किरेन रिजिजू और राहुल गांधी

कांग्रेस की ‘वोट चोर,गद्दी छोड़’ रैली पर सियासी बवाल,किरेन रिजिजू ने खरगे और राहुल गांधी से संसद में माफी की माँग की

नई दिल्ली,15 दिसंबर (युआईटीवी)- दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को आयोजित कांग्रेस की ‘वोट चोर,गद्दी छोड़’ रैली अब राजनीतिक विवाद के केंद्र में आ गई है। रैली के दौरान कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लगाए गए आपत्तिजनक नारों को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा ने कड़ा रुख अपनाया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कुछ वीडियो क्लिप्स के बाद यह मुद्दा और गरमा गया है,जिसमें रैली में शामिल कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक और मर्यादाहीन नारे लगाते हुए सुना जा सकता है।

इस पूरे मामले को लेकर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस नेतृत्व पर सीधा हमला बोला है। नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से संसद में आकर प्रधानमंत्री और देश से सार्वजनिक रूप से माफी माँगने की अपील की। उन्होंने कहा कि दोनों नेता संवैधानिक पदों पर हैं और लोकतांत्रिक मर्यादाओं को बनाए रखना उनकी विशेष जिम्मेदारी है।

किरन रिजिजू ने कहा कि मल्लिकार्जुन खरगे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं और राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में देश उनसे एक जिम्मेदार और संयमित आचरण की उम्मीद करता है। उन्होंने कहा कि संसद का सत्र चल रहा है और कांग्रेस नेतृत्व को चाहिए कि वह सदन के भीतर आकर इस घटना पर अपना रुख स्पष्ट करे और माफी माँगे। उनके अनुसार,यह केवल प्रधानमंत्री का अपमान नहीं है,बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं और राजनीतिक संस्कृति पर भी हमला है।

रिजिजू ने स्पष्ट किया कि उन्हें कांग्रेस की विचारधारा या उसके राजनीतिक विरोध से कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपनी पार्टी की विचारधारा के अनुसार राजनीति करें,इसमें कोई समस्या नहीं है,लेकिन किसी जनसभा में प्रधानमंत्री के खिलाफ जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया,वह भारतीय राजनीति के इतिहास में दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं,लेकिन दुश्मन नहीं। राजनीति में मतभेद स्वाभाविक हैं,लेकिन संवाद और विरोध की भी एक मर्यादा होती है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा यह बात कहते रहे हैं कि विपक्ष सरकार का दुश्मन नहीं होता,बल्कि लोकतंत्र का एक अहम स्तंभ होता है। इसके बावजूद अगर किसी रैली में प्रधानमंत्री के खिलाफ जान से मारने या कब्र खोदने जैसे नारे लगाए जाते हैं,तो यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत है। रिजिजू ने कहा कि इस तरह की भाषा न केवल राजनीतिक माहौल को जहरीला बनाती है,बल्कि समाज में नफरत और हिंसा को भी बढ़ावा देती है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने कभी किसी राजनीतिक विरोधी के खिलाफ इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं किया। रिजिजू के मुताबिक,भाजपा ने हमेशा राजनीतिक असहमति को विचारों और नीतियों के स्तर पर रखा है,न कि व्यक्तिगत या हिंसक भाषा के जरिए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक मतभेद अलग बात हैं,लेकिन लोकतांत्रिक मर्यादा सभी दलों को समझनी और निभानी चाहिए।

रिजिजू ने इस बात पर भी जोर दिया कि देश इस समय एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है और सभी राजनीतिक दलों का लक्ष्य वर्ष 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करना होना चाहिए। ऐसे समय में इस तरह की बयानबाजी और नारेबाजी देश की एकता और राजनीतिक संस्कृति को कमजोर करती है। उन्होंने कहा कि विपक्ष का काम सरकार से सवाल पूछना और जवाबदेही तय करना है,न कि ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना जो लोकतंत्र की जड़ों को हिला दे।

कांग्रेस की ओर से इस विवाद पर फिलहाल कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है,लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे को लेकर चर्चाएँ तेज हो गई हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस नेतृत्व इस मामले में चुप्पी साधे रहता है,तो यह इस तरह की भाषा को अप्रत्यक्ष समर्थन देने जैसा होगा। वहीं,कांग्रेस समर्थकों का तर्क है कि पार्टी का आधिकारिक रुख सामने आने से पहले निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है।

इस बीच,सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा तेजी से फैल रहा है। कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में रखने की बात कर रहे हैं,जबकि कई लोग इसे लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन बता रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवाद भारतीय राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण की ओर इशारा करते हैं,जहाँ राजनीतिक विरोध अक्सर व्यक्तिगत हमलों में बदलता नजर आता है।

रामलीला मैदान की रैली के बाद पैदा हुआ यह विवाद अब संसद तक पहुँचने की संभावना रखता है। किरेन रिजिजू की माफी की माँग ने कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बढ़ा दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और क्या संसद में इस पर कोई औपचारिक बयान या माफी दी जाती है।