वाशिंगटन,29 मई (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा कानूनी झटका लगा है। मैनहट्टन स्थित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने उनके विवादास्पद ‘लिबरेशन डे टैरिफ’ को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि ट्रंप ने अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया और अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियाँ अधिनियम (आईईईपीए) के तहत राष्ट्रपति को मिली सीमित शक्तियों से बाहर जाकर कार्रवाई की।
यह फैसला तीन जजों के पैनल द्वारा सुनाया गया,जिन्होंने माना कि अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष रखने वाले देशों पर आयात शुल्क लगाने का ट्रंप का निर्णय अमेरिकी संविधान की भावना के विपरीत है। अदालत ने यह भी दोहराया कि संविधान के तहत विदेशी व्यापार को विनियमित करने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है और यह अधिकार राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकाल की आड़ में छीना नहीं जा सकता।
ट्रंप प्रशासन ने अपने फैसले का बचाव करते हुए अदालत में तर्क दिया कि व्यापार असंतुलन,विशेषकर चीन और यूरोपीय संघ के साथ,अमेरिका के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा बन गया है। उनके अनुसार,इस असंतुलन को नियंत्रित करने के लिए टैरिफ आवश्यक थे और आईईईपीए उन्हें ऐसा करने की शक्ति देता है।
इसके अलावा,ट्रंप की कानूनी टीम ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति ने दक्षिण एशिया, खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को नियंत्रित करने के लिए भी टैरिफ रणनीति का उपयोग किया। उनके अनुसार,ट्रंप की “टैक्स धमकी” मई में भारत-पाक के बीच वॉर सीजफायर समझौते को सफल बनाने में सहायक साबित हुई,जो जम्मू-कश्मीर के 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हुआ था। ट्रंप की टीम ने दावा किया कि इस समझौते में ट्रंप प्रशासन की सक्रिय भूमिका थी।
हालाँकि,भारत सरकार ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। भारत के अनुसार, युद्धविराम के पीछे किसी अमेरिकी मध्यस्थता का कोई योगदान नहीं था,बल्कि पाकिस्तान ने भारत से सैन्य प्रतिक्रिया रोकने की माँग की थी।
अदालत ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि आईईईपीए के तहत राष्ट्रपति को असीमित शक्तियाँ नहीं दी गई हैं और टैरिफ लगाने के लिए एक उचित कानूनी प्रक्रिया आवश्यक है। अदालत का फैसला यह स्पष्ट करता है कि ट्रंप की व्यापार नीति ने संवैधानिक सीमाओं को पार किया।
न्यायाधीशों ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि उनका निर्णय टैरिफ नीति की बुद्धिमत्ता या प्रभाव पर नहीं है,बल्कि यह पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया और संवैधानिक अधिकारों की सीमाओं पर आधारित है।
अदालत में दो प्रमुख मुकदमों पर सुनवाई हुई थी:
पहला मुकदमा लिबर्टी जस्टिस सेंटर ने पाँच छोटे अमेरिकी व्यवसायों की ओर से दायर किया था। इन कंपनियों का कहना था कि ट्रंप के टैरिफ निर्णय ने उनके व्यवसाय संचालन को प्रभावित किया है क्योंकि वे आयात पर निर्भर हैं।
दूसरा मुकदमा 13 अमेरिकी राज्यों ने दाखिल किया,जिन्होंने तर्क दिया कि यह नीति विधायी प्रक्रिया के बिना लागू की गई,जिससे उनके राज्यों में लागत और आर्थिक दबाव बढ़ गया।
इनके अतिरिक्त,देशभर में ट्रंप के टैरिफ निर्णयों के खिलाफ कम-से-कम पाँच और कानूनी चुनौतियाँ लंबित हैं,जो दिखाती हैं कि इस नीति को लेकर व्यापक असंतोष है।
हालाँकि,अदालत ने स्पष्ट फैसला सुनाया। ट्रंप प्रशासन ने इस निर्णय के तुरंत बाद अपील दर्ज कर दी,जिससे यह संकेत मिलता है कि यह कानूनी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। ट्रंप के समर्थकों का मानना है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है।
ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों पर 10 प्रतिशत बेसलाइन आयात शुल्क लगाया था,जिसमें चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों पर उच्च दरें निर्धारित की गईं। इस निर्णय के बाद अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में भारी उथल-पुथल देखी गई और कई देशों को अस्थायी रूप से इन टैरिफों पर रोक लगानी पड़ी।
स्थिति को संभालने के प्रयास में ट्रंप प्रशासन ने 12 मई को घोषणा की कि चीन पर लगाए गए कुछ टैरिफ अस्थायी रूप से कम किए जाएँगे। इसके साथ ही दोनों देशों ने 90 दिनों की अवधि के लिए शुल्कों में रियायतें देने पर सहमति जताई है,जिससे व्यापार वार्ताओं को सकारात्मक दिशा मिल सके।
ट्रंप की कानूनी टीम ने यह भी चेताया कि यदि टैरिफ नीति को रोका गया तो अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापार वार्ताएँ पटरी से उतर सकती हैं,जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता पर भी पड़ेगा।
यह फैसला ट्रंप की नीतियों के लिए एक बड़ा झटका है। अदालत ने साफ किया है कि राष्ट्रपति को विदेश व्यापार पर एकतरफा फैसला लेने की संवैधानिक छूट नहीं दी जा सकती,भले ही उसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा हो या भू-राजनीतिक रणनीति। यह निर्णय न केवल अमेरिका की राजनीतिक प्रक्रिया में संतुलन और नियंत्रण के महत्व को रेखांकित करता है,बल्कि दुनिया भर के नेताओं के लिए भी यह संदेश है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ सत्ता के दुरुपयोग को बर्दाश्त नहीं करतीं।
ट्रंप की अपील और आगामी कानूनी प्रक्रियाएँ यह तय करेंगी कि क्या राष्ट्रपति के आपातकालीन आर्थिक शक्तियों का विस्तार संभव है या उन्हें संविधान के दायरे में ही रहना होगा। फिलहाल,यह मामला अमेरिकी राजनीति और वैश्विक व्यापार व्यवस्था दोनों के लिए बेहद अहम मोड़ पर है।