न्यूयॉर्क,30 मई (युआईटीवी)- अमेरिका की राजनीति और वैश्विक व्यापार नीति से जुड़ा एक बड़ा फैसला हाल ही में सामने आया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विवादास्पद टैरिफ प्लान (शुल्क नीति) को लेकर संघीय अदालत ने अस्थाई रूप से बहाल करने का आदेश दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है,जब यूएस इंटरनेशनल ट्रेड कोर्ट ने ठीक एक दिन पहले ही ट्रंप के टैरिफ को गैरकानूनी ठहराते हुए उस पर रोक लगाने का निर्देश दिया था।
इस घटनाक्रम ने अमेरिका की आंतरिक राजनीति के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जगत में भी हलचल मचा दी है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति काल में “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत चीन,यूरोप,कनाडा और अन्य देशों से आयात होने वाले सामान पर भारी शुल्क (टैरिफ) लगाया था। उनका तर्क था कि इससे अमेरिकी उद्योगों को सुरक्षा मिलेगी,नौकरियाँ वापस आएँगी और विदेशी प्रतिस्पर्धा से अमेरिकी उत्पादक बचेंगे,लेकिन आलोचकों का कहना था कि इससे वैश्विक व्यापार को नुकसान पहुँचा और अमेरिका की छवि एक संरक्षणवादी देश के रूप में उभरी।
हाल ही में यूएस इंटरनेशनल ट्रेड कोर्ट ने ट्रंप के इन टैरिफ को असंवैधानिक और अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए इन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ऐसे निर्णय लिए हैं जो विधायिका (कांग्रेस) के क्षेत्र में आते हैं। इस फैसले को व्यापार संगठनों और विपक्षी दलों ने बड़ी जीत के रूप में देखा।
लेकिन ट्रंप प्रशासन के लिए राहत भरी खबर तब आई,जब एक संघीय फेडरल कोर्ट ने अगले ही दिन टैरिफ को अस्थाई रूप से बहाल करने का आदेश दे दिया। अदालत ने कहा कि इन टैरिफ्स को हटाने से अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसलिए जब तक इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं आ जाता,तब तक इन शुल्कों को लागू रहने दिया जाए।
अदालत ने इस आदेश के साथ ही सभी पक्षों को जवाब देने की समयसीमा भी तय की है। वादियों को 5 जून तक और ट्रंप प्रशासन को 9 जून तक जवाब दाखिल करने को कहा गया है।
इस पूरे प्रकरण पर व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने आक्रामक प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि, “दुनिया भर के देश राष्ट्रपति ट्रंप पर भरोसा करते हैं। वे भी देख रहे हैं कि इंटरनेशनल कोर्ट का फैसला कितना हास्यास्पद है।”
उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन ने इस फैसले को आपातकालीन अपील के जरिए चुनौती दी है और वे इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने को तैयार हैं।
जब उनसे पूछा गया कि क्या इस फैसले के बाद ट्रंप ने अन्य देशों के नेताओं से बातचीत की है,तो उन्होंने बताया कि ट्रंप ने जापान के प्रधानमंत्री से बात की है,जो एक सकारात्मक और रचनात्मक बातचीत रही।
कैरोलिन लेविट ने अपनी बात में यह भी जोड़ा कि पिछले दशकों में अमेरिकी मध्यम वर्ग को आर्थिक रूप से नुकसान हुआ है। उद्योग विदेश चले गए,नौकरियाँ खत्म हुईं, लेकिन तब किसी अदालत ने कुछ नहीं किया। अब जबकि एक राष्ट्रपति इन पुरानी गलतियों को सुधारने की कोशिश कर रहा है,तो उस पर रोक लगाने की कोशिश हो रही है।
उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी जनता से वादा किया था कि वे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करेंगे। हम इस नीति को जारी रखेंगे और अदालत में यह लड़ाई जीतेंगे।”
अब इस मामले में दो अदालतों के परस्पर विरोधी निर्णय आ चुके हैं। एक अदालत ने टैरिफ पर रोक लगाई है और दूसरी ने उसे अस्थाई रूप से बहाल कर दिया है। इस स्थिति में अब अंतिम निर्णय उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के पास जा सकता है, जो यह तय करेगा कि राष्ट्रपति को ऐसे टैरिफ लगाने का कितना अधिकार है और क्या यह उनकी शक्ति की सीमा में आता है।
डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ प्लान पर कानूनी लड़ाई केवल अमेरिकी अदालतों तक सीमित नहीं है,बल्कि इसके राजनीतिक,आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव भी गंभीर हैं। एक ओर जहाँ ये टैरिफ अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण देने की कोशिश है,वहीं दूसरी ओर ये वैश्विक व्यापार नीति और अमेरिकी संविधान के बीच टकराव का प्रतीक बन गए हैं।
अब सबकी निगाहें अदालत के अगले आदेशों पर टिकी हैं। क्या ट्रंप अपने इस आर्थिक एजेंडा को बचा पाएँगे ? क्या यह फैसला उन्हें आगामी राष्ट्रपति चुनाव में फायदा देगा? आने वाले हफ्ते इस पर स्पष्टता ला सकते हैं।