ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज (तस्वीर क्रेडिट@AlboMP)

बोंडी बीच हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया में गन कानूनों पर सख्ती,प्रधानमंत्री अल्बनीज ने नेशनल फायरआर्म बायबैक स्कीम का ऐलान

कैनबरा,20 दिसंबर (युआईटीवी)- सिडनी के बोंडी बीच पर यहूदियों को निशाना बनाकर किए गए हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया में एक बार फिर गन कानूनों को सख्त करने की बहस तेज हो गई है। इस गंभीर घटना ने देश की सुरक्षा व्यवस्था और हथियार नियंत्रण नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसी पृष्ठभूमि में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने शुक्रवार को बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि सरकार बंदूकों की संख्या कम करने के लिए एक नेशनल फायरआर्म बायबैक स्कीम शुरू करेगी। इस कदम को देश में हथियारों के बढ़ते प्रसार पर लगाम लगाने और भविष्य में इस तरह की हिंसक घटनाओं को रोकने की दिशा में अहम माना जा रहा है।

कैनबरा में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री अल्बनीज ने कहा कि संघीय सरकार सरप्लस,नए प्रतिबंधित और गैरकानूनी हथियारों को खरीदने और उन्हें नष्ट करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बायबैक योजना लागू करेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पहल केवल प्रतीकात्मक नहीं होगी,बल्कि इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर हथियारों को आम नागरिकों से वापस लेना और उन्हें पूरी तरह खत्म करना है। प्रधानमंत्री ने बताया कि फिलहाल ऑस्ट्रेलिया में 40 लाख से ज्यादा हथियार मौजूद हैं,जो 1996 के कुख्यात पोर्ट आर्थर नरसंहार के समय की संख्या से भी अधिक हैं। यह आँकड़ा अपने आप में सरकार और समाज के लिए चिंता का विषय है।

अल्बनीज ने कहा कि नेशनल बायबैक स्कीम के तहत हथियारों का कलेक्शन,उनकी प्रोसेसिंग और संबंधित भुगतान की जिम्मेदारी ऑस्ट्रेलिया के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों की होगी। वहीं,जो हथियार नागरिकों द्वारा सरेंडर किए जाएँगे,उन्हें नष्ट करने की जिम्मेदारी ऑस्ट्रेलियन फेडरल पुलिस निभाएगी। सरकार का मानना है कि केंद्र और राज्यों के तालमेल से इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि इस स्कीम के जरिए लाखों हथियार एकत्र किए जाएँगे और उन्हें हमेशा के लिए नष्ट कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया पहले भी इस तरह के साहसिक कदम उठा चुका है और उसके सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। अल्बनीज का इशारा 1996 के पोर्ट आर्थर नरसंहार की ओर था,जिसने देश को झकझोर कर रख दिया था। तस्मानिया के आइलैंड स्टेट में हुए उस हमले में 35 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 37 लोग घायल हुए थे। उस भयावह घटना के बाद ऑस्ट्रेलिया में गन बायबैक कानून लाया गया था,जिसके तहत भारी संख्या में हथियार नागरिकों से वापस लेकर नष्ट कर दिए गए थे। उस समय लागू किए गए कड़े कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक सफल मॉडल के रूप में देखा गया।

अब बोंडी बीच पर हुई हालिया घटना ने एक बार फिर उसी मॉडल को दोहराने की जरूरत पर जोर दिया है। इस हमले ने न सिर्फ यहूदी समुदाय,बल्कि पूरे ऑस्ट्रेलियाई समाज को हिला दिया है। लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि जब देश में पहले से सख्त गन कानून हैं,तो हथियारों की संख्या इतनी अधिक कैसे हो गई और वे गलत हाथों में कैसे पहुँच रहे हैं।

इस बीच जाँच एजेंसियों ने बोंडी बीच मास शूटिंग से जुड़े कुछ अहम खुलासे भी किए हैं। पुलिस के अनुसार,इस घटना में शामिल दो हथियारबंद लोगों में से एक साजिद अकरम था,जो मूल रूप से भारत के हैदराबाद का रहने वाला है। जानकारी के मुताबिक,साजिद अकरम 1998 में ऑस्ट्रेलिया गया था और उसके बाद से उसका अपने परिवार से संपर्क बेहद सीमित रहा। पुलिस का कहना है कि हमले से पहले उसकी गतिविधियों और संपर्कों की गहन जाँच की जा रही है।

तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक बी. शिवधर रेड्डी भी इस मामले पर बयान दे चुके हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1998 में भारत छोड़ने से पहले साजिद अकरम का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। जाँच में सामने आया है कि अकरम ने हैदराबाद में बीकॉम की पढ़ाई पूरी की थी और नवंबर 1998 में नौकरी की तलाश में ऑस्ट्रेलिया चला गया था। उसके बाद के वर्षों में उसके जीवन में क्या बदलाव आए और वह इस तरह की हिंसक गतिविधि तक कैसे पहुँचा,यह जाँच का अहम हिस्सा बना हुआ है।

बोंडी बीच हमले और उसके बाद सरकार के सख्त रुख ने ऑस्ट्रेलिया में एक नई बहस को जन्म दिया है। जहाँ एक ओर सरकार हथियारों पर और कड़े नियंत्रण की बात कर रही है,वहीं दूसरी ओर कुछ वर्ग व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वैध हथियार रखने के अधिकार पर सवाल उठा रहे हैं। हालाँकि,आम जनता के एक बड़े हिस्से का मानना है कि सुरक्षा सर्वोपरि है और अगर हथियारों की संख्या कम करने से जानें बच सकती हैं,तो यह कदम जरूरी है।

नेशनल फायरआर्म बायबैक स्कीम का ऐलान ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि यह योजना किस हद तक सफल होती है और क्या यह देश को एक बार फिर दुनिया के सबसे सुरक्षित देशों में शामिल रखने में मदद कर पाती है।