चक्रवात ‘दित्वाह’ से श्रीलंका में भीषण तबाही (तस्वीर क्रेडिट@AIRNewsHindi)

चक्रवात ‘दित्वाह’ से श्रीलंका में भीषण तबाही: अब तक 334 मौतें,सैकड़ों लापता,भारत ने ‘ऑपरेशन सागरबंधु’ के तहत तेज किया बचाव अभियान

कोलंबो, 1 दिसंबर (युआईटीवी)- चक्रवात ‘दित्वाह’ ने श्रीलंका में अभूतपूर्व तबाही मचा दी है। सोमवार तक देशभर से कम से कम 334 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है,जबकि 370 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। श्रीलंका के डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर (डीएमसी) ने बताया कि कई क्षेत्रों में हालात बेहद गंभीर बने हुए हैं। भारी बारिश,तेज हवाओं और लगातार भूस्खलनों के कारण कई इलाके पूरी तरह कट चुके हैं,जिससे राहत और बचाव कार्यों में भी भारी चुनौतियाँ आ रही हैं।

यह चक्रवातीय तूफान श्रीलंका के केंद्रीय पहाड़ी क्षेत्रों से होकर गुजरा,जहाँ सबसे अधिक विनाशकारी प्रभाव देखने को मिला। कैंडी शहर में स्थिति सबसे चिंताजनक है। यहाँ अब तक 88 मौतें दर्ज की गई हैं और 150 लोग लापता बताए जा रहे हैं। पहाड़ों और घने जंगलों से घिरे इस क्षेत्र में कई गाँवों तक पहुँच अभी भी संभव नहीं हो पाई है। लगातार भूस्खलन और बाढ़ के कारण सड़कों के ध्वस्त होने से कई समुदाय बाहरी दुनिया से कट गए हैं। बादुल्ला में 71,नुवारा एलिया में 68 और मटाले में 23 मौतें दर्ज की गई हैं। यह आँकड़ा इसी बात को दर्शाता है कि तूफान का प्रभाव किस हद तक व्यापक रहा है।

डीएमसी के अनुसार,इस प्राकृतिक आपदा ने पूरे देश में 309,607 परिवारों को प्रभावित किया है। कुल मिलाकर 1,118,929 लोग किसी न किसी रूप में चक्रवात के असर का सामना कर रहे हैं। कई समुदायों में बिजली,पेयजल और संचार सुविधाएँ पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं। कई स्थानों पर लोग अब भी अपने घरों की छतों या ऊँचाई पर फँसे हुए हैं,जहाँ प्रशासन का पहुँचना बेहद मुश्किल बना हुआ है। राहतकर्मियों का कहना है कि जिन इलाकों में सड़क संपर्क टूट गया है,वहाँ तक पहुँचने के लिए केवल हवाई मार्ग ही एकमात्र विकल्प है। हालाँकि,खराब मौसम बचाव दलों के लिए भारी चुनौती बना हुआ है।

इस कठिन समय में भारत ने अपने पड़ोसी देश की मदद के लिए बड़े पैमाने पर ‘ऑपरेशन सागरबंधु’ शुरू किया है। भारतीय वायुसेना,थलसेना और नौसेना श्रीलंका की एयरफोर्स,नेवी,आर्मी और पुलिस के साथ मिलकर राहत और बचाव कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। भारतीय रेस्क्यू टीमें न सिर्फ स्थानीय प्रभावित समुदायों की मदद कर रही हैं,बल्कि वहाँ फँसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने में भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

भारतीय वायुसेना ने अब तक 40 श्रीलंकाई सैनिकों और 104 भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रेस्क्यू किया है। सेना ने बताया कि कैंडी और कोटमाले क्षेत्र में बचाव अभियान सबसे जोखिमभरा रहा है,क्योंकि वहाँ लगातार हो रहे भूस्खलन के कारण हेलीकॉप्टर उतराना अत्यंत मुश्किल था। ऐसे में आईएएफ ने एक हाइब्रिड रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया,जिसके तहत गरुड़ कमांडो को विंच से नीचे उतारा गया,ताकि वे फँसे हुए लोगों के समूह तक पहुँच सकें। वहाँ से उन्हें सुरक्षित कोटमाले के हेलीपैड तक लाया गया और बाद में कोलंबो एयरलिफ्ट किया गया।

