भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी)

निवेशकों के लिए बड़ी राहत — डुप्लिकेट सिक्योरिटीज सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया को सेबी ने किया और सरल

मुंबई,26 दिसंबर (युआईटीवी)- भारतीय शेयर बाजार में निवेश को अधिक सुरक्षित, पारदर्शी और सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने डुप्लिकेट सिक्योरिटीज सर्टिफिकेट जारी करने से जुड़ी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। ये बदलाव खास तौर पर उन निवेशकों के लिए राहत लेकर आए हैं,जिनके पास फिजिकल स्वरूप में शेयर या अन्य सिक्योरिटीज हैं और किसी वजह से उनके प्रमाणपत्र खो गए हैं,क्षतिग्रस्त हो गए हैं या नष्ट हो चुके हैं। नए नियमों से न केवल दस्तावेज़ी बोझ कम होगा बल्कि समय पर समाधान मिलने की संभावना भी बढ़ जाएगी।

सेबी के हालिया सर्कुलर के अनुसार,आसान डॉक्यूमेंटेशन की सीमा को बढ़ा दिया गया है। पहले यह सीमा पाँच लाख रुपये तक थी,जिसे अब बढ़ाकर दस लाख रुपये कर दिया गया है। इसका सीधा अर्थ यह है कि यदि किसी निवेशक की खोई या खराब हुई सिक्योरिटीज की कीमत दस लाख रुपये तक है,तो उसे डुप्लिकेट सर्टिफिकेट पाने के लिए पहले की तुलना में कम दस्तावेज़ जमा करने होंगे। सेबी का मानना है कि इससे निवेशकों का अनावश्यक समय और मेहनत बचेगी,जबकि कंपनियों और रजिस्ट्रार एंड ट्रांसफर एजेंट्स (आरटीए) के लिए भी प्रक्रिया अधिक सुगम हो जाएगी।

नई व्यवस्था के तहत,यदि खोई या क्षतिग्रस्त सिक्योरिटीज का मूल्य दस हजार रुपये तक है,तो निवेशकों को केवल साधारण कागज पर एक आवेदन पत्र देना होगा। इस श्रेणी में अब एफिडेविट या बांड के नोटरीकरण की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। यह कदम विशेष रूप से छोटे निवेशकों के लिए मददगार माना जा रहा है,जिन्हें पहले मामूली रकम के लिए भी लंबी औपचारिकताओं से गुजरना पड़ता था। अब वे बिना जटिल कानूनी औपचारिकताओं के अपने डुप्लिकेट सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकेंगे।

वहीं,जिन मामलों में सिक्योरिटीज का मूल्य दस हजार रुपये से अधिक और दस लाख रुपये तक है,वहाँ निवेशकों को केवल एक एफिडेविट देना होगा। यह एफिडेविट उचित गैर-न्यायिक स्टाम्प पेपर पर बनाया जाएगा। इस सीमा के भीतर अतिरिक्त दस्तावेज़,नोटरीकृत बांड या पुलिस रिपोर्ट जैसी औपचारिकताएँ अनिवार्य नहीं होंगी। सेबी का कहना है कि इस कदम से प्रक्रियात्मक देरी कम होगी और निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा,क्योंकि अब उन्हें बिना वजह कानूनी जटिलताओं में नहीं उलझना पड़ेगा।

हालाँकि,जिन मामलों में सिक्योरिटीज का मूल्य दस लाख रुपये से अधिक है,वहाँ सुरक्षा और सत्यापन के दृष्टिकोण से कड़े प्रावधान लागू रहेंगे। ऐसे मामलों में निवेशकों को एफआईआर,पुलिस शिकायत,अदालत का आदेश या मुकदमे की प्रति जैसे वैध दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे,जिनमें खोई या चोरी हुई सिक्योरिटीज का स्पष्ट विवरण उपलब्ध हो। इसके साथ ही,सूचीबद्ध कंपनियों को हफ्ते में एक बार इस नुकसान संबंधी जानकारी समाचार पत्र में प्रकाशित करनी होगी,ताकि किसी संभावित धोखाधड़ी या डुप्लिकेट दावे को रोका जा सके। इस विज्ञापन के लिए कंपनियाँ नाममात्र शुल्क भी ले सकती हैं।

