नई दिल्ली,6 अगस्त (युआईटीवी)- रूस से तेल आयात को लेकर अमेरिका और भारत के बीच कूटनीतिक तनाव की पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रूस यात्रा ने नई राजनीतिक गरमाहट ला दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से बार-बार भारत को दी जा रही धमकियों के बीच डोभाल की यह यात्रा दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह यात्रा भले ही पहले से निर्धारित थी,लेकिन वर्तमान भू-राजनीतिक हालातों और अमेरिका की टिप्पणी के बाद इसकी अहमियत कई गुना बढ़ गई है।
रूसी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार,अजीत डोभाल मॉस्को में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे। इसके अलावा वह रूस के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों और राजनयिकों से भी बातचीत करेंगे,जिसमें रक्षा सहयोग,ऊर्जा साझेदारी,व्यापार विस्तार और बहुपक्षीय सहयोग जैसे विषयों पर चर्चा होगी। डोभाल की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है,जब भारत पर अमेरिका द्वारा रूस से तेल खरीद को लेकर खुलेआम दबाव डाला जा रहा है। अमेरिका का आरोप है कि भारत रूस से तेल खरीद कर अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन युद्ध को फंड कर रहा है और यदि भारत इस नीति को जारी रखता है,तो उसके खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक साक्षात्कार में भारत को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वह रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीदता रहा तो अमेरिका को “कार्रवाई करनी” पड़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते रखना वैश्विक सुरक्षा के लिहाज से “गलत संकेत” है। हालाँकि,भारत ने इन धमकियों को सिरे से खारिज करते हुए दोहराया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।
अमेरिका की इस आक्रामक कूटनीति पर रूस की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने भारत का बचाव करते हुए कहा कि कुछ देशों द्वारा ऐसे बयान दिए जा रहे हैं,जो धमकी के रूप में लिए जा सकते हैं और जो पूरी तरह से अनुचित हैं। उन्होंने किसी देश का नाम लिए बिना कहा कि दुनिया के देशों पर दबाव डालना कि वे रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंध तोड़ लें,अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत को एक भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार मानता है और दोनों देशों के बीच सहयोग को किसी तीसरे पक्ष के दबाव में नहीं आने दिया जाएगा।
इस बीच,रूस में भारत के राजदूत विनय कुमार ने रूस के उप रक्षा मंत्री कर्नल-जनरल अलेक्जेंडर फोमिन से मुलाकात की। यह बैठक ऐसे समय में हुई है,जब भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव है और रूस के साथ भारत की बढ़ती निकटता पर वाशिंगटन को आपत्ति है। दोनों अधिकारियों के बीच हुई बातचीत में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई। रूसी रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और विशेष रूप से रणनीतिक साझेदारी की भावना के तहत भविष्य में और घनिष्ठ सहयोग की बात कही।
भारत और रूस के बीच संबंध दशकों पुराने हैं। शीतयुद्ध काल से ही भारत रूस (तब सोवियत संघ) का रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में विश्वसनीय साझेदार रहा है। भारत की सैन्य शक्ति का बड़ा हिस्सा अब भी रूसी तकनीक पर आधारित है। हाल के वर्षों में भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली,पनडुब्बियाँ,फाइटर जेट्स और भारी हथियारों की खरीद की है। इसके अलावा,दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग भी लगातार बढ़ रहा है। भारत रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता है और यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने भारत को डिस्काउंट पर तेल आपूर्ति की,जिससे भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को संतुलित रखने में मदद मिली।
अमेरिका की नाराजगी का मुख्य कारण भी यही है। उसे लगता है कि भारत रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदकर उसकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रहा है,जो पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को कमजोर करता है। हालाँकि,भारत स्पष्ट कर चुका है कि उसका तेल आयात पूरी तरह से राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा के सिद्धांतों पर आधारित है। विदेश मंत्री एस.जयशंकर पहले ही कह चुके हैं कि भारत अपने नागरिकों को सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए कोई भी वैध विकल्प अपनाने को स्वतंत्र है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक,विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी अगले सप्ताह रूस की यात्रा पर जा सकते हैं,जिससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि भारत अपने रणनीतिक साझेदार रूस के साथ अपने रिश्तों को और भी अधिक मजबूती देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह दौरा डोभाल की यात्रा के बाद एक और बड़ा कूटनीतिक संदेश होगा कि भारत किसी एक ध्रुवीय दबाव में अपने वैश्विक संबंधों को संचालित नहीं करेगा।
डोभाल की इस यात्रा और रूस की भारत के प्रति स्पष्ट समर्थन की घोषणा ने अमेरिका को यह संकेत दे दिया है कि भारत अपनी विदेश नीति को संप्रभुता के साथ तय करता है और किसी बाहरी दबाव से उसके रणनीतिक निर्णय प्रभावित नहीं होंगे। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका अपनी चेतावनी को किस हद तक अमलीजामा पहनाता है या फिर वह भारत के साथ संबंधों को बनाए रखने के लिए कोई नया संतुलन तलाशता है। फिलहाल,भारत ने यह साफ कर दिया है कि वह एक स्वतंत्र और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में विश्वास करता है,जहाँ राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होंगे।