कोलकाता,27 दिसंबर (युआईटीवी)- पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्दवान जिले के कटवा में एक बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के अचानक लापता हो जाने के मामले ने प्रशासन को चौंका दिया है। बूथ नंबर 23 के बीएलओ अमित कुमार मंडल पिछले चार दिनों से गायब हैं और अभी तक उनका कोई सुराग नहीं मिल पाया है। चुनावी प्रक्रिया के बीच उनकी अनुपस्थिति ने न केवल स्थानीय प्रशासन के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं,बल्कि परिवार और सहकर्मियों के बीच भी गहरी चिंता पैदा कर दी है। इस घटना ने बीएलओ से जुड़ी जिम्मेदारियों और उनके मानसिक दबाव को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
पुलिस द्वारा की गई प्रारंभिक जाँच में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि अमित ने करीब 50 लाख रुपये का बैंक लोन लिया था और यह रकम उन्होंने शेयर बाजार में निवेश कर दी थी,लेकिन बाजार में भारी गिरावट के कारण उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। पुलिस को संदेह है कि इसी वित्तीय दबाव और बढ़ते कर्ज के कारण वे घर छोड़कर चले गए। पुलिस ने अपनी जाँच रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंप दी है और स्पष्ट किया है कि इस घटना का चुनावी कामकाज से जुड़े किसी दबाव या विशेष गहन समीक्षा (एसआईआर) के काम से सीधा संबंध नहीं है।
अमित कुमार मंडल कटवा-1 ब्लॉक के खजुरडीही पंचायत के बिकिहाट क्षेत्र के रहने वाले हैं। पेशे से वे एक शिक्षक हैं और कछुग्राम के उद्धरणपुर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते हैं। इसके साथ ही वे बूथ लेवल ऑफिसर के रूप में भी जिम्मेदारी निभा रहे थे। बूथ नंबर 23 में कुल 641 मतदाता पंजीकृत हैं और हाल ही में उन्होंने 33 मतदाताओं को सुनवाई के लिए नोटिस भी जारी किए थे। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से जुड़े दावों और आपत्तियों पर राज्यभर में सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है,ऐसे में बूथ स्तर पर उनकी मौजूदगी बेहद जरूरी मानी जा रही थी।
परिवार के अनुसार,घटना के दिन यानी 23 दिसंबर को सुबह करीब 10 बजे अमित बाजार से लौटे थे। उन्होंने मोटरसाइकिल घर पर खड़ी की और कहा कि उन्हें बीएलओ ड्यूटी से जुड़ी एक मीटिंग में जाना है। इसके बाद वे घर से निकले,लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौटे। दोपहर होते-होते जब उनका कोई पता नहीं चला,तो परिवार बेचैन हो उठा। काफी खोजबीन के बाद भी जब उनका कोई पता नहीं चला,तो रात को कटवा पुलिस स्टेशन में उनकी गुमशुदगी दर्ज कराई गई। परिवार ने यह भी बताया कि बीएलओ की जिम्मेदारी संभालने के बाद से वे लगातार मानसिक तनाव में थे और अक्सर काम के दबाव को लेकर चिंता व्यक्त करते थे।
जाँच के दौरान पुलिस को घर में उनका मोबाइल फोन,बीएलओ पहचान पत्र और एसआईआर से जुड़े दस्तावेज मिले,जो एक और रहस्य की परत जोड़ते हैं। यह संकेत देता है कि वे जल्दबाजी में घर से निकले होंगे और संभवतः जानबूझकर फोन घर पर ही छोड़ गए। परिवार को शुरू में लगा कि चुनावी काम के दबाव ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया होगा और इसी वजह से वे लापता हो गए,लेकिन जैसे-जैसे पुलिस जाँच आगे बढ़ी, 50 लाख के लोन और शेयर बाजार में हुए भारी नुकसान की जानकारी सामने आई,जिसने पूरे मामले की दिशा बदल दी।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि अमित ने जिस बैंक से लोन लिया था,उसके दस्तावेज भी अब जाँच के दायरे में हैं। आरोप है कि उन्होंने इस रकम को शेयर बाजार में तेज़ मुनाफे की उम्मीद में लगाया था,लेकिन बाजार की अनिश्चितता और लगातार गिरावट ने उनकी सभी योजनाओं को धराशायी कर दिया। कर्ज बढ़ने लगा,किश्तें चुकाना मुश्किल हो गया और धीरे-धीरे उन पर मानसिक दबाव बढ़ता चला गया। पुलिस का मानना है कि इस वित्तीय संकट ने ही उन्हें घर छोड़ने के लिए मजबूर किया होगा।
