काठमांडू,19 सितंबर (युआईटीवी)- नेपाल में हाल ही में हुए जेन-जी आंदोलन ने जहाँ राजनीतिक परिदृश्य को हिला कर रख दिया,वहीं आर्थिक और व्यावसायिक मोर्चे पर भी गहरा असर डाला है। इस आंदोलन के दौरान हिंसा,तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं से भारी संपत्ति का नुकसान हुआ। अब यह नुकसान नेपाल के बीमा इतिहास का सबसे बड़ा क्लेम बन चुका है। नेपाल इंश्योरेंस अथॉरिटी द्वारा गुरुवार को जारी किए गए आधिकारिक आँकड़ों से पता चलता है कि नॉन-लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों को 16 सितंबर तक कुल 1,984 दावे प्राप्त हुए,जिनकी राशि लगभग 20.7 अरब नेपाली रुपए तक पहुँच चुकी है। यह संख्या और राशि दोनों ही 2015 के भूकंप के दौरान दर्ज किए गए क्लेम से अधिक हैं।
नेपाल के बीमा क्षेत्र में इससे पहले 2015 का विनाशकारी भूकंप सबसे बड़ी चुनौती बनकर आया था,जब बीमा कंपनियों को 16.5 अरब एनपीआर के दावे प्राप्त हुए थे। इसके बाद 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई स्वास्थ्य सुरक्षा स्कीम के तहत भी बीमा कंपनियों को 16 अरब एनपीआर से अधिक के क्लेम प्राप्त हुए थे,लेकिन हाल ही में भड़के इस जेन-जी आंदोलन ने दोनों रिकॉर्ड तोड़ दिए और बीमा क्षेत्र के लिए एक नया संकट खड़ा कर दिया है।
सबसे अधिक क्लेम भारतीय ओरिएंटल इंश्योरेंस की नेपाल शाखा—ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को प्राप्त हुए हैं। इस कंपनी को अब तक 40 मामलों में 5.14 अरब नेपाली रुपए के दावे मिले हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार,इस राशि का अधिकांश हिस्सा होटल हिल्टन काठमांडू से जुड़े दावों का है,जो विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुआ। होटल को आगजनी और तोड़फोड़ के कारण भारी क्षति पहुँची,जिसके चलते बीमा कंपनियों पर बड़ा आर्थिक दबाव आ गया है।
इसके अलावा सिद्धार्थ प्रीमियर इंश्योरेंस,शिखर इंश्योरेंस,आईजीआई प्रूडेंशियल इंश्योरेंस और सागरमाथा लुम्बिनी भी उन शीर्ष पाँच कंपनियों में शामिल हैं,जिन्हें सबसे अधिक क्लेम प्राप्त हुए हैं। इन कंपनियों के सामने भी एक ही समय में बड़ी संख्या में आए दावों की वजह से वित्तीय संतुलन बनाए रखना कठिन चुनौती साबित हो रहा है।
नेपाल इंश्योरेंस अथॉरिटी के अधिकारियों का कहना है कि यह आँकड़ा अभी शुरुआती है,क्योंकि संपत्तियों के नुकसान का आकलन अभी जारी है। आने वाले दिनों में दावों की संख्या और राशि दोनों में और बढ़ोतरी हो सकती है। वहीं नेपाल इंडस्ट्रीज कॉन्फेडरेशन (सीएनआई) ने भी चिंता जताई है। संगठन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सिर्फ कुछ प्रमुख कंपनियों ने ही 60 अरब नेपाली रुपए से अधिक के नुकसान की रिपोर्ट दी है। यह नुकसान सीधे-सीधे देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बनकर उभरेगा, क्योंकि निजी क्षेत्र का बड़ा हिस्सा इस संकट से प्रभावित हो चुका है।
नेपाल की अर्थव्यवस्था,जो पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक आर्थिक दबावों के कारण चुनौती झेल रही थी,अब इन घटनाओं से और कमजोर हो सकती है। खासकर पर्यटन और होटल उद्योग,जो नेपाल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है,आंदोलन की हिंसा में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों के कई होटल,रेस्टोरेंट,शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और व्यावसायिक प्रतिष्ठान आगजनी और तोड़फोड़ का शिकार बने। इनकी मरम्मत और पुनर्निर्माण में अरबों रुपए की लागत आने वाली है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े क्लेम का दबाव बीमा कंपनियों की सॉल्वेंसी रेश्यो को प्रभावित करेगा और इसका असर भविष्य में ग्राहकों पर पड़ सकता है। यानी लोगों को बीमा पॉलिसियों के लिए ज्यादा प्रीमियम देना पड़ सकता है। साथ ही,बीमा कंपनियों को भी अपनी वित्तीय रणनीतियों में बड़े बदलाव करने होंगे,ताकि ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियों से निपटा जा सके।
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो यह घटना नेपाल में युवाओं की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता और उसके सामाजिक-आर्थिक परिणामों को दर्शाती है। जेन-जी आंदोलन ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया,लेकिन इसके साथ ही आम जनता और निजी क्षेत्र की संपत्तियों पर भारी असर पड़ा। सवाल यह उठता है कि क्या राजनीतिक बदलाव की कीमत आर्थिक अस्थिरता और वित्तीय संकट के रूप में चुकानी होगी?
नेपाल सरकार और बीमा नियामक संस्थाओं के सामने अब दोहरी चुनौती है। एक ओर उन्हें बीमा कंपनियों को स्थिर बनाए रखने के लिए सहयोग करना होगा,ताकि वे इतने बड़े दावों का भुगतान कर सकें। दूसरी ओर,उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में इस तरह की स्थितियाँ न बनें,जिनसे देश की अर्थव्यवस्था और निजी क्षेत्र को इस स्तर पर नुकसान उठाना पड़े।
जेन-जी आंदोलन ने नेपाल की राजनीति में नई ऊर्जा और परिवर्तन की लहर जरूर पैदा की है,लेकिन इसके आर्थिक प्रभाव लंबे समय तक महसूस किए जाएँगे। बीमा क्षेत्र में दर्ज हुआ यह 21 अरब नेपाली रुपए का क्लेम न केवल नेपाल के इतिहास का सबसे बड़ा दावा है,बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों का असर आर्थिक ढाँचे पर कितना गहरा हो सकता है।
