बीजिंग,3 सितंबर (युआईटीवी)- बीजिंग के ऐतिहासिक थियानमेन चौक पर चीन ने अपनी सैन्य शक्ति का भव्य प्रदर्शन किया। यह समारोह न केवल चीन की सैन्य ताकत को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का अवसर बना,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी एक नया विमर्श छेड़ गया। इस आयोजन में विशेष रूप से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन को आमंत्रित किया गया था। इन दोनों की मौजूदगी ने इस समारोह को वैश्विक स्तर पर और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया।
समारोह के दौरान चीन ने अपनी आधुनिक सैन्य क्षमताओं को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया। थियानमेन चौक पर आयोजित इस परेड में नवीनतम मिसाइल सिस्टम,अत्याधुनिक टैंक,ड्रोन तकनीक और आधुनिक युद्धक विमानों का प्रदर्शन किया गया। हजारों सैनिकों ने अनुशासन और सामरिक क्षमता का प्रदर्शन करते हुए दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की कि चीन अब किसी भी स्थिति में आत्मनिर्भर और मजबूत है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने इस आयोजन के माध्यम से न केवल अपने नागरिकों में गर्व की भावना जगाने का प्रयास किया,बल्कि वैश्विक मंच पर यह दिखाने की कोशिश भी की कि वह एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।
हालाँकि,इस समारोह की सबसे बड़ी गूँज अमेरिका में सुनाई दी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस आयोजन पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में चीन,रूस और उत्तर कोरिया पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि ये तीनों देश मिलकर अमेरिका के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। ट्रंप का यह बयान वैश्विक कूटनीति में नए तनाव का कारण बन गया है।
ट्रंप ने अपने बयान में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को याद दिलाया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने चीन को विदेशी आक्रमण से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने लिखा कि उस युद्ध में हजारों अमेरिकी सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी और चीन को चाहिए कि वह उन बलिदानों का सम्मान करे। ट्रंप का यह बयान केवल इतिहास की ओर इशारा नहीं था,बल्कि यह चीन पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने का एक तरीका भी था।
दिलचस्प बात यह रही कि ट्रंप ने अपने बयान में रूस के राष्ट्रपति पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन को शुभकामनाएँ भी दीं,लेकिन उनका लहजा व्यंग्यात्मक था। उन्होंने कहा कि यह “तीनों देशों की नई दोस्ती” अमेरिका के खिलाफ षड्यंत्र का संकेत है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यह टिप्पणी उनके घरेलू राजनीतिक उद्देश्यों से भी जुड़ी है,क्योंकि वह चीन और रूस के खिलाफ कड़ा रुख दिखाकर अमेरिकी जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में सख्त नेता हैं।
चीन के इस आयोजन की अंतर्राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए यह सवाल उठने लगा है कि आखिर बीजिंग ने इस समारोह के लिए पुतिन और किम को ही क्यों चुना। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस और उत्तर कोरिया की उपस्थिति यह संकेत देती है कि चीन अपने पारंपरिक मित्रों के साथ मिलकर एक नया रणनीतिक ध्रुव बना रहा है। यह ध्रुव पश्चिमी देशों,विशेषकर अमेरिका की नीतियों के खिलाफ खड़ा हो सकता है। अमेरिका और उसके सहयोगी पहले ही चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और उसकी आक्रामक विदेश नीति को लेकर चिंता जताते रहे हैं।
समारोह में दिखाए गए हथियारों और सैन्य तकनीक ने यह भी संकेत दिया कि चीन अपनी सेना को आधुनिक युद्ध की चुनौतियों के अनुरूप ढाल रहा है। मिसाइलों और उन्नत हथियारों के प्रदर्शन से यह संदेश गया कि चीन अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है और क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है।
वहीं,रूस और उत्तर कोरिया की मौजूदगी इस बात की ओर इशारा करती है कि ये तीनों देश अपने संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। रूस पहले से ही पश्चिमी देशों के साथ यूक्रेन युद्ध को लेकर टकराव की स्थिति में है और उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। वहीं,उत्तर कोरिया लंबे समय से अमेरिका और दक्षिण कोरिया के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में चीन का इन दोनों देशों के साथ खड़ा होना एक बड़े रणनीतिक समीकरण का हिस्सा माना जा रहा है।
अमेरिका ने इस आयोजन को लेकर पहले ही सतर्कता जताई है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा है कि वाशिंगटन इस पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहा है। अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह आयोजन केवल चीन की ताकत का प्रदर्शन नहीं,बल्कि तीन देशों के बीच बढ़ते सहयोग का संकेत भी है,जो भविष्य में वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
बीजिंग का यह समारोह केवल एक सैन्य परेड नहीं था,बल्कि एक गहरे राजनीतिक संदेश का मंच भी था। चीन ने यह दिखाया कि वह अब किसी भी क्षेत्रीय या वैश्विक मुद्दे पर अपने सहयोगियों के साथ खड़ा हो सकता है। वहीं,ट्रंप की प्रतिक्रिया ने इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका और उसके सहयोगी इस नए समीकरण का किस तरह से जवाब देते हैं।