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बीसीसीआई को बड़ा झटका: बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व आईपीएल टीम कोच्चि टस्कर्स को 538 करोड़ रुपये चुकाने का दिया आदेश

नई दिल्ली,19 जून (युआईटीवी)- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को बॉम्बे हाईकोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की पूर्व फ्रेंचाइजी कोच्चि टस्कर्स केरला को 538 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह मामला बीसीसीआई और फ्रेंचाइजी मालिकों के बीच लंबे समय से चल रही मध्यस्थता प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है,जिसका अंत अब हाईकोर्ट के इस फैसले के रूप में सामने आया है।

कोच्चि टस्कर्स केरला ने केवल आईपीएल 2011 सीज़न में हिस्सा लिया था। फ्रेंचाइजी का मालिकाना हक रोंदिवू स्पोर्ट्स वर्ल्ड (आरएसडब्ल्यू) समूह के पास था,जिसे बाद में कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (केसीपीएल) के नाम से संचालित किया गया। बीसीसीआई ने फ्रेंचाइजी का अनुबंध अगले सीजन से पहले ही समाप्त कर दिया था।

बीसीसीआई का तर्क था कि फ्रेंचाइजी बैंक गारंटी जमा करने में विफल रही,जो कि आईपीएल संचालन के लिए आवश्यक शर्तों में से एक थी। इसके विरोध में, आरएसडब्ल्यू और केसीपीएल ने 2012 में मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू की थी, जिसमें उन्होंने बीसीसीआई के इस निर्णय को मनमाना और अनुचित बताया।

इस विवाद पर 2015 में मध्यस्थता पंचाट ने फैसला सुनाते हुए बीसीसीआई को आदेश दिया कि वह केसीपीएल को 384.8 करोड़ रुपये का मुआवजा,साथ ही ब्याज और कानूनी खर्चों सहित आरएसडब्ल्यू को 153.3 करोड़ रुपये से अधिक की राशि लौटाए। कुल मिलाकर बीसीसीआई को 538 करोड़ रुपये से अधिक की राशि चुकाने को कहा गया।

बीसीसीआई इस फैसले से संतुष्ट नहीं था और उसने बॉम्बे हाईकोर्ट में मध्यस्थता के निर्णय को चुनौती दी थी। बीसीसीआई का कहना था कि मध्यस्थता पंचाट का फैसला अनुचित और त्रुटिपूर्ण है।

हालाँकि,बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आर. चागला ने बीसीसीआई की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, “मध्यस्थता निर्णय में कोई स्पष्ट अवैधता नहीं है,जिससे न्यायालय को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता हो।”

इस प्रकार कोर्ट ने न केवल बीसीसीआई की याचिका खारिज की,बल्कि मध्यस्थ के फैसले को बरकरार रखते हुए बीसीसीआई को पूरी राशि चुकाने का निर्देश भी दे दिया।

कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला देश में मध्यस्थता व्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है। जब कोई पक्ष मध्यस्थता में जाने के लिए तैयार होता है और फिर फैसले से असंतुष्ट होकर कोर्ट में जाता है,तो अदालतें तभी हस्तक्षेप करती हैं,जब प्रक्रिया में कोई गंभीर त्रुटि हो। इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि बीसीसीआई की आपत्तियों में वैधानिक आधार नहीं है।

हालाँकि,बीसीसीआई को बॉम्बे हाईकोर्ट से झटका लगा है,लेकिन अभी भी उसके पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प मौजूद है। यदि बीसीसीआई शीर्ष अदालत में याचिका दायर करता है,तो अंतिम निर्णय वहीं से आएगा। मगर यह स्पष्ट है कि हाईकोर्ट का फैसला उसके लिए एक बड़ा कानूनी और आर्थिक झटका है।

यह मामला सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं,बल्कि बीसीसीआई की प्रशासनिक कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है। कोच्चि टस्कर्स केरला जैसे फ्रेंचाइजी के साथ अनुबंध समाप्त करने की प्रक्रिया और उसके बाद की कानूनी लड़ाई से यह संदेश गया है कि बीसीसीआई को अपनी अनुबंध नीतियों की समीक्षा करनी होगी।

बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला भारत के खेल संगठनों को यह संदेश देता है कि न्यायिक और मध्यस्थता प्रक्रिया को गंभीरता से लेना चाहिए। बीसीसीआई जैसे शक्तिशाली संगठन को भी कानूनी ढाँचे में रहकर ही कार्य करना होगा।

इस प्रकरण से यह भी स्पष्ट होता है कि फ्रेंचाइजी मॉडल में पारदर्शिता और अनुशासन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है,अन्यथा इससे न केवल संगठन की साख प्रभावित होती है,बल्कि लाखों-करोड़ों रुपये का नुकसान भी हो सकता है।