चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत दौरे पर (तस्वीर क्रेडिट@JaikyYadav16)

चीन के विदेश मंत्री वांग यी की दो दिवसीय भारत यात्रा,सीमा विवाद और वैश्विक तनावों के बीच नई कूटनीतिक पहल

नई दिल्ली,18 अगस्त (युआईटीवी)- नई दिल्ली में इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक अहम पड़ाव तय होने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी सोमवार से अपनी दो दिवसीय भारत यात्रा शुरू कर रहे हैं। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है,जब भारत-अमेरिका संबंधों में व्यापारिक तनाव बढ़ा हुआ है और भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान अभी अधूरा है। वांग यी का यह दौरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी चीन यात्रा और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन से पहले दोनों देशों के रिश्तों में नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है।

वांग यी सोमवार शाम को लगभग 4:15 बजे नई दिल्ली पहुँचेंगे और शाम 6 बजे भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के साथ मुलाकात करेंगे। यह मुलाकात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें दोनों देशों के बीच चल रहे विवादित मुद्दों पर खुले तौर पर बातचीत की उम्मीद है। खासतौर पर सीमा विवाद,व्यापारिक रिश्ते और उड़ान सेवाओं की बहाली पर विचार-विमर्श हो सकता है। चीन और भारत के रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों में जो तनाव पैदा हुआ है,उसे देखते हुए यह बैठक दोनों देशों के लिए विश्वास बहाली का एक नया अवसर मानी जा रही है।

मंगलवार सुबह 11 बजे वांग यी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की वार्ता का नया दौर शुरू करेंगे। डोभाल और वांग यी को सीमा वार्ता के लिए दोनों देशों द्वारा नामित विशेष प्रतिनिधि बनाया गया है। इन वार्ताओं में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति बनाए रखने,सैनिकों की तैनाती में कमी और संवाद की निरंतरता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। 2020 की गलवान घाटी की झड़पों के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बेहद नाजुक दौर से गुजरे हैं। उस हिंसक टकराव में दोनों देशों के सैनिकों की जान गई थी और सीमा पर लंबे समय तक सैन्य तनाव बना रहा। इसके बाद कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएँ हुईं,जिनमें आंशिक सफलता जरूर मिली लेकिन एलएसी पर अभी भी बड़ी संख्या में सैनिक मौजूद हैं। वर्तमान में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में भारत और चीन दोनों तरफ से लगभग 50 से 60 हजार सैनिक तैनात हैं। हालाँकि,कई टकराव वाले क्षेत्रों से सैनिक पीछे हट चुके हैं,लेकिन अग्रिम मोर्चों पर उनकी मौजूदगी अब भी तनाव का कारण बनी हुई है।

विदेश मंत्रालय (एमईए) ने जानकारी दी है कि मंगलवार शाम 5:30 बजे चीनी विदेश मंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेंगे। यह बैठक प्रधानमंत्री आवास 7 लोक कल्याण मार्ग पर होगी। प्रधानमंत्री मोदी की इस महीने के अंत में होने वाली चीन यात्रा को देखते हुए यह मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी 29 अगस्त के आसपास जापान का दौरा करेंगे और उसके बाद उत्तरी चीन के शहर तियानजिन में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। ऐसे में मोदी और शी जिनपिंग के बीच होने वाली मुलाकात की जमीन तैयार करने में वांग यी की यह यात्रा अहम भूमिका निभा सकती है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि वैश्विक स्तर पर भारत पर दबाव बढ़ा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ को दोगुना कर 50 प्रतिशत करने का फैसला दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का संकेत है। इसके साथ ही रूस से कच्चे तेल की खरीद पर भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त जुर्माना लगाया गया है। इस परिदृश्य में चीन के साथ भारत की कूटनीतिक समीकरण और भी अहम हो जाते हैं। चीन न केवल एशिया में भारत का सबसे बड़ा पड़ोसी है,बल्कि वैश्विक मंचों पर भी एक मजबूत शक्ति है। ऐसे में दोनों देशों के बीच सहयोग या टकराव का असर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा पड़ता है।

पिछले वर्ष दिसंबर में एनएसए अजीत डोभाल ने चीन का दौरा किया था और वहाँ वांग यी के साथ सीमा विवाद पर लंबी बातचीत की थी। उस यात्रा से पहले प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रूस के कजान शहर में मुलाकात हुई थी,जिसमें दोनों नेताओं ने संवाद को फिर से सक्रिय करने का संकल्प लिया था। यह मुलाकात दोनों देशों के बीच संवाद की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम थी।

इस बार वांग यी की यात्रा से भी यही उम्मीद की जा रही है कि भारत और चीन के बीच नए विश्वास का माहौल बनेगा। कूटनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि यदि जयशंकर और वांग यी के बीच की बैठक सकारात्मक माहौल में होती है,तो आगे मोदी और शी जिनपिंग के बीच वार्ता का रास्ता आसान हो जाएगा। सीमा विवाद के साथ-साथ व्यापार,निवेश,तकनीकी सहयोग और उड़ान सेवाओं की बहाली जैसे मुद्दों पर भी प्रगति संभव है।

भारत-चीन संबंधों की जटिलता यह है कि दोनों देश एक तरफ व्यापारिक साझेदार हैं,वहीं दूसरी तरफ सीमा विवाद में उलझे हुए हैं। भारत चीन से बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण,मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुएँ आयात करता है,जबकि चीन भारतीय आईटी सेवाओं और फार्मास्यूटिकल्स पर निर्भर है। व्यापारिक रिश्तों की इस मजबूती के बावजूद सीमा विवाद और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा दोनों देशों को बार-बार आमने-सामने ला खड़ा करती है। यही कारण है कि हर उच्च स्तरीय यात्रा और वार्ता को उम्मीदों और संदेहों के मिश्रण के साथ देखा जाता है।

कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि वांग यी की इस यात्रा से तत्काल कोई बड़ा बदलाव देखने को न मिले,लेकिन यह यात्रा विश्वास बहाली की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। इस दौरे से यह संदेश भी जाएगा कि भारत और चीन संवाद की प्रक्रिया को जारी रखने और विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

वांग यी की भारत यात्रा केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है,बल्कि यह एशिया और वैश्विक राजनीति के संदर्भ में भी बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में खिंचाव और रूस से बढ़ते ऊर्जा संबंधों के बीच चीन की भूमिका और अधिक निर्णायक हो जाती है। चीन और भारत दोनों ही उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं और एशिया की स्थिरता में उनकी साझेदारी का बड़ा योगदान हो सकता है।

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि वांग यी और भारतीय नेतृत्व के बीच होने वाली वार्ताओं से क्या ठोस परिणाम निकलते हैं। क्या सीमा विवाद पर कोई नई समझ बनती है? क्या व्यापारिक रिश्तों में फिर से तेजी आती है? और सबसे अहम, क्या यह यात्रा मोदी-शी मुलाकात के लिए एक सकारात्मक माहौल तैयार कर पाएगी? इन सभी सवालों के जवाब आने वाले समय में स्पष्ट होंगे,लेकिन इतना तय है कि वांग यी की यह यात्रा भारत-चीन संबंधों में नई ऊर्जा भरने का अवसर लेकर आई है,जिसे दोनों देशों को भुनाना होगा।