वाशिंगटन,12 नवंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा प्रोग्राम को लेकर जारी विवादों के बीच इस वीजा प्रणाली का बचाव किया है। उन्होंने साफ कहा कि अमेरिका को कुछ खास उद्योगों के लिए विदेशी प्रतिभा की जरूरत है और यह ज़रूरत देश के तकनीकी व रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के विकास के लिए अनिवार्य है। ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है,जब उनकी प्रशासन ने हाल ही में एच-1बी वीजा पर सख्ती के कई कदम उठाए हैं,जिनमें आवेदन शुल्क बढ़ाना और जाँच अभियानों की शुरुआत शामिल है।
फॉक्स न्यूज की जानी-मानी एंकर लौरा इंग्राहम से बातचीत के दौरान जब ट्रंप से पूछा गया कि क्या उनकी सरकार एच-1बी वीजा को कम प्राथमिकता देने जा रही है,तो उन्होंने दृढ़ता से जवाब दिया—“आपको टैलेंट लाना ही होगा।” इंग्राहम ने तर्क दिया कि अमेरिका में पहले से ही पर्याप्त प्रतिभा मौजूद है,तो ट्रंप ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, “नहीं, आपके पास नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि कुछ खास तरह की प्रतिभाएँ अमेरिका में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि, “आप बेरोजगारों की कतार में खड़े किसी व्यक्ति को उठाकर यह नहीं कह सकते कि चलो,अब तुम मिसाइल फैक्ट्री में काम करो। हर काम के लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है और यही वास्तविकता है,जिसे स्वीकार करना होगा।”
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है,जब उनके प्रशासन ने सितंबर महीने में एच-1बी वीजा प्रणाली को लेकर कई कठोर प्रावधानों की घोषणा की थी। नई नीति के तहत एच-1बी वीजा आवेदन शुल्क को बढ़ाकर 100,000 डॉलर कर दिया गया है,जो पहले की तुलना में कई गुना अधिक है। अमेरिकी श्रम विभाग ने इस वीजा प्रोग्राम के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए “प्रोजेक्ट फायरवॉल” नामक एक विशेष पहल भी शुरू की है। इसके तहत 175 से अधिक जाँचें शुरू की गई हैं,जिनका उद्देश्य उन कंपनियों की पहचान करना है,जो एच-1बी वीजा का गलत इस्तेमाल कर रही हैं या अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों को प्रभावित कर रही हैं।
डीओएल सचिव लोरी शावेज-डीरीमर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर बयान जारी करते हुए कहा, “हम एच-1बी वीजा के दुरुपयोग को रोकने और अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा के लिए हर संभव संसाधन का उपयोग कर रहे हैं। अमेरिकी नौकरियाँ अमेरिकियों की हैं और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि विदेशी श्रम का इस्तेमाल केवल वैध जरूरतों के लिए ही हो।”
इसी बीच,फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसैंटिस ने राज्य के विश्वविद्यालयों में एच-1बी वीजा पर कार्यरत कर्मचारियों को हटाने का आदेश दिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि “हमें अपने लोगों को मौका देना चाहिए। विदेशी कर्मचारियों को लाने की जरूरत नहीं है,जब हमारे अपने नागरिक ये काम कर सकते हैं। यह सस्ते श्रम का तरीका बन चुका है और मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता।” डीसैंटिस का यह निर्णय ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के साथ मेल खाता है,लेकिन इससे विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में हड़कंप मच गया है,क्योंकि उनमें से कई एच-1बी वीजा धारकों पर निर्भर हैं।
हालाँकि,व्हाइट हाउस ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप की प्राथमिकता अमेरिकी कामगारों को पहले अवसर देना है। व्हाइट हाउस प्रवक्ता ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हर अमेरिकी को पहले रोजगार का मौका मिले,लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि योग्य विदेशी प्रतिभाओं को पूरी तरह बाहर कर दिया जाए। जहाँ विशेष कौशल की जरूरत होगी,वहाँ विदेशी विशेषज्ञों को अवसर मिलते रहेंगे।”
ट्रंप प्रशासन की इस नीति के खिलाफ अब कानूनी चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। अमेरिकी उद्योग जगत ने इसे “प्रतिभा के पलायन” की शुरुआत बताया है। यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस नीति के खिलाफ मुकदमा दायर किया है,जिसमें कहा गया है कि सरकार के कदम से न केवल अमेरिकी तकनीकी उद्योग प्रभावित होगा,बल्कि इससे देश की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता भी कमजोर पड़ सकती है।
उधर, 31 अक्टूबर को अमेरिकी कांग्रेस के पाँच सांसदों ने ट्रंप को पत्र लिखकर 19 सितंबर के आदेश पर पुनर्विचार करने की अपील की। पत्र में कहा गया कि एच-1बी नीति में अचानक की गई सख्ती भारत-अमेरिका संबंधों पर नकारात्मक असर डाल सकती है। सांसदों ने चेतावनी दी कि इस निर्णय से भारत के साथ टेक्नोलॉजी और शिक्षा क्षेत्र में सहयोग प्रभावित हो सकता है,जबकि दोनों देशों के बीच इस समय तकनीकी साझेदारी मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है।
गौरतलब है कि साल 2024 में जारी कुल एच-1बी वीजाओं में से 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय मूल के पेशेवरों को मिले थे। इनमें से अधिकांश आईटी,इंजीनियरिंग, हेल्थकेयर और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों से जुड़े हैं। भारतीय टेक कंपनियाँ जैसे इंफोसिस,टीसीएस,विप्रो और टेक महिंद्रा अमेरिका के बाजार में अपने प्रोजेक्ट्स के लिए इन वीजाओं पर निर्भर हैं। अगर ट्रंप प्रशासन की सख्ती जारी रहती है,तो इससे भारतीय प्रोफेशनलों के अवसरों पर असर पड़ सकता है।
ट्रंप का यह बयान,हालाँकि,यह संकेत देता है कि वे पूरी तरह एच-1बी प्रोग्राम को खत्म करने के पक्ष में नहीं हैं,बल्कि उनका रुख यह है कि इस वीजा सिस्टम को दुरुपयोग से मुक्त रखते हुए केवल अत्यधिक योग्य और आवश्यक प्रतिभाओं को ही अनुमति दी जानी चाहिए। यह दृष्टिकोण उनके “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडे और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति का यह बयान निश्चित रूप से भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के लिए कुछ राहत लेकर आया है। जहाँ एक ओर नीति की सख्ती चिंता पैदा कर रही है,वहीं ट्रंप के हालिया शब्दों ने उम्मीद जगाई है कि अमेरिका अभी भी वैश्विक टैलेंट के महत्व को समझता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप प्रशासन एच-1बी वीजा प्रणाली में सुधार लाने के लिए कौन-से नए कदम उठाता है और क्या वाकई “विदेशी टैलेंट” के लिए दरवाजे खुले रहेंगे या नहीं।