एक और बड़ा बदलाव यह है कि आगे से सभी डुप्लिकेट सिक्योरिटीज सर्टिफिकेट केवल डिमैट यानी डिजिटल स्वरूप में जारी किए जाएँगे। सेबी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निवेशक इलेक्ट्रॉनिक रूप में अपने निवेश को सुरक्षित रख सकें और भविष्य में फिजिकल सर्टिफिकेट के खोने या क्षतिग्रस्त होने जैसी समस्याएँ दोबारा न आएँ। डिमैट प्रणाली न केवल सुरक्षित है,बल्कि उसमें लेन-देन,ट्रांसफर और रिकॉर्ड-कीपिंग भी अधिक पारदर्शी ढंग से होती है।

सेबी ने स्पष्ट किया है कि ये संशोधित नियम तुरंत प्रभाव से लागू हो गए हैं और लंबित आवेदनों पर भी लागू होंगे। यदि किसी निवेशक ने पहले ही पुराने नियमों के तहत आवश्यक दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं,तो कंपनियाँ या आरटीए उनसे नए प्रारूप में दोबारा दस्तावेज़ जमा करने की माँग नहीं कर सकेंगे। इससे उन निवेशकों को बड़ी राहत मिलेगी जो पहले से आवेदन प्रक्रिया में थे और नियमों के परिवर्तन के कारण असमंजस की स्थिति में थे।

विशेषज्ञों का मानना है कि सेबी का यह कदम छोटे और मध्यम निवेशकों के हितों को सीधे तौर पर मजबूत करता है। बाजार नियामक पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसे सुधार कर रहा है जिनका लक्ष्य निवेश प्रक्रिया को सरल बनाना,निवेशक-अनुकूल माहौल तैयार करना और फिजिकल से डिमैट रूपांतरण को प्रोत्साहित करना है। डुप्लिकेट सर्टिफिकेट की प्रक्रिया को आसान करने से उन निवेशकों का विश्वास भी बढ़ेगा जो अभी तक कागज़ी औपचारिकताओं और देरी की वजह से बाजार से दूरी बनाए हुए थे।

निवेशकों के लिए यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि भले ही डॉक्यूमेंटेशन सरल किया गया है,लेकिन सत्यापन और सुरक्षा के मानकों से कोई समझौता नहीं किया गया है। उच्च मूल्य वाली सिक्योरिटीज के लिए आवश्यक जाँच-पड़ताल पहले की ही तरह सख्त रहेगी,ताकि किसी तरह के फर्जीवाड़े या दोहरे दावे को रोका जा सके। डिजिटल जारी करने की अनिवार्यता भी इसी दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है,जो बाजार के आधुनिकीकरण और पारदर्शिता दोनों को बढ़ावा देता है।

सेबी ने सभी सूचीबद्ध कंपनियों और रजिस्ट्रार एंड ट्रांसफर एजेंट्स को निर्देश दिया है कि वे नए नियमों का सख्ती से पालन करें और निवेशकों को समय पर जानकारी और सहायता उपलब्ध कराएँ। इससे न केवल प्रक्रियाएँ तेज़ होंगी,बल्कि कंपनियों के लिए अनुपालन को लेकर स्पष्टता भी बढ़ेगी। कुल मिलाकर, इस सुधार से उम्मीद की जा रही है कि शेयर बाजार में भागीदारी बढ़ेगी,निवेशकों का अनुभव बेहतर होगा और भारतीय पूँजी बाजार की विश्वसनीयता और मजबूत होगी।