नई दिल्ली,16 मई (युआईटीवी)- भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री कुंवर विजय शाह की विवादित टिप्पणी का मामला अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच चुका है। यह मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत बयान का नहीं,बल्कि संविधानिक पदों की गरिमा,जवाबदेही और वक्तव्य की मर्यादा से जुड़ा हुआ है।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश,जिसमें विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा गया था,उस पर स्थगन देने से इनकार कर दिया। सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति जॉर्ज ऑगस्टीन मसीह की पीठ ने मंत्री की भाषा और जिम्मेदारी की भावना पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा, “आप किस तरह के बयान दे रहे हैं? एक संवैधानिक पद पर बैठे मंत्री से संयम और विवेक की अपेक्षा की जाती है,खासकर जब देश एक संवेदनशील स्थिति से गुजर रहा हो।”
मंत्री विजय शाह ने सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर एक बयान दिया था,जो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अपमानजनक और विवादास्पद माना गया। यह टिप्पणी “ऑपरेशन सिंदूर” से संबंधित थी,जिसके बारे में कर्नल कुरैशी ने मीडिया को जानकारी दी थी। इस टिप्पणी को लेकर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और अनुराधा शुक्ला की पीठ ने कहा कि मंत्री की टिप्पणी धर्म,जाति और भाषा के आधार पर वैमनस्य फैलाने की श्रेणी में आती है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) चार घंटे के भीतर प्राथमिकी दर्ज करें और इसमें देरी की स्थिति में अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी भी दी।
मंत्री विजय शाह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा ने सुप्रीम कोर्ट में बयान को गलत संदर्भ में लिए जाने की दलील दी। उन्होंने कहा कि मंत्री ने माफी माँग ली है और इस बात की रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध है। मीडिया ने बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया,जिससे यह अनावश्यक विवाद बन गया। हाईकोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने से पहले मंत्री को सुनवाई का अवसर नहीं दिया,जो न्याय सिद्धांतों के विरुद्ध है।
हालाँकि, मुख्य न्यायाधीश गवई ने मखीजा की दलीलों पर आपत्ति जताई और पूछा, “क्या कोई मंत्री है,इसलिए सीधे सुप्रीम कोर्ट आना चाहिए? उन्हें हाईकोर्ट में अपनी बात नहीं रखनी चाहिए थी?”
कोर्ट ने इस मामले को 16 मई 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई,लेकिन तब तक एफआईआर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। साथ ही कोर्ट ने मंत्री के वकीलों को हाईकोर्ट को सूचित करने की सलाह दी,जहाँ मामला 15 मई को सूचीबद्ध किया गया था।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि मंत्री का बयान संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लंघन करता है। न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि, “जब कोई व्यक्ति सरकार में होता है,खासकर संवैधानिक पद पर,तो उसके हर शब्द की सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी होती है।”
इस आदेश के बाद मध्यप्रदेश पुलिस प्रमुख (डीजीपी) को सिर्फ 4 घंटे के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया। अदालत ने यह भी कहा कि यदि इस आदेश की अवहेलना की गई तो डीजीपी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।
इस पूरे प्रकरण ने ना सिर्फ कानूनी हलकों में हलचल मचाई है,बल्कि सामाजिक और राजनैतिक विमर्श को भी प्रभावित किया है। यह सवाल उठने लगे हैं कि,क्या राजनेताओं को सेना जैसे संवेदनशील संस्थानों पर टिप्पणी करने से परहेज नहीं करना चाहिए? जब जनता और देश की सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों की गरिमा पर आघात हो,तब क्या माफी माँग लेना पर्याप्त होता है,?
विपक्षी दलों ने विजय शाह की बर्खास्तगी और सार्वजनिक माफी की माँग की है। सोशल मीडिया पर भी मंत्री के बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखी गई हैं और लोगों ने इसे “असंवेदनशील और गैर-जिम्मेदाराना” करार दिया है।
यह मामला केवल एक मंत्री की टिप्पणी का नहीं,बल्कि भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के साथ आने वाली जिम्मेदारी और विवेक की एक बड़ी परीक्षा है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से केवल कानून का पालन नहीं,बल्कि नैतिक अनुशासन और सामाजिक चेतना की अपेक्षा की जाती है।
जहाँ एक ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिक अधिकार है,वहीं दूसरी ओर उस स्वतंत्रता के साथ संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व भी जुड़ा होता है। कर्नल सोफिया कुरैशी के प्रति की गई टिप्पणी ने यह आवश्यक कर दिया है कि राजनीतिक वर्ग अपनी भाषा और व्यवहार की मर्यादा पुनः परिभाषित करे।
अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट आज,16 मई की सुनवाई में क्या रुख अपनाता है और क्या मंत्री विजय शाह को कानूनी राहत मिलती है या नहीं। फिलहाल, मामला भारत के राजनीतिक-न्यायिक विमर्श में एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में उभर चुका है।
