सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी (तस्वीर क्रेडिट@mahendra_akella)

सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने किया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का विमोचन,एलओसी पार भारत की निर्णायक कार्रवाई की अनकही कहानी आई सामने

नई दिल्ली,6 सितंबर (युआईटीवी)- नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में शुक्रवार का दिन भारतीय सैन्य इतिहास के लिए खास रहा। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इस अवसर पर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) केजेएस ढिल्लों द्वारा लिखी पुस्तक ‘ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान में भारत के गहरे हमलों की अनकही कहानी’ का विमोचन किया। इस किताब के जरिए हाल ही में एलओसी के पार किए गए भारत के बहुआयामी और निर्णायक सैन्य अभियान की परतें दुनिया के सामने आई हैं। यह पुस्तक न केवल युद्ध की रणनीति और घटनाक्रम को दर्ज करती है,बल्कि भारतीय सैनिकों की जज्बे,पेशेवर रवैये और साहसिक भावना को भी श्रद्धांजलि देती है।

पुस्तक विमोचन के मौके पर बोलते हुए सेना प्रमुख ने इस ऑपरेशन की गहराई और इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अभियान सिर्फ 88 घंटों तक सीमित नहीं था,जैसा कि आमतौर पर समझा जाता है। उनके अनुसार,यह सोचना गलत है कि युद्ध 10 मई को खत्म हो गया था। वास्तव में यह लंबा चला,क्योंकि हर स्तर पर लगातार गंभीर फैसले लेने पड़ते रहे। उन्होंने कहा कि ऐसे अभियानों में सवाल केवल लड़ाई के शुरू और खत्म होने तक सीमित नहीं रहते,बल्कि इस बात पर भी होते हैं कि कब कार्रवाई करनी है,कब रोकनी है,किस समय,किस स्थान और किन संसाधनों का उपयोग करना है। हर निर्णय के पीछे गहन मंथन और रणनीतिक संतुलन होता है।

जनरल द्विवेदी ने बताया कि इस अभियान से पहले ही कई रणनीतिक विकल्पों पर विचार किया गया था। उन्होंने कहा कि 22-23 अप्रैल को सेना ने दिग्गज सैनिकों के साथ मिलकर गहन विमर्श किया था। इसके अलावा,22-23 अगस्त को भी उन्होंने पूर्व सैनिकों और विशेषज्ञों से बातचीत की। उन्होंने स्वीकार किया कि उन चर्चाओं में कई शानदार विचार सामने आए,लेकिन यह आवश्यक था कि उन्हें राष्ट्रीय हित और दीर्घकालिक सुरक्षा दृष्टिकोण के आधार पर व्यवस्थित किया जाए। उनके अनुसार,इस तरह के अभियानों में हर कार्रवाई का दीर्घकालिक प्रभाव होता है और उतना ही महत्वपूर्ण होता है किसी विशेष परिस्थिति में निष्क्रिय बने रहने का फैसला लेना।

सेना प्रमुख ने उस अभियान के दौरान सेना की एकजुटता और लय पर भी विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि उन 88 घंटों में भारतीय सेना एक लयबद्ध लहर की तरह आगे बढ़ी। हर सैनिक और हर अधिकारी अपने आदेशों और जिम्मेदारियों से भली-भांति परिचित था। यही कारण था कि सीमित समय में इतना बड़ा परिणाम हासिल किया जा सका। उनके अनुसार,यह केवल सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं था,बल्कि भारतीय सेना की पेशेवर प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक था।

इस मौके पर जनरल द्विवेदी ने यह भी उल्लेख किया कि एलओसी पर होने वाले संघर्षों को अक्सर वह महत्व नहीं दिया जाता,जिसके वे हकदार हैं। उन्होंने कहा कि हम इस तरह की झड़पों और संघर्षों के इतने आदी हो चुके हैं कि अक्सर इसकी गंभीरता और इसके भीतर छिपी भावनाओं,नुकसान और उपलब्धियों को नजरअंदाज कर देते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब दूसरी तरफ से मरणोपरांत वीरता पुरस्कारों की सूची सामने आई,तो यह स्पष्ट था कि नियंत्रण रेखा पर हुए संघर्षों ने किस हद तक असर डाला था।

उन्होंने इस पुस्तक की अहमियत पर बात करते हुए कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य अभियान का दस्तावेज नहीं है। यह पुस्तक उन अनकहे पहलुओं को दर्ज करती है जिन्हें इतिहास के पन्नों पर जगह मिलनी चाहिए। इसमें न सिर्फ अभियान की रणनीतियाँ और घटनाएँ दर्ज हैं,बल्कि इसमें भारतीय सैनिकों के साहस,उनके धैर्य और उनकी अटूट भावना की कहानी भी है। सेना प्रमुख ने कहा कि यह किताब आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होगी और इससे यह सुनिश्चित होगा कि इस अभियान की सीखें और इसकी भावना हमेशा संरक्षित रहें।

लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) केजेएस ढिल्लों ने इस पुस्तक में एलओसी पार किए गए उस निर्णायक अभियान का ब्योरा दिया है,जिसने पाकिस्तान को गहरी चोट पहुँचाई थी। यह किताब उन कठिन परिस्थितियों और फैसलों को सामने लाती है,जिनमें न केवल सैनिकों का साहस बल्कि नेतृत्व की दूरदर्शिता भी परखी गई थी। ढिल्लों ने यह दिखाने की कोशिश की है कि ऐसे अभियानों में केवल गोलाबारी और रणनीति ही नहीं,बल्कि मानवीय भावनाएँ,सैनिकों का मनोबल और राष्ट्रीय संकल्प भी बराबर की भूमिका निभाते हैं।

पुस्तक विमोचन के अवसर पर उपस्थित दर्शकों और अधिकारियों ने भी इस बात पर सहमति जताई कि ऐसे दस्तावेज आवश्यक हैं। यह केवल सैन्य इतिहास को संरक्षित करने के लिए नहीं,बल्कि नागरिक समाज को भी यह समझाने के लिए जरूरी हैं कि सीमाओं पर लड़ने वाले सैनिक किन परिस्थितियों से गुजरते हैं और उनके फैसलों का देश पर कितना गहरा असर पड़ता है।

अंत में,जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारतीय सेना की उस अदम्य भावना का प्रतीक है,जो हमेशा राष्ट्रीय सुरक्षा और सम्मान को सर्वोपरि रखती है। यह केवल अतीत की कहानी नहीं है,बल्कि भविष्य के लिए सीख भी है। यह दिखाती है कि कैसे सामूहिक प्रयास,पेशेवर दृष्टिकोण और अटूट संकल्प किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

इस विमोचन के साथ ही यह पुस्तक अब पाठकों तक पहुँच चुकी है। उम्मीद है कि यह न केवल सैन्य इतिहास में रुचि रखने वालों को,बल्कि आम नागरिकों को भी उस वीरता और त्याग की झलक दिखाएगी,जो भारतीय सेना के हर अभियान की पहचान है।