भारतीय उच्चायोग ने बताया कि श्रीलंका में फँसे भारतीयों के अंतिम बैच को भी सोमवार सुबह सुरक्षित वापस लाया गया। 104 भारतीय नागरिकों को भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से तिरुवनंतपुरम लाया गया। हाई कमीशन ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि बैंडरानायके इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फँसे भारतीय अब सुरक्षित अपने देश लौट चुके हैं।

वहीं श्रीलंकाई सेना और भारतीय दल मिलकर गंभीर रूप से घायल लोगों के लिए भी विशेष एयरलिफ्ट ऑपरेशन चला रहे हैं। सेना ने बताया कि तीन गंभीर घायलों को तत्काल चिकित्सा सहायता के लिए हेलीकॉप्टर के जरिए कोलंबो ले जाया गया। इसके अतिरिक्त दियाथलावा आर्मी कैंप से राहत कार्यों में मदद के लिए श्रीलंकाई सैनिकों की पाँच टीमों—कुल 40 जवानों को भूस्खलन से बुरी तरह प्रभावित कोटमाले क्षेत्र में भेजा गया है।

रेस्क्यू ऑपरेशनों में फर्स्ट रिस्पांडर्स भी सक्रिय रूप से शामिल हैं,जो आपदा के समय सबसे पहले मौके पर पहुँचकर लोगों की जान बचाने की कोशिश करते हैं। वे स्थानीय पुलिस,सेना और भारतीय बचाव टीमों के साथ तालमेल बैठाते हुए राहत अभियानों को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं।

श्रीलंका सरकार ने बताया कि कई गाँवों में घर मिट्टी के नीचे दब गए हैं। प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सामग्री,पीने के पानी,दवाइयों और टेंट की भारी कमी है। कई स्थानीय नागरिकों ने बताया कि वे बिना भोजन और स्वच्छ पानी के कई दिनों से राहत का इंतजार कर रहे हैं। देशभर में बनाए गए राहत शिविरों में भीड़ तेजी से बढ़ रही है,जिससे वहाँ संसाधनों की कमी महसूस की जा रही है।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने आपदा को ‘राष्ट्रीय संकट’ घोषित करते हुए कहा कि देश को अंतर्राष्ट्रीय सहायता की तत्काल जरूरत है। उन्होंने पड़ोसी भारत को मदद के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि दोनों देशों के सहयोग से कई जिंदगियों को बचाया जा रहा है।

चक्रवात दित्वाह का प्रकोप बीते वर्षों में श्रीलंका पर आए किसी भी प्राकृतिक संकट से कहीं अधिक विनाशकारी माना जा रहा है। मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में स्थिति और खराब हो सकती है क्योंकि कई क्षेत्रों में भारी बारिश जारी रहने के अनुमान हैं।

इस बीच भारत ने आश्वासन दिया है कि जब तक हालात सामान्य नहीं होते,तब तक राहत और बचाव अभियान जारी रहेगा। ऑपरेशन सागरबंधु,जिसे 2004 की सुनामी के बाद पहली बार बड़े स्तर पर सक्रिय किया गया था,एक बार फिर से भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति का उदाहरण बनकर सामने आया है।

प्रभावित इलाकों में सहायता पहुँचाने और फँसी हुई आबादी को बचाने का काम निरंतर जारी है। श्रीलंका आज बेहद कठिन परिस्थिति का सामना कर रहा है,लेकिन क्षेत्रीय सहयोग,स्थानीय प्रयासों और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के जरिए लाखों प्रभावित लोगों के लिए उम्मीद की किरण अभी भी जीवित है।