इस घटना की जानकारी मिलते ही चुनाव आयोग सक्रिय हो गया। आयोग ने जिला पुलिस से तुरंत विस्तृत रिपोर्ट माँगी। प्रशासन के अनुसार,बीएलओ के गायब होने के कारण ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की सुनवाई और सत्यापन संबंधी काम प्रभावित हो सकता है। यदि निर्धारित समय तक अमित नहीं मिलते,तो उनके स्थान पर किसी अन्य अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा,ताकि चुनावी प्रक्रिया में कोई बाधा न आए। हालाँकि,अधिकारी मानते हैं कि किसी भी बीएलओ को अचानक बदलना आसान नहीं होता,क्योंकि वे अपने इलाके के मतदाताओं और दस्तावेजों से भली-भाँति परिचित होते हैं।
परिवार की पीड़ा इस पूरे मामले का सबसे संवेदनशील पहलू है। घरवालों का कहना है कि अमित शांत स्वभाव के थे,लेकिन बीते कुछ महीनों से उन्हें चुपचाप रहने और आर्थिक मामलों को लेकर चिंतित देखने लगे थे। वे अक्सर भविष्य की योजनाओं का जिक्र करते,लेकिन कभी खुलकर अपनी परेशानी नहीं बताते थे। अब परिवार इस बात को लेकर खुद को दोषी मान रहा है कि शायद उन्हें समय रहते अमित के तनाव का अंदाजा नहीं हो पाया।
स्थानीय लोगों के बीच भी इस घटना को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हैं। कुछ का मानना है कि बढ़ते आर्थिक जोखिम और तेजी से मुनाफा कमाने की होड़ ने आम लोगों को खतरनाक निवेश की दिशा में धकेल दिया है। वहीं कुछ लोग इसे चुनावी काम के साथ-साथ अतिरिक्त जिम्मेदारियों के दबाव से जोड़कर देख रहे हैं। हालाँकि,पुलिस ने साफ कर दिया है कि यह मामला मुख्य रूप से वित्तीय तनाव से जुड़ा हुआ है और चुनावी काम से इसका सीधा संबंध नहीं दिखता।
इस बीच,पुलिस की अलग-अलग टीमें अमित की तलाश में लगी हुई हैं। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और आसपास के जिलों तक सूचना भेज दी गई है। उनके बैंक खातों,मोबाइल रिकॉर्ड और डिजिटल ट्रांजैक्शनों की भी जाँच की जा रही है,ताकि उनके संभावित ठिकानों के बारे में सुराग मिल सके। पुलिस का कहना है कि जब तक पुख्ता सबूत नहीं मिलते,किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाजी होगी। परिवार से भी अपील की गई है कि वे शांत रहें और जाँच में सहयोग करें।
यह मामला व्यापक स्तर पर एक बड़ा संदेश भी देता है। सार्वजनिक जिम्मेदारियाँ निभाने वाले कर्मचारियों के सामने आर्थिक और मानसिक दबाव किस हद तक पहुँच सकता है,इसका यह संवेदनशील उदाहरण है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में समय रहते परामर्श,खुली बातचीत और संस्थागत सहायता बेहद जरूरी होती है,ताकि कोई व्यक्ति अकेले अपने संकट से जूझता न रह जाए।
फिलहाल,प्रशासन की प्राथमिकता अमित को सुरक्षित ढूँढ़ निकालने की है। चुनाव आयोग लगातार पुलिस से अपडेट ले रहा है और जिला अधिकारी भी इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं। अगर समय रहते उनका सुराग मिल जाता है,तो न केवल उनके परिवार को राहत मिलेगी,बल्कि चुनावी तैयारी से जुड़ी कई आशंकाएँ भी दूर हो जाएँगी। दूसरी ओर,यदि वे लंबे समय तक नहीं मिलते,तो यह मामला और ज्यादा जटिल हो सकता है और कई नए सवाल खड़े कर सकता है।
कटवा के इस लापता बीएलओ की कहानी आज उस द्वंद्व का प्रतीक बन गई है,जिसमें एक ओर सरकारी सेवा और जिम्मेदारियों का बोझ है,तो दूसरी ओर निजी जीवन की वित्तीय चुनौतियाँ। इन दोनों के बीच संतुलन बिगड़ने पर न केवल व्यक्ति,बल्कि पूरा परिवार और प्रशासनिक ढाँचा प्रभावित हो सकता है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि पुलिस खोजबीन में कब तक सफलता हासिल करती है और क्या अमित सुरक्षित घर लौट पाते हैं।
