राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,ट्रंप प्रशासन को प्रवासी नीतियों में बदलाव की छूट,लाखों लोगों पर निर्वासन की तलवार

न्यूयॉर्क,31 मई (युआईटीवी)- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण और दूरगामी असर डालने वाले फैसले में ट्रंप प्रशासन को प्रवासी नीति में कड़ा कदम उठाने की मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है,जिसने चार देशों – क्यूबा,हैती,निकारागुआ और वेनेजुएला के पाँच लाख से अधिक प्रवासियों को मानवीय आधार पर दी गई पैरोल सुरक्षा को कायम रखा था। इस फैसले के साथ ही ट्रंप सरकार के लिए लाखों प्रवासियों की अस्थायी कानूनी स्थिति खत्म करने का रास्ता साफ हो गया है,जिससे लगभग 10 लाख प्रवासियों के निर्वासन का खतरा मंडराने लगा है।

पैरोल कार्यक्रम अमेरिकी सरकार द्वारा विशेष परिस्थितियों में प्रवासियों को अस्थायी रूप से अमेरिका में रहने की अनुमति देने की एक नीति है। इसमें प्रवासियों को दो साल तक अमेरिका में रहने और काम करने की अनुमति मिलती है,हालाँकि,यह उन्हें स्थायी नागरिकता की दिशा में कोई अधिकार नहीं देता। 2022 के अंत और 2023 की शुरुआत में,बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर बढ़ती प्रवासी समस्या को देखते हुए क्यूबा,हैती,निकारागुआ और वेनेजुएला के नागरिकों के लिए विशेष पैरोल प्रोग्राम शुरू किया था। इस प्रोग्राम के तहत अब तक लगभग 5,32,000 लोगों को राहत मिली थी।

ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के तुरंत बाद ही प्रवासियों के खिलाफ सख्त रुख अपना लिया। उन्होंने होमलैंड सिक्योरिटी की नई सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम को सभी मानवीय पैरोल प्रोग्राम को तत्काल समाप्त करने का निर्देश दिया। इसके तहत मार्च 2025 में घोषणा की गई कि सभी मौजूदा पैरोल की वैधता 24 अप्रैल तक खत्म मानी जाएगी। यह कदम उन प्रवासियों के लिए एक गहरा झटका था,जो पहले से अमेरिका में रह रहे थे और किसी सुरक्षित भविष्य की उम्मीद कर रहे थे।

इस फैसले के विरोध में मैसाचुसेट्स की फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ताओं में 23 व्यक्ति शामिल थे,जिनमें कई पैरोल पर आए प्रवासी और एक गैर-लाभकारी संगठन भी थे। उन्होंने तर्क दिया कि अचानक से पैरोल प्रोग्राम को खत्म करना न केवल मानवीय दृष्टिकोण से अनुचित है,बल्कि यह अमेरिका में पहले से रह रहे लोगों की सुरक्षा और अस्तित्व पर सीधा खतरा है। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने इन दलीलों को मानते हुए ट्रंप प्रशासन के फैसले को अस्थायी रूप से रोक दिया था।

इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने पहले सर्किट के लिए यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स में अपील की,लेकिन वहाँ से भी राहत नहीं मिली। अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा और शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के रोक आदेश को निरस्त कर दिया।

इस फैसले से अमेरिका में रहने वाले लगभग 10 लाख प्रवासियों की स्थिति अस्थिर हो गई है। इनमें से करीब 5.3 लाख लोग वो हैं,जिन्हें बाइडेन के पैरोल प्रोग्राम के तहत अस्थायी राहत मिली थी,जबकि लगभग 3.5 लाख वेनेजुएला के नागरिक हैं,जिन्हें पूर्व में दी गई अस्थायी सुरक्षा अब रद्द हो चुकी है। अब ये सभी लोग निर्वासन के खतरे की जद में आ गए हैं।

इस फैसले के बाद अमेरिका में प्रवासी अधिकारों को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है,जहाँ ट्रंप समर्थक इसे एक “कानून और व्यवस्था” के पक्ष में उठाया गया सही कदम मान रहे हैं,वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता और डेमोक्रेटिक पार्टी इससे असहमत हैं। उनका मानना है कि यह फैसला न केवल अमानवीय है,बल्कि अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुँचा सकता है,जो खुद को हमेशा शरणार्थियों और सताए गए लोगों के लिए सुरक्षित ठिकाना बताता आया है।

डेमोक्रेट सांसदों का यह भी कहना है कि ट्रंप की यह नीति शरणार्थियों के लिए शून्य सहानुभूति का संकेत है और यह अमेरिका की ऐतिहासिक आव्रजन नीतियों के विपरीत है। वहीं ट्रंप ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे अमेरिका की सीमाओं की “पुनर्स्थापना” का हिस्सा बताया है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रंप प्रशासन को प्रवासियों के खिलाफ कठोर नीतियाँ लागू करने की खुली छूट देता है। इसका सीधा असर लाखों लोगों की ज़िंदगी और उनके भविष्य पर पड़ेगा। आगामी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र यह मुद्दा और अधिक राजनीतिक रूप ले सकता है। एक ओर जहाँ यह ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति को मजबूती देता है,वहीं दूसरी ओर यह अमेरिका की उदार और मानवीय छवि को झटका भी दे सकता है।

अब देखना यह है कि बाइडेन प्रशासन इस चुनौती का जवाब कैसे देता है और क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ कोई वैकल्पिक रणनीति अपनाई जाती है या नहीं,लेकिन फिलहाल के लिए,लाखों प्रवासियों पर अनिश्चितता और डर का साया गहरा गया है।