नई दिल्ली,18 दिसंबर (युआईटीवी)- ऑस्ट्रेलिया लंबे समय से दुनिया के उन देशों में गिना जाता है,जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सख्त नियमों के लिए जाने जाते हैं। खासतौर पर बच्चों और किशोरों को ऑनलाइन हिंसा,घृणा और आपत्तिजनक कंटेंट से बचाने के मामले में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए हैं,जिनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना भी हुई है। टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया पर उम्र की सीमा तय करने से लेकर हिंसक और भड़काऊ वीडियो पर त्वरित कार्रवाई तक,ऑस्ट्रेलिया ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि डिजिटल आज़ादी के साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है,लेकिन हालिया मामला,जिसमें एलन मस्क की सोशल मीडिया कंपनी एक्स (पूर्व में ट्विटर) को ऑस्ट्रेलिया में एक अहम कानूनी जीत मिली है,इस बहस को एक नए मोड़ पर ले आया है।
यह विवाद अमेरिकी दक्षिणपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता चार्ली किर्क की हत्या से जुड़े वीडियो को लेकर शुरू हुआ। सितंबर 2025 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान किर्क की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। घटना के तुरंत बाद शूटिंग के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गए। ये वीडियो बेहद संवेदनशील और हिंसक माने जा रहे थे। ऑस्ट्रेलिया की ई-सेफ्टी कमिश्नर ने इन्हें “अत्यधिक हिंसक” करार देते हुए ‘रिफ्यूज्ड क्लासिफिकेशन’ श्रेणी में डाल दिया। इसका सीधा अर्थ यह था कि ऑस्ट्रेलिया में इन वीडियो को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इन्हें दिखाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन का तर्क था कि ऐसे वीडियो न केवल पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए अपमानजनक हैं,बल्कि समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। खासतौर पर बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर गंभीर हो सकता है। इसी आधार पर एक्स समेत अन्य प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दिया गया कि वे इस कंटेंट को तुरंत हटाएँ।
हालाँकि,एलन मस्क की कंपनी एक्स ने इस आदेश को अदालत में चुनौती दी। कंपनी ने कहा कि यह वीडियो किसी तरह की हिंसा को बढ़ावा देने या सनसनी फैलाने के लिए नहीं है,बल्कि एक वास्तविक और ऐतिहासिक घटना का दस्तावेज है। एक्स का तर्क था कि दुनिया के इतिहास में कई ऐसे दृश्य रिकॉर्ड मौजूद हैं,जो हिंसक होने के बावजूद सार्वजनिक महत्व रखते हैं। कंपनी ने अपनी दलील में जॉन एफ. कैनेडी की हत्या के वीडियो का उदाहरण दिया,जिसे आज भी ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में देखा जाता है।
एक्स ने यह भी चेतावनी दी कि यदि किसी एक देश के कानून के आधार पर वैश्विक प्लेटफॉर्म पर कंटेंट को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाने लगे,तो यह इंटरनेट की खुली प्रकृति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक मिसाल बन सकता है। कंपनी का कहना था कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को सरकारों के दबाव में आकर हर संवेदनशील कंटेंट को ब्लॉक करने के बजाय संदर्भ,चेतावनी और उम्र-आधारित नियंत्रण जैसे विकल्प अपनाने चाहिए।
मामला अंततः ऑस्ट्रेलिया के ‘क्लासिफिकेशन रिव्यू बोर्ड’ के पास पहुँचा। बोर्ड ने ई-सेफ्टी कमिश्नर के पहले फैसले की समीक्षा की और उसे पलट दिया। अपने आदेश में बोर्ड ने माना कि यह वीडियो अनावश्यक रूप से क्रूर या उत्तेजक नहीं है। बोर्ड के अनुसार,हालाँकि वीडियो हिंसक है,लेकिन इसे पूरी तरह प्रतिबंधित करना उचित नहीं होगा क्योंकि इसका सार्वजनिक और ऐतिहासिक महत्व है। इसके बजाय,बोर्ड ने इसे आर18+ श्रेणी में रखने का फैसला किया। इसका मतलब यह हुआ कि अब यह वीडियो ऑस्ट्रेलिया में वयस्क दर्शकों द्वारा देखा जा सकता है,जबकि बच्चों और नाबालिगों के लिए इस पर पाबंदी बनी रहेगी।
इस फैसले के बाद एलन मस्क ने इसे “फ्री स्पीच की जीत” करार दिया। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की बुनियाद है और जनता को महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ी जानकारी तक पहुंच का अधिकार होना चाहिए,चाहे वह जानकारी असहज या परेशान करने वाली ही क्यों न हो। एक्स के ग्लोबल गवर्नमेंट अफेयर्स अकाउंट ने भी एक पोस्ट के जरिए इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि कंपनी ने यह केस फ्री स्पीच और सार्वजनिक महत्व के मामलों तक लोगों की पहुँच बनाए रखने के लिए लड़ा था।
लेकिन इस फैसले ने ऑस्ट्रेलिया में एक नई बहस भी छेड़ दी है। कई बाल-अधिकार और सुरक्षा से जुड़े संगठनों ने चिंता जताई है कि हिंसक फुटेज तक आसान पहुँच समाज के लिए नुकसानदेह हो सकती है। उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो अक्सर बिना किसी चेतावनी,संदर्भ या संवेदनशील प्रस्तुति के दिखाए जाते हैं,जिससे दर्शक मानसिक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। आलोचकों का मानना है कि भले ही वीडियो ऐतिहासिक रिकॉर्ड हो,लेकिन उसे देखने का तरीका और मंच बेहद अहम है।
यह पहली बार नहीं है,जब एक्स और ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन आमने-सामने आए हों। इससे पहले भी प्लेटफॉर्म पर हिंसक कंटेंट,गलत सूचना और नफरत फैलाने वाले पोस्ट्स को लेकर दोनों के बीच टकराव हो चुका है। ऑस्ट्रेलिया का मानना है कि सरकारों को अपने नागरिकों,खासकर बच्चों,को डिजिटल खतरों से बचाने के लिए सख्त कदम उठाने का अधिकार है। वहीं,एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स का तर्क है कि अत्यधिक नियंत्रण अभिव्यक्ति की आज़ादी को कमजोर करता है।
चार्ली किर्क हत्या वीडियो से जुड़ा यह फैसला इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह आने वाले समय में सरकारों और सोशल मीडिया कंपनियों के रिश्तों की दिशा तय कर सकता है। यह सवाल और गहरा हो गया है कि क्या डिजिटल युग में सरकारें यह तय करेंगी कि लोग क्या देख सकते हैं और क्या नहीं या फिर प्लेटफॉर्म्स को अधिक स्वतंत्रता दी जाएगी,ताकि वे खुद संतुलन बना सकें।
फिलहाल,ऑस्ट्रेलिया में वयस्क यूजर्स इस वीडियो को देख सकेंगे,लेकिन बहस अभी खत्म नहीं हुई है। यह मामला फ्री स्पीच,डिजिटल सुरक्षा और सरकारों की ऑनलाइन ताकत के बीच उस नाजुक संतुलन की याद दिलाता है,जिसे साधना आने वाले वर्षों में और भी चुनौतीपूर्ण होने वाला है।
