ढाका,19 दिसंबर (युआईटीवी)- कट्टरपंथी ग्रुप ‘इंकलाब मंच’ के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद बांग्लादेश की राजधानी ढाका समेत कई इलाकों में हालात तेजी से बिगड़ गए हैं। हादी के निधन की खबर सामने आते ही गुस्साई भीड़ सड़कों पर उतर आई और देखते ही देखते हिंसा ने उग्र रूप ले लिया। इस दौरान देश के प्रमुख मीडिया संस्थानों को निशाना बनाया गया,जहाँ आगजनी,तोड़फोड़ और पत्रकारों को धमकाने की घटनाएँ सामने आईं। इन घटनाओं ने न केवल बांग्लादेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं,बल्कि अंतरिम सरकार की कार्यशैली और सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर कमियों को भी उजागर कर दिया है।
छह दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद शरीफ उस्मान हादी ने सिंगापुर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनकी मौत की पुष्टि गुरुवार रात अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए की। इसके कुछ ही समय बाद ‘इंकलाब मंच’ के आधिकारिक फेसबुक पेज पर भी हादी के निधन की घोषणा कर दी गई। यह खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर भावनात्मक और उग्र प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई,जिसने हालात को और भड़काने का काम किया।
हादी,जो आगामी फरवरी में होने वाले चुनावों में ढाका-8 निर्वाचन क्षेत्र से संभावित निर्दलीय उम्मीदवार माने जा रहे थे,पर 12 दिसंबर को दिनदहाड़े जानलेवा हमला हुआ था। ढाका के बिजोयनगर इलाके में वह एक रिक्शा से जा रहे थे,तभी मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने उनके सिर में गोली मार दी। यह हमला भीड़भाड़ वाले इलाके में हुआ,जिससे साफ संकेत मिला कि हमलावरों को किसी भी तरह के विरोध या कानून का डर नहीं था। गंभीर रूप से घायल हादी को पहले ढाका के एवरकेयर अस्पताल में भर्ती कराया गया,लेकिन हालत नाजुक होने के कारण उन्हें बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया,जहाँ आखिरकार उन्होंने दम तोड़ दिया।
हादी की मौत की खबर आने के कुछ ही घंटों के भीतर हिंसा भड़क उठी। शुक्रवार सुबह ढाका के कारवां बाजार इलाके में गुस्साई भीड़ ने बांग्लादेश के प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार ‘द डेली स्टार’ की बिल्डिंग में आग लगा दी। आग इतनी तेजी से फैली कि स्थिति को काबू में करने के लिए छह फायर ब्रिगेड यूनिट्स को मौके पर भेजना पड़ा। इस दौरान बिल्डिंग के अंदर कई पत्रकार और कर्मचारी फँस गए थे,जिन्हें बाद में सुरक्षित बाहर निकाला गया। हालात की गंभीरता को देखते हुए इलाके में बांग्लादेश सेना के जवानों को तैनात किया गया,जबकि भीड़ सड़क के दूसरी ओर खड़ी रही और नारेबाजी करती रही।
इसी तरह की एक और घटना में प्रदर्शनकारियों का एक समूह शाहबाग से कारवां बाजार की ओर मार्च करता हुआ पहुँचा और बांग्लादेशी दैनिक ‘प्रोथोम आलो’ की बिल्डिंग को घेर लिया। यहाँ भी माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया। मौके पर मौजूद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को शांत करने की कोशिश की,लेकिन हालात को पूरी तरह नियंत्रित करने में नाकाम रही। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक,प्रदर्शनकारी लाठियाँ और लोहे की रॉड लेकर आए थे और उन्होंने ऑफिस परिसर में जमकर तोड़फोड़ की।
ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार,यह हमला गुरुवार देर रात शुरू हुआ। प्रदर्शनकारियों ने पहले ऑफिस की खिड़कियों के शीशे तोड़े और फिर अंदर घुसकर फर्नीचर और जरूरी दस्तावेज बाहर सड़क पर फेंक दिए। इसके बाद उन्होंने आग लगा दी,जिससे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। प्रोथोम आलो के एक पत्रकार ने बताया कि बढ़ते तनाव के कारण कई रिपोर्टर और कर्मचारी देर रात तक ऑफिस के अंदर ही फँसे रहे और बाहर निकलने में उन्हें भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
इन घटनाओं के बीच ढाका में राजनीतिक विरोध भी तेज हो गया। नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) की छात्र शाखा ‘जातीय छात्र शक्ति’ ने राजधानी में विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने अंतरिम सरकार के गृह सलाहकार जहांगीर आलम चौधरी का पुतला जलाया और हादी के हमलावरों को गिरफ्तार करने में विफल रहने के साथ-साथ देश में बिगड़ती कानून-व्यवस्था के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने जहांगीर आलम चौधरी के इस्तीफे की मांग की और सरकार के खिलाफ तीखे नारे लगाए।
जातीय छात्र शक्ति के अध्यक्ष जाहिद अहसान ने ढाका ट्रिब्यून से बातचीत में कहा कि वे गृह सलाहकार से किसी तरह की माँग नहीं कर रहे हैं,क्योंकि उनके मुताबिक वह इस पद के लिए ही अयोग्य हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि एक गैर-जिम्मेदार गृह सलाहकार से जवाबदेही की उम्मीद करना ही बेकार है। अहसान ने यह भी कहा कि मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के दौरान हिंसा में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है और आम नागरिकों की सुरक्षा लगातार कमजोर होती जा रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि शरीफ उस्मान हादी की हत्या और उसके बाद भड़की हिंसा ने बांग्लादेश की राजनीति में गहरे तनाव को उजागर कर दिया है। आगामी चुनावों से पहले इस तरह की घटनाएँ देश को अस्थिरता की ओर धकेल सकती हैं। मीडिया संस्थानों पर हमले को लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत माना जा रहा है,क्योंकि स्वतंत्र प्रेस किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ होती है। पत्रकारों और मीडिया दफ्तरों को निशाना बनाना न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है,बल्कि यह भी दर्शाता है कि कट्टरपंथी तत्व किस हद तक बेखौफ हो चुके हैं।
सरकार की ओर से अब तक हिंसा पर काबू पाने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आश्वासन दिए गए हैं,लेकिन जमीनी हालात अभी भी चिंताजनक बने हुए हैं। ढाका के कई इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है और सेना तथा पुलिस की संयुक्त गश्त जारी है। इसके बावजूद,आम लोगों और पत्रकारों के बीच भय का माहौल है।
शरीफ उस्मान हादी की मौत केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं,बल्कि यह बांग्लादेश की मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक स्थिति का प्रतीक बन गई है। जिस तरह से उनकी मौत के बाद हिंसा फैली और मीडिया को निशाना बनाया गया,उसने यह साफ कर दिया है कि देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि अंतरिम सरकार हालात को कितनी जल्दी काबू में लाती है और क्या दोषियों को सजा दिलाकर जनता का भरोसा दोबारा जीत पाती है या नहीं।
