फीफा ने डोनाल्ड ट्रंप को दिया शांति पुरस्कार (तस्वीर क्रेडिट@Desidude175)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फीफा ने दिया शांति पुरस्कार,नोबेल न मिलने की कसक बनी चर्चा का विषय

नई दिल्ली,6 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने की इच्छा जताते रहे हैं। वे अपने कार्यकाल के दौरान कई मौकों पर दावा कर चुके हैं कि उन्होंने विश्व के अनेक संघर्षों को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई और इसी आधार पर वे खुद को नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य मानते हैं। हालाँकि,उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी,लेकिन आखिरकार उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा सम्मान जरूर मिला—फीफा का शांति पुरस्कार। वॉशिंगटन डीसी के प्रतिष्ठित कैनेडी सेंटर में आयोजित भव्य समारोह में ट्रंप को गोल्ड ट्रॉफी और एक विशेष पदक देकर इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

फीफा,जो दुनिया की सबसे बड़ी फुटबॉल संस्था है,ने इस वर्ष पहली बार शांति पुरस्कार की शुरुआत की है। इस पुरस्कार का उद्देश्य उन व्यक्तियों को सम्मानित करना है जो दुनिया में शांति,सद्भाव और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। फीफा का मानना है कि खेल सिर्फ मनोरंजन नहीं,बल्कि समाजों को जोड़ने और संघर्ष की स्थितियों में वार्ता का पुल बनाने का एक माध्यम है। इसी सोच के आधार पर संस्थान ने वैश्विक शांति के प्रयासों को पहचान देने की यह नई पहल की है।

समारोह में ट्रंप के सम्मान से पहले एक विशेष वीडियो प्रस्तुत किया गया,जिसमें उनके कूटनीतिक प्रयासों की झलक दिखाई गई। इस वीडियो में न सिर्फ अमेरिका की विदेश नीति के पहलुओं को उजागर किया गया,बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू,उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और अन्य प्रमुख विश्व नेताओं से हुए उनके संवाद भी शामिल थे। कार्यक्रम के दौरान यह बताया गया कि विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों में मध्यस्थता की उनकी पहल ने दुनिया के कई क्षेत्रों में तनाव कम करने में योगदान दिया।

पुरस्कार ग्रहण करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “यह वास्तव में मेरे जीवन का एक महान और अविश्वसनीय सम्मान है,लेकिन इस सम्मान से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हमने अपने प्रयासों से करोड़ों लोगों की जिंदगी बचाई।” उन्होंने अपने भाषण में विशेष रूप से कांगो का जिक्र किया,जहाँ पिछले कई दशकों से हिंसा और गृहयुद्ध का भयावह दौर जारी रहा है। ट्रंप के अनुसार,कांगो में पिछले वर्षों में हिंसा के कारण लगभग एक करोड़ लोग मारे गए थे और अगर स्थिति पर नियंत्रण नहीं किया जाता तो यह संख्या और बढ़ सकती थी। उन्होंने दावा किया कि अमेरिका के हस्तक्षेप से वहाँ की परिस्थिति को काफी हद तक नियंत्रित किया गया।

ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के अपने योगदान का भी उल्लेख किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई बार कहा था कि वे भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं,हालाँकि भारत की ओर से इस पर सहमति नहीं दी गई थी। इसके बावजूद ट्रंप का कहना है कि अमेरिका ने कई संवेदनशील मौकों पर पर्दे के पीछे रहकर दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में मदद की।

ट्रंप ने इस अवसर पर अपने लंबे समय से चले आ रहे दावे को भी दोहराया कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना चाहिए था। उनके शब्दों में, “यह गर्व की बात है कि मैंने कई वैश्विक संघर्षों को खत्म करने में भूमिका निभाई। इसी संदर्भ में मैंने अपनी उम्मीदवारी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी जोड़ा था,लेकिन खैर,यह पुरस्कार भी मेरे लिए कम नहीं है।”

उनकी इस टिप्पणी पर समारोह में मौजूद लोग मुस्कुराते दिखाई दिए। ट्रंप की नोबेल पुरस्कार न मिलने की शिकायतें पिछले कई वर्षों से चर्चा का विषय रही हैं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर भी कई बार लिखा कि दुनिया उनके योगदान को नजरअंदाज कर रही है।

इस वर्ष अमेरिका में भी ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की काफी माँग उठी थी। कई रिपब्लिकन नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि ट्रंप ने मध्य-पूर्व में अब्राहम समझौतों को करवाकर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है और इसके लिए वह नोबेल के योग्य हैं। अब्राहम समझौतों के तहत इजरायल और कई अरब देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की शुरुआत हुई थी। विशेषज्ञों का भी मानना है कि यह समझौता मध्य-पूर्व की राजनीतिक संरचना में एक बड़ा परिवर्तन था।

हालाँकि,नॉर्वे की नोबेल पुरस्कार समिति ने इस वर्ष वेनेजुएला की नेता मारिया कोरिना मचाडो को 2025 का शांति पुरस्कार प्रदान किया। मचाडो को यह पुरस्कार वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने के लिए दिया गया है। समिति के इस निर्णय के बाद ट्रंप समर्थकों ने समिति पर पक्षपात के आरोप लगाए और कहा कि ट्रंप के वैश्विक प्रभाव को जानबूझकर अनदेखा किया गया।

फीफा के इस नए पुरस्कार ने ट्रंप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान जरूर दी है। हालाँकि,यह नोबेल शांति पुरस्कार नहीं है,लेकिन ट्रंप समर्थकों का मानना है कि यह उनके शांति प्रयासों की एक महत्वपूर्ण मान्यता है। वहीं उनके आलोचकों का कहना है कि ट्रंप के कई कदमों ने विश्व में तनाव बढ़ाया भी है,इसलिए इस पुरस्कार को लेकर विवाद होना स्वाभाविक है।

फिर भी यह स्पष्ट है कि फीफा के पहले शांति पुरस्कार के रूप में डोनाल्ड ट्रंप की पहचान इतिहास में दर्ज हो चुकी है। यह पुरस्कार आगे आने वाले वर्षों में कितना प्रतिष्ठित बनता है,यह तो समय बताएगा,लेकिन वर्तमान में इससे ट्रंप की वैश्विक छवि को नई मजबूती जरूर मिलती दिखाई दे रही है।