वाशिंगटन,5 दिसंबर (युआईटीवी)- अगले वर्ष (2026 ) मियामी में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन को लेकर अमेरिका ने बड़ा और विवादित कदम उठाया है। नई अध्यक्षता सँभालने के तुरंत बाद अमेरिकी सरकार ने घोषणा की कि दक्षिण अफ्रीका को 2026 के जी-20 सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया जाएगा। यह फैसला वैश्विक कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंचों के संतुलन पर गहरा प्रभाव डाल सकता है,क्योंकि दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स समूह का एक प्रमुख सदस्य है और हाल के वर्षों में जी-20 की वैश्विक चर्चाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी प्रशासनिक टीम ने दक्षिण अफ्रीका की एएनसी (अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस) सरकार पर कड़े आरोप लगाए हैं। विदेश मंत्री मार्को रूबियो के माध्यम से जारी बयान में कहा गया कि एएनसी के नेतृत्व में चल रही सरकार “तोड़फोड़ करने वाली नीतियों”, “अमेरिका के प्रति दुश्मनी” और ऐसे “कट्टरपंथी एजेंडा” को बढ़ावा दे रही है,जो जी-20 के मूल आर्थिक उद्देश्यों को कमजोर करता है। रूबियो ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अमेरिका अब जी-20 को उसके मूल मकसद—वैश्विक आर्थिक सहयोग और विकास—की ओर वापस ले जाएगा और इसलिए केवल “दोस्तों,साझेदारों और पड़ोसियों” को ही आमंत्रित किया जाएगा।
रूबियो ने इस संदर्भ में पोलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि पोलैंड दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और वह अपने विकास मॉडल,सुधारों,नवाचार और वैश्विक साझेदारी के लिए सम्मानित है। इसलिए अगले वर्ष मियामी शिखर सम्मेलन में पोलैंड को आमंत्रित किया जाएगा। इसके विपरीत,उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि नेल्सन मंडेला के बाद वहाँ की सरकार ने पुनर्वितरणकारी नीतियों पर जोर दिया,जिसने निवेश को हतोत्साहित किया और आर्थिक वृद्धि को धीमा किया। उनके अनुसार, “जातीय कोटा ने निजी क्षेत्र को पंगु बना दिया और राजनीतिक भ्रष्टाचार ने राज्य की व्यवस्था को खोखला कर दिया।”
रूबियो ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका अब दुनिया की 20 सबसे बड़ी औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में शामिल नहीं है,इसलिए उसका जी-20 में बने रहना तर्कसंगत नहीं है,लेकिन उनकी आलोचना केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं रही। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की विदेश नीति पर भी गंभीर सवाल उठाए। विशेष रूप से उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंधों,हमास समर्थकों को बढ़ावा देने और अमेरिका के “सबसे बड़े विरोधियों” के साथ निकटता को लेकर चिंता जताई। रूबियो के अनुसार, “दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने अमेरिका की लगातार जताई गई आपत्तियों को अनदेखा किया,वाशिंगटन और अन्य सहयोगियों के इनपुट को ब्लॉक किया और यहां तक कि संवेदनशील चर्चाओं की जानकारी भी लीक की।”
ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि दक्षिण अफ्रीका की 2025 की जी-20 अध्यक्षता ने मंच को “कट्टरपंथी,विभाजनकारी और नफरत फैलाने वाले एजेंडे” की ओर धकेला। रूबियो ने कहा कि उनकी अध्यक्षता के दौरान जलवायु परिवर्तन,विविधता,समावेशन और मदद पर निर्भरता जैसे मुद्दों को अनावश्यक रूप से प्राथमिकता दी गई,जिससे आर्थिक विकास और नवाचार से संबंधित मुख्य एजेंडा पीछे छूट गया। यह टिप्पणी संकेत देती है कि ट्रंप प्रशासन जी-20 को आर्थिक मुद्दों तक सीमित रखना चाहता है,जबकि दक्षिण अफ्रीका और कई अन्य देश इसे व्यापक सामाजिक और मानवीय मुद्दों के मंच के रूप में देखना चाहते हैं।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि मियामी शिखर सम्मेलन अमेरिकी लोकतंत्र की 250वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है और इसमें नवाचार,उद्यमिता,ऊर्जा सुरक्षा,तकनीकी प्रगति और कम रेगुलेटरी बोझ जैसे मुद्दों पर जोर दिया जाएगा। अमेरिका चाहता है कि जी-20, आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने,ऊर्जा स्रोतों तक सुगम पहुँच और वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने पर केंद्रित रहे।
हालाँकि,दक्षिण अफ्रीका पर इतने गंभीर आरोपों के बावजूद अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया कि वह दक्षिण अफ्रीका की “जनता” के साथ है,लेकिन एएनसी की “कट्टरपंथी सरकार” के साथ नहीं। इस प्रकार यह फैसला केवल सरकार के खिलाफ एक कूटनीतिक संदेश माना जा रहा है,न कि पूरे देश के खिलाफ किसी प्रकार का कदम।
विदेश मंत्रालय के एक आधिकारिक नोट में यह दोहराया गया कि अमेरिका की अध्यक्षता आर्थिक विकास,तकनीकी नवाचार और ऊर्जा सुरक्षा पर केंद्रित होगी। मियामी में होने वाला यह शिखर सम्मेलन दिसंबर 2026 में आयोजित किया जाएगा,जो वैश्विक नेताओं के लिए आर्थिक समन्वय और वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा करने का एक महत्वपूर्ण मंच होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ते वैचारिक मतभेदों को उजागर करता है। एक ओर अमेरिका है,जो अपनी विदेश नीति को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है और बहुपक्षीय मंचों में अपने हितों को प्राथमिकता देने की रणनीति पर चल रहा है। दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका है,जो ब्रिक्स और वैश्विक दक्षिण देशों के मंचों का नेतृत्व कर रहा है और पश्चिमी देशों की नीतियों को खुलकर चुनौती दे रहा है।
भारत भी इस घटनाक्रम पर अपनी नजर बनाए हुए है,क्योंकि भारत स्वयं जी-20 का पूर्व अध्यक्ष रह चुका है और वैश्विक दक्षिण व विकसित देशों के बीच संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत के लिए यह स्थिति विशेष ध्यान देने योग्य है,क्योंकि दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण साझेदार है,जबकि अमेरिका भारत का एक रणनीतिक सहयोगी। ऐसे में यह कूटनीतिक तनाव आने वाले महीनों में वैश्विक मंचों की दिशा को प्रभावित कर सकता है।
दक्षिण अफ्रीका को आमंत्रण न देने का अमेरिकी फैसला अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ माना जा रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि दक्षिण अफ्रीका,ब्रिक्स सदस्य देशों और अफ्रीकी यूनियन इस निर्णय पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और क्या यह कदम जी-20 के भीतर नए विभाजन पैदा करता है,लेकिन इतना तय है कि मियामी में होने वाला अगला जी-20 शिखर सम्मेलन केवल आर्थिक चर्चाओं तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि यह वैश्विक शक्ति समीकरणों के पुनर्गठन का एक महत्वपूर्ण मंच साबित होगा।

