य सुरक्षा और शरणार्थी संकट जैसे मुद्दे पहले ही महाद्वीप को अस्थिर कर रहे हैं। ऐसे में अलास्का वार्ता से बड़ी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं।
ट्रंप का “गंभीर परिणाम” वाला बयान पुतिन पर कूटनीतिक और राजनीतिक दबाव बढ़ाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। हालाँकि,रूस की ओर से अब तक इस बयान पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन क्रेमलिन के करीबी सूत्रों का कहना है कि पुतिन वार्ता में अपने रुख से पीछे हटने के मूड में नहीं हैं। इसके विपरीत,रूस यूक्रेन में अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों को वैधता दिलाने के लिए अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय रियायतें चाहता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का कड़ा रुख और जेलेंस्की की चेतावनी दोनों ही यह संकेत देते हैं कि वार्ता का माहौल आसान नहीं होगा। एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी युद्धविराम के लिए दबाव बना रहे हैं,तो दूसरी तरफ रूस अपनी सैन्य उपलब्धियों को स्थायी बनाने के लिए शर्तें रख रहा है। यह टकराव इस बात की संभावना बढ़ाता है कि अलास्का में समझौता तभी संभव होगा जब दोनों पक्षों में से कोई एक महत्वपूर्ण रियायत देने को तैयार हो।
इस पूरी स्थिति में यूक्रेन की भूमिका भी बेहद अहम है। जेलेंस्की स्पष्ट कर चुके हैं कि वे किसी भी कीमत पर अपने नियंत्रण वाले इलाकों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके साथ ही वे पश्चिमी सहयोगियों से अधिक सैन्य और आर्थिक समर्थन की माँग कर रहे हैं,ताकि रूस के दबाव का प्रभावी तरीके से मुकाबला किया जा सके।
अब सबकी निगाहें अलास्का में होने वाली उस बैठक पर टिकी हैं,जहाँ दुनिया यह देखेगी कि ट्रंप और पुतिन के बीच क्या बातचीत होती है और क्या यह बैठक युद्ध को खत्म करने की दिशा में कोई ठोस कदम ला पाती है या नहीं। फिलहाल इतना तय है कि वार्ता शुरू होने से पहले ही बयानबाजी और कूटनीतिक दबाव का दौर अपने चरम पर है और इसके नतीजे का असर न केवल यूक्रेन के भविष्य पर बल्कि पूरी दुनिया की शांति और स्थिरता पर पड़ने वाला